सितारों से आगे

विगत दिवस भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा अपने राकेट एल.वी.एम.-3 के माध्यम से ब्रिटिश कम्पनी के 36 उपग्रहों को ग्रहपथ पर स्थापित करके एक बड़ी सफलता प्राप्त की है। इससे पहले भी इसी कम्पनी के 36 उपग्रहों को गत वर्ष अक्तूबर में अंतरिक्ष में छोड़ा गया था। अंतरिक्ष की खोज करते संगठन इसरो को यदि भारत का गौरव कहा जाए तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के परामर्श पर अंतरिक्ष की खोज करने की योजना तैयार की थी। उस समय चाहे इसके महत्व को पूरी तरह न भी समझा गया हो, परन्तु समय व्यतीत होने के साथ अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में जहां भारत ने अपना विशेष स्थान बनाया है, वहीं दुनिया के कुछेक देशों के साथ मिल कर उसने ऐसी सफलता प्राप्त की, जिससे आज विश्व ही बदल गया प्रतीत होता है। 
अंतरिक्ष से ही धरती की प्रत्येक तरह की छोटी से छोटी गतिविधि पर नज़र रखी जा सकती है। हैरानी की सीमा तक ऐसी जानकारी का विस्तार विश्व के कोने-कोने तक हो चुका है। ऐसी जानकारी का विस्तार इस कद्र हो चुका है कि यह पूरा घटनाक्रम सामान्य लगने लगा है। इस क्षेत्र के विकास से दो अंतरिक्ष वैज्ञानिक सतीश धवन तथा विक्रम साराभाई के नाम पूरी तरह जुड़ गए हैं जिनकी सतत् मेहनत ने आज इस क्षेत्र में भारत को कुछ एक विकसित देशों में ला खड़ा किया है। चाहे इस का मुख्य कार्यालय बेंगलुरू में है परन्तु इसके राकेट भिन्न-भिन्न स्थानों से छोड़े जाते हैं। नये छोड़े गये उपग्रहों के साथ छोटे से छोटे गांवों तथा दूरवर्ती कस्बे भी पूरी तरह पहुंच में आ गए हैं। भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान के शुरू किये गए इस मिशन में आर्य भट्ट नामक सैलेलाइट तैयार करके इसको 1975 में सोवियत संघ से छोड़ा था लेकिन 1980 में इसरो ने अपना लांच सैटेलाइट एस.एल.वी.-3 तैयार कर लिया था। उसके बाद इसरो ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। हर प्रकार के राकेट इंजनों और सैटेलाइटों का प्रबंध करके अपने सैकड़ों ही घरेलू और विदेशी अपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजा था। इसरो का मिशन चन्द्र, मंगल, शुक्र और यहां तक कि सूर्य की खोज तक को बनाया गया है। हर प्रकार के प्राकृतिक क्रिया-कलापों और सुरक्षा से संबंधित यन्त्रों की अंतरिक्ष से ही खबर रखने में भी सफलता प्राप्त की है। अब इसने छोटे सैटेलाइट लांच करके भारत को इस क्षेत्र में भी सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। 
अंतरिक्ष की इस खोज को भारत ने एक वरदान के तौर पर उपयोग किया है जबकि विश्व के कुछ और देश अंतरिक्ष की इस खोज को आपसी टकराव के रास्ते पर चलाने का यत्न कर रहे हैं। जिस ढंग से भारत अपने चन्द्रयान-3 के मिशन के साथ जुड़ा हुआ है, उससे भी बड़ी आशा पैदा होती है। इस मौके पर इकबाल की यह पंक्ति याद आती है, ‘सितारों के आगे जहां और भी हैं’।


           —बरजिन्दर सिंह हमदर्द