बिना रीढ़ वाला समुद्री जीव शंख

समुद्र में अनेक प्रकार के जीव-जंतु पाये जाते हैं। इनमें से तो कई इतने अजब-गजब प्रकार के होते हैं कि जिसके बारे में जानकर आप रोमांचित हो जायेंगे। समुद्र में अनेक प्रकार के अजब-गजब जीवों में से एक है शंख, जो अपनी शारीरिक सुरक्षा के लिए अपने चारों ओर एक आवारण का बनता है, कुछ समय के बाद इस आवरण का परित्याग कर नये घर का निर्माण करता है। ऐसी मान्यता है कि इस जीव द्वारा त्यागा गया यह खोल देवताओं को सर्वाधिक प्रिय है। देवता इस खोल को सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं। वहीं आम इंसान के लिए यह आवरण आभूषण भी बनता है। एक समय था जब यह आवरण मुद्रा के रूप में उपयोग किया जाता था। इस आवरण से आप सभी अवश्य परिचित होंगे। यह आवारण और कुछ नहीं हमारे यहां होने वाले प्रत्येक धार्मिक कार्य में उपयोग होने वाला शंख है। भारतीय सभ्यता-संस्कृति में शंख का महत्वपूर्ण स्थान है। समुद्र में पाये जाने वाला यह जीव लाख-दो लाख नहीं, अपितु करोड़ों वर्षों से अपनी शारीरिक सुरक्षा के लिए इस आवरण का निर्माण करता आ रहा है। पारिभाषिक शब्दावली में ये जीव मोलस्का और आम बोलचाल की भाषा मे घोंघा के नाम से जाना जाता है। 
ये घोंघे जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं, वैसे-वैसे अपने आवरण को बड़ा ही नहीं अपितु मजबूत भी बनाते जाते हैं। ये आवरण चूने के कारबोनेट के साथ-साथ कैल्शियम फॉस्फेट और मैग्नेशियम से निर्मित होते हैं। इन तत्वों से निर्मित आवरण को ही हम शंख के नाम से जानते हैं। 
कुछ जीव एक ही आवरण का निर्माण करते हैं, तो कुछ जीव दो आवरण का निर्माण करते हैं। इन खोलों पर बल एक दिशा में होता है, तो कुछ दूसरी दिशा में। इन बलों के आधार पर ही इन्हें दायें-बायें हाथ वाला शंख कहा जाता है, शंख का खोल सबसे बड़ा होता है। इसके भीतर का भाग मोती जैसा गुलाबी होता है। इसमें कान लगाकर सुनने पर समुद्र जैसा गंभीर गर्जन सुनायी पड़ता है, क्योंकि बल पड़े खोल में जरा-सी भी आवाज़ बहुत तेज़ ध्वनि उत्पन्न करती है । 
एक अनुमान के अनुसार समुद्र में 75000 तरह के जीव शंखों और खोलों में रहते हैं। इनमें से अधिकांश तो केवल पिन के सिर के बराबर होते हैं। समुद्र में शंख करोड़ों वर्षों से बनते आ रहे हैं। मनुष्यों ने शंख का उपयोग करना दस हजार पूर्व सीखा। शंखों से अनेक प्रकार के आभूषणों का निर्माण होता है, वही कभी शंख को मुद्रा के रूप में उपयोग किया जाता था। धारदार शंखों से औजार भी बनाये जाते थे। 18वीं सदी में शंखों को संग्रहित करने की परंपरा की शुरूआत हुई।