अटारी-वाघा सीमा द्वारा क्यों नहीं हो रहा पाकिस्तान के साथ व्यापार ?

‘दुश्मनी लाख सही ़खत्म न कीजै रिश्ता,
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहीये।’

भारत में आम धारणा है कि पाकिस्तान हमारा दुश्मन देश है तथा उसके साथ व्यापार भी नहीं करना चाहिए। हमारे पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की आम आदमी पार्टी की नीति है कि भाजपा से भी अधिक बड़े राष्ट्रवादी दिखाई दें तभी चुनावों में जीत सकते हैं पर क्रियान्वयन करते हुए पाकिस्तान के साथ व्यापार का प्रत्यक्ष एवं तीव्र विरोध करते हैं और कहते हैं कि जो देश ज़हर भेजता हो, हम उसके साथ व्यापार नहीं करेंगे। परन्तु क्या कभी किसी ने सोचा कि चीन तो पाकिस्तान से भी अधिक भारत का बड़ा दुश्मन है, अपितु अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के चलते चीन ही पाकिस्तान का सबसे बड़ा समर्थक भी है, रणनीति भागीदार भी। चीन जो भारत के एक प्रदेश पर बुरी नज़र रखता है तथा उसकी दुश्मनी उस समय सिर चढ़ कर बोलती है जब वह सीमाओं पर भारतीय ज़मीन पर कब्ज़ा बढ़ाने के प्रयास करता है। उसकी सेनाओं के साथ भारतीय सैनिक दलों को लोहा भी लेना पड़ता है।  उसकी दुश्मनी की इन्तिहा है कि वह भारतीय क्षेत्रों के नाम तक बदलने का दम रखता है। पहले 2021 में उसने 15 भारतीय क्षेत्रों के नाम बदल दिए और अब 11 क्षेत्रों के। नि:सन्देह भारत एक मज़बूत देश है तथा उसने चीन के दावों को पूरी तरह खारिज कर दिया है परन्तु चीन-भारत के व्यापार में दुश्मनी कभी आगे नहीं आई, अपितु प्रत्येक वर्ष भारत-चीन व्यापार बढ़ता ही जा रहा है। 2022 में भारत तथा चीन के बीच 135.98 अरब अमरीकी डॉलर का व्यापार हुआ, जिसमें चीन से भारत ने 118.5 अरब डॉलर का सामान खरीदा तथा सिर्फ 17.48 अरब डॉलर का ही समान चीन को भेजा। चाहे चीन के साथ भारत का व्यापारिक घाटा 101.02 अरब डॉलर का हो गया है जो एक वर्ष पहले 69.38 अरब डॉलर था। इससे स्पष्ट है कि दुश्मनी अपने स्थान पर देश के व्यापारिक हित तथा ज़रूरतें अपने स्थान पर हैं।
वैसे पाठकों को आश्चर्य होगा कि इस ‘ज़हर’ भेजने वाले पाकिस्तान के साथ भारत का व्यापार इस समय बंद नहीं है, अपितु पिछले 2-3 वर्षों से यह 100 प्रतिशत वार्षिक की दर  से फिर बढ़ रहा है। बस, यह पंजाब की सर-ज़मीन के रास्ते से नहीं होता। जो आंकड़े हम पाठकों को बता रहे हैं वह किसी प्रकार का अनुमान नहीं है, अपितु भारत की लोकसभा में देश के व्यापार तथा उद्योग राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने बताए हैं। 2022 में भारत तथा पाकिस्तान में 1.35 बिलियन डॉलर जो भारतीय रुपये में 110 अरब 65 करोड़ से अधिक बनते हैं, का व्यापार भारत तथा पाकिस्तान के मध्य हुआ है। पाकिस्तानी रुपये में यह राशि 388 अरब 63 करोड़ रुपए बनती है। वर्णनीय है कि 2021 में पाकिस्तान तथा भारत के मध्य 576.36 मिलियन डॉलर अर्थात् 42 अरब 33 करोड़ रुपये के लगभग का व्यापार हुआ था तथा 2020 में यह सिर्फ 329.26 मिलियन डॉलर भाव भारतीय रुपये में 26 अरब 98 करोड़ रुपए का ही था।
