विपक्ष के बिना लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं 

हाल के विधानसभा परिणामों के बाद छोटे से राज्य नागालैंड में सभी दलों ने सत्ता में हिस्सेदारी पाने के लिए विपक्ष-मुक्त सरकार का गठन किया। सभी दलों ने बिना शर्त सत्तारूढ़ गठबंधन का समर्थन किया और सभी दल बिना किसी विपक्ष के सरकार में शामिल हुए। यह पहली बार नहीं है जब नागालैंड में विपक्ष-मुक्त सरकार चुनी गयी है। 2015 और 2021 में भी ऐसी सरकारें थीं, लेकिन यह पहली विधानसभा थी जहां निर्वाचित सदस्यों के शपथ लेने से पहले भी कोई विपक्षी दल नहीं था। हितधारकों ने नागा मुद्दे के राजनीतिक समाधान के लिए सभी वर्गों को एक साथ लाने की अपनी दलील में अपने फैसले को सही ठहराया। लम्बे समय तक उग्रवाद के कारण राज्य विकास हेतु गम्भीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। विपक्ष की पूरी तरह से कमी लोकतंत्र की उथल-पुथल को उसके सबसे खराब रूप में दिखाती है। सत्तारूढ़ नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी)और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) गठबंधन ने लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए सत्ता बरकरार रखी। 60 विधानसभा में भाजपा ने 12 सीटें जीतीं और उसकी सहयोगी एनडीपीपी को 25 सीटें मिलीं। निर्दलीयों ने चार और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने सात सीटें जीतीं। राज्य में पहले शासन करने वाली कांग्रेस ने वर्तमान या पिछली विधानसभा में अपना खाता भी नहीं खोला। हैरानी की बात है कि उत्तर-पूर्व से पुरानी पार्टी लगभग गायब हो रही है, जहां पहले यह एक प्रमुख शक्ति थी।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को समझाने के लिए यह उल्लेखनीय होगा कि देश में सबसे लंबे समय तक चलने वाला नागा आंदोलन ब्रिटिश शासन के दौरान शुरू हुआ था और आज़ादी के बाद भी जारी रहा। 1997 में केंद्र ने सबसे बड़े विद्रोही समूह नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ  नगालिम (एनएससी-आईएस) के साथ युद्ध विराम समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में सत्ता में आने के बाद वार्ता को नवीनीकृत किया। परिणामस्वरूप 3 अगस्त, 2015 को छह दशक पुराने उग्रवाद को समाप्त करने के लिए नागा शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गये। इससे पहले सभी दलों ने विपक्ष-मुक्त सरकार बनायी थी। नागा शांति वार्ता के लिए सरकार के वार्ताकार आर. एन. रवि ने भारत सरकार की ओर से इस पर हस्ताक्षर किये। एनएससीएन की ओर से प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति में अध्यक्ष लेफ्टिनेंट इसाक चिशी स्वू और महासचिव थुइनगालेंग मुइवा ने हस्ताक्षर किये। दूसरी बार 2021 में एनपीएफ  और निर्दलीय एनडीपीपी-भाजपा गठबंधन में शामिल हो गये ताकि नागालैंड की समस्या का सामूहिक समाधान निकाला जा सके और विपक्ष-मुक्त सरकार बनायी जा सके।
हालांकि परिस्थितियां भिन्न होने के कारण नागालैंड  का प्रयोग अन्य राज्यों या केंद्र में नहीं किया जा सकता है। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमना ने अपनी सेवानिवृत्ति से पहले राजस्थान विधानसभा को संबोधित करते हुए विधायी निकायों में विपक्ष के लिए कम होती जगह पर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने खेद व्यक्त किया था कि कानूनों को विस्तृत विचार-विमर्श के बिना पारित किया गया। इसलिए उन्होंने एक मजबूत, जीवंत, सक्रिय विपक्ष का आह्वान किया था। भाजपा अपने विस्तार को लेकर सदा आक्रामक रही है। प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने पार्टी के विस्तार के लिए जमकर काम किया। यहां तक कि राष्ट्रीय स्तर पर भी मुख्य रूप से मोदी के सत्ता में आने के बाद। पिछले एक दशक में विपक्ष की जगह को व्यवस्थित रूप से मिटा दिया गया है।
संविधान का मसौदा तैयार करते समय हमारे संस्थापकों ने विपक्ष की भूमिका सहित सभी पहलुओं पर गौर किया। वास्तविक संसदीय लोकतंत्र में सरकारों और विपक्ष की उन लोगों के प्रति समान दायित्व और ज़िम्मेदारियां होती हैं, जिन्होंने उन्हें अपने हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना है। विपक्ष के बिना कोई लोकतंत्र है नहीं है और सैद्धांतिक रूप से कम से कम यह उतना ही शक्तिशाली होना चाहिए जितनी कि सरकार। जो भी हो, लोकतंत्र की सफलता विपक्ष की रचनात्मक भूमिका पर निर्भर करती है क्योंकि वह एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रदान करता है। वह सरकार को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराता है। (संवाद)