किसानों को मिले उचित मुआविज़ा

पंजाब में असामयिक वर्षा, आंधी एवं ओलावृष्टि के प्रकोप ने एक बार किसानों की पकी-पकाई गेहूं की फसल पर कहर बरपा किया है। इस कारण एक अनुमान के अनुसार लगभग चार लाख एकड़ से अधिक रकबे में गेहूं की फसल या तो नष्ट हो गई है, अथवा खराब हो गई है। इससे नि:सन्देह रूप से गेहूं का झाड़ भी घटेगा और उत्पादन भी कम होगा। कई जगहों पर इस आपदा के कारण पूरी फसल खराब तो नहीं हुई, किन्तु वर्षा के कारण गीले और औंधे हुए गेहूं के पौधे ज़मीन पर बिछ गये हैं। इस कारण  किसानों को इसकी कटाई में भी समस्या उपजेगी, और इसमें से हासिल होने वाला झाड़ भी स्वत: कम होगा। इस महीने में यह दूसरी बार है जब इस प्राकृतिक प्रकोप ने किसानों पर कहर बरपा किया है। पिछले महीने भी मौसम विभाग की सूचनाओं में दावा किया गया था कि पंजाब में फरवरी मास में एकाएक गर्मी का प्रभाव बढ़ने और अवांछित गर्म मौसम के कारण गेहूं की फसल का उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है। मौसम विभाग की इस चेतावनी की मार से प्रदेश का किसान अभी उभर भी नहीं पाया था कि मार्च मास में दो बार अचानक आकाश मार्ग से उतरी असामयिक वर्षा, आंधी और ओलावृष्टि ने रही-सही कसर पूरी कर दी, और प्रदेश की कृषि एवं किसानों की किस्मत पर नया प्रहार किया। चूंकि इस आपदा का प्रकोप निरन्तर कई दिन तक बना रहा, अत: फसलों का नुकसान अपेक्षा और अनुमान से अधिक होने की बड़ी सम्भावना है।
इस अनापेक्षित प्रकोप का एक प्रभाव यह भी पड़ने की आशंका है कि पकी हुई फसल की गेहूं की डालियों के पानी में  निरन्तर गीला होते रहने से गेहूं का दाना काला भी पड़ सकता है। इससे एक ओर मंडी में जहां गेहूं की फसल खरीद की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है, वहीं किसान को इस फसल का दाम कम मिलने की सम्भावना भी बन सकती है। वैसे तो इस आपदा का प्रभाव प्रदेश में व्यापक रूप से हुआ बताया गया है, किन्तु बठिंडा, जालन्धर, फिरोज़पुर, संगरूर, बरनाला, मोगा, फरीदकोट, होशियारपुर, रूप नगर आदि ज़िले विशेष रूप से प्रभावित हुए हैं। एक पूर्व सर्वेक्षण के अनुसार इस बार प्रदेश में 34.90 लाख हैक्टेयर में गेहूं की बुआई की गई थी, और कृषि विशेषज्ञों के अनुसार रिकार्ड उत्पादन होने की बड़ी सम्भावना थी, किन्तु फरवरी महीने में पड़ी अप्रत्याशित गर्मी और फिर मार्च मास में बरसे असामयिक बादलों के प्रकोप ने गेहूं की फसल को तो खराब किया ही, किसानों की आर्थिकता से जुड़ी उनकी तकदीर को भी विपरीत ढंग से प्रभावित किया है। 
मौसमों के विपरीत प्रभाव से होने वाली असामयिक वर्षा और आंधी जैसी आपदाओं के कारण गेहूं की फसल के खराब होने की यह कोई पहली अथवा अभूतपूर्व घटना नहीं है। कृषि-कर्म के बारे में तो सदियों से यह प्रचलित होता आया है कि किसान की ओर से अत्यधिक सर्दी-गर्मी झेल कर की गई मेहनत तभी सार्थक होती है, जब उसका उत्पादन उसके आंगन की दहलीज़ लांघ कर उसके घर आ जाए। किसानों की फसल पर आपदाओं के टूटने को भी केवल बहाना ही चाहिए होता है। कभी यदि वर्षा-आंधी से फसल बच भी गई, तो बहुतेरी बार गेहूं की फसल को अचानक आग लग जाने की घटनाएं भी अक्सर सामने आती रही हैं। विपरीत मौसमों के कारण वर्ष 2019 के बाद से लगातार प्रत्येक वर्ष गेहूं की फसल इसी प्रकार प्रभावित होते आ रही है। वर्ष 2019 में जब असामयिक वर्षा से गेहूं की फसल प्रभावित हुई थी, तो तत्कालीन विपक्ष आम आदमी पार्टी और अकाली दल ने किसानों की शत-प्रतिशत क्षति-पूर्ति की मांग की थी। वर्ष 2020 और 2022 में भी किसानों की गेहूं की फसल पर ऐसी ही आपदा का पहाड़ टूटा था। किसानों के लिए गेहूं और धान की फसल सोने की डलियों जैसी होती है। वर्षा, आंधी और अग्नि-कांडों में जब यह सोना उसकी आंखों के सामने नष्ट होता है, तो उसकी हालत सचमुच ‘जिस तन लागे, सो तन जाने’ जैसी हो जाती है। 
नि:सन्देह प्रदेश की भगवंत मान सरकार ने इस आपदा से प्रभावित हुई गेहूं की फसल की गिरदावरी का आदेश दे दिया है, किन्तु ऐसे आदेश तो सरकारें अक्सर देती रहती हैं। ‘निबेड़े तो अमलों’ से होते हैं, और इस धरातल पर सरकारें अक्सर विफल सिद्ध होती आई हैं। कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की सरकार के समय भी ऐसे आदेश क्रियान्वयन के धरातल पर पटरी से उतरते रहे हैं। आम आदमी पार्टी की ओर से इस हेतु किया जाता रहा शोरगुल इसका गवाह है। अब जब किसानों पर मौसम की यह गाज गिरी है, तो संयोग से प्रदेश में आम आदमी पार्टी की सरकार है। कैप्टन की सरकार के शासन में शत-प्रतिशत मुआविज़े की मांग करने वाले हरपाल सिंह चीमा आज स्वयं वित्त मंत्री हैं। ऐसे में बहुत स्वाभाविक है कि एक ओर किसानों की अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं, वहीं उनकी उम्मीदों पर बूर पड़ने की आशाएं भी द्विगुणित हो जाती हैं। हम समझते हैं कि किसानों का नुक्सान तो आशंकाओं से अधिक हुआ है, अत: सरकार द्वारा उन्हें दिये जाने वाले मुआविज़े हेतु उसके दायित्व भी बढ़े हैं। नि:सन्देह किसानों की हितैषी होने का दावा करने वाली इस सरकार से अपेक्षा बनती है, कि यह गिरदावरी केवल घोषणा बन कर न रह जाए। किसानों को हुए उनके नुक्सान का उनकी अपेक्षाओं के अनुसार और ‘आप’ नेताओं की अपनी घोषणाओं के अनुरूप शत-प्रतिशत मुआविज़ा मिले, ऐसी आशा सभी को अवश्य है। इसे सुनिश्चित करना इसी सरकार का कर्त्तव्य एवं दायित्व बनता है।