विपक्ष विरोधी हथियार बन गईं केंद्रीय जांच एजेंसियां

केन्द्र सरकार द्वारा विपक्ष के खिलाफ  एक नये हमले की शुरुआत करते हुए केंद्रीय एजेंसियों विशेष रूप से केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को काफी सक्रिय किया हुआ है।
विगत में सीबीआई ने दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को पूछताछ के लिये बुलाया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया। फि उन्हें ईडी ने गिरफ्तार कर लिया। सीबीआई ने पटना में लालू प्रसाद यादव की पत्नी राजद नेता राबड़ी देवी से भी पूछताछ की। इसके बाद दिल्ली में लालू प्रसाद यादव से तथाकथित नौकरी के बदले ज़मीन घोटाले में पूछताछ की गई जो एक दशक से अधिक समय पहले हुआ माना जा रहा है। सीबीआई के इस कदम के बाद ईडी ने दिल्ली में तेजस्वी यादव के घर और परिवार के अन्य सदस्यों और सहयोगियों के 24 ठिकानों पर छापेमारी की। उनकी कार्यप्रणाली कुछ ऐसी है—पहले सीबीआई एक जांच रिपोर्ट दर्ज करती है और उसके आधार पर ईडी धन-शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) को लागू करके कार्रवाई में शामिल हो जाती है। पीएमएलए के प्रावधान कठोर हैं और ईडी को गिरफ्तारी, तलाशी और सम्पत्ति को जब्त करने और लोगों को जेल में रखने की व्यापक शक्तियां देते हैं और उनकी ज़मानत मिलना बेहद मुश्किल है।
केन्द्र सरकार ने केंद्रीय एजेंसियों, खासकर ईडी को विपक्ष के खिलाफ  हथियार बना लिया है।  ये एजेंसियां दो उद्देश्यों को पूरा करती हैं। एक, इसका उपयोग विपक्षी दलों को दबाने के लिए किया जाता है, जिन्हें बिना किसी मुकद्दमे या दोषसिद्धि के लम्बे समय तक जेल में रखा जाता है। यह प्रक्रिया ही सज़ा बन जाती है। दूसरा उद्देश्य सीबीआई, ईडी की कार्रवाई की धमकी देकर चुनिंदा प्रमुख नेताओं को भाजपा में शामिल करके विपक्षी दलों को तोड़ना है।
 ‘आप’ सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे सत्येंद्र जैन को मई 2022 में धन-शोधन के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और वह नौ महीने बाद भी जेल में हैं। दूसरे पूर्व मंत्री मनीष सिसोदिया को भी कथित शराब घोटाले व जासूसी मामले में जेल में डाल दिया गया है।
तेलंगाना में विधानसभा चुनाव साल के अंत तक होने हैं। भाजपा राज्य में सफलता हासिल करने के लिए ठोस प्रयास कर रही है। दिल्ली में शराब घोटाले में संलिप्तता के लिए बीआरएस नेता और मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की बेटी के कविता को ईडी का समन इस बात का सूचक है कि भाजपा अपने चुनावी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए केंद्रीय एजेंसियों का उपयोग करना चाहती है।
लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ  एक पुराने मामले में पूछताछ सीधे तौर पर राज्य के राजनीतिक से जुड़ा है, जहां महागठबंधन में नितीश कुमार और जद (यू) के शामिल होने से भाजपा अलग-थलग पड़ गयी है। गठबंधन को अस्थिर करने के लिए विपक्षियों के खिलाफ  भ्रष्टाचार के मुद्दे पर केन्द्र सरकार केंद्रीय एजेंसियों का उपयोग कर रही है। भाजपा का उद्देश्य केंद्रीय एजेंसियों के इस्तेमाल से विभिन्न विपक्षी दलों के नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल होने के लिए मजबूर करना है। इसका एक प्रमुख उदाहरण असम के वर्तमान मुख्यमंत्री हिमंत बिश्व सरमा हैं, जिन्होंने कांग्रेस पार्टी में रहते हुए शारदा घोटाले में सीबीआई की जांच का सामना किया था। भाजपा में शामिल होने के बाद उनके खिलाफ  आगे कोई कार्यवाही नहीं हुई। इसी तरह पश्चिम बंगाल में शुभेंदु अधिकारी का उदाहरण है जो टीएमसी से भाजपा में चले गये थे। ईडी सत्तावादी एकाधिकार शासन का एक अनूठा साधन बन गया है। पीएमएलए में संशोधन (जो 2020 में किये गये थे) कर गिरफ्तारी, तलाशी, जब्ती और सम्पत्तियों को कुर्क करने के लिए व्यापक शक्तियां प्रदान की गयीं। 
दुर्भाग्य से जुलाई 2022 में जस्टिस ए.एम. खानविलकर की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने इन संशोधनों को बरकरार रखा जिसमें यह प्रावधान भी शामिल था कि प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) जो कि एक प्राथमिकी के बराबर है, को हर मामले में अनिवार्य रूप से अभियुक्त को नहीं दिया जाना है। इतने से सरकार संतुष्ट नहीं। गत 7 मार्च को वित्त मंत्रालय के अधीन राजस्व विभाग द्वारा एक गजट अधिसूचना जारी की गयी जिससे राजनीतिक रूप से उजागर व्यक्तियों (पीईपी) और गैर-सरकारी संगठनों को पीएमएलए के दायरे में लाया जा सके। इसका मतलब यह होगा कि वरिष्ठ राजनेताओं, सरकार, न्यायिक या सैन्य अधिकारियों के मामले में ईडी ऐसे व्यक्तियों और संगठनों के वित्तीय इतिहास तक पहुंच सकता है। (संवाद)