अब सोचने वाली बात है कि यदि भारत का व्यापार पाकिस्तान के साथ जारी है तो वह समुद्री या अन्य रास्तों द्वारा किया जा रहा है, जो पंजाब के रास्ते से करने से कहीं महंगा भी पड़ता है तो वोटों की राजनीति की ऩफरत के कारण पंजाब का नुकसान क्यों किया जा रहा है? यदि भारत-पाकिस्तान की सीमा व्यापार के लिए खुले तो पंजाब की कपास, गेहूं तथा सब्ज़ियों को एक बड़ी मंडी मिलती है। फिर पंजाब का चावल या अन्य सामान ही नहीं, अपितु भारत के बहुत बड़े हिस्से का व्यापार भी पाकिस्तान के ज़मीनी रास्ते अ़फगानिस्तान, ईरान, यूरेशिया के दर्जनों देशों से मध्य पूर्व तक हो सकता है, जिससे पंजाब का भाग्य खुल सकता है। यदि इन सभी देशों का व्यापार पंजाब की धरती द्वारा हो तो कितने रोज़गार के अवसर बनेंगे तथा पंजाब की अर्थ-व्यवस्था को कितना बल मिलेगा, इसका शायद अनुमान भी कोई नहीं लगा रहा।
वर्ष 2012 में अमरीकी एजेंसी फॉर इंटरनैशनल डिवैल्पमैंट रिपोर्ट में ज़िक्र था कि वर्ष 1949 में उस समय के भारतीय केन्द्रीय व्यापार मंत्री के.सी. नियोगी ने कहा था कि भारत तथा पाकिस्तान के लिए संयुक्त आर्थिक नीति का होना बेहद ज़रूरी है। इससे दोनों देशों को विकास के मार्ग पर आगे बढ़ने में सुविधा होगी। इस रिपोर्ट के अनुसार तो भारत ने उस समय दोनों देशों के लिए ‘कस्टम यूनियन’ बनाने का ढंग भी तलाशना शुरू कर दिया था, परन्तु भारत-पाकि दुश्मनी ने इस सोच एवं विचार की हत्या ही कर दी।
़खैर! हमारी पंजाब के मुख्यमंत्री सहित सभी राजनीतिक पार्टियों के अलावा बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, गीतकारों, सामाजिक संस्थाओं तथा आम लोगों से निवेदन है कि राजनीतिक झगड़े अपने तौर पर निपटने दें। सीमाओं की रक्षा अवश्य करें, सीमा पार से भेजे जाने वाले नशों तथा हथियारों की खेपों को रोकने के लिए कैसे भी प्रबन्ध करें, परन्तु पाकिस्तान के साथ व्यापार जो अन्य रास्तों द्वारा किया ही जा रहा है, उसे पंजाब के अटारी-वाघा तथा फिरोज़पुर-हुसैनीवाला सीमा, जहां से रेल सम्पर्क सीधा कसूर से लाहौर के साथ जुड़ा हुआ था, को खोलने का मुद्दा पंजाब का सांझा मुद्दा बनाएं। यह किसी सिख या हिन्दू के लिए नहीं समूचे पंजाबियों तथा देश के हित में भी है। पाकिस्तान के साथ व्यापार चीन की भांति व्यापारिक घाटे का भी कारण नहीं, अपितु व्यापारिक लाभ का सौदा होगा। उदाहरणत: 2019 में भारत ने पाकिस्तान को 370 करोड़ रुपये का सामान भेजा था तथा उतने समय में सिर्फ 18 करोड़ रुपये का सामान ही मंगलवाया था। फिर यह व्यापार शांति तथा खुशहाली के कई अन्य द्वार खोलने का कारण भी बनेगा।
‘अंधेरा मिटता नहीं मिटाना पड़ता है
बुझे चिराग को फिर से जलाना पड़ता है।’
नवजोत सिंह सिद्धू का प्रभाव?
पंजाब के पूर्व मंत्री तथा पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की रिहाई के बाद उनके ‘पंजाब एजेंडे’ पर तीव्र बहस चल रही है। 2022 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस उनके पंजाब एजेंडे को अपनाते-अपनाते आपसी फूट से एकाएक बनी परिस्थितियों के कारण ‘दलित कार्ड’ खेलने की ओर चल पड़ी थी। 2022 के चुनावों में मुकाबला बदलाव की राजनीति तथा दलित कार्ड के बीच ही हुआ था। चाहे कांग्रेस की हार में नवजोत सिंह सिद्धू के जल्दबाज़ी में फैसले लेने के दौरान की गईं गलतियों पर उनका स्वयं को 100 प्रतिशत ठीक मानने और सबसे आगे रखने की प्रवृति का भी हिस्सा थी, परन्तु चुनावी राजनीति में उनके ‘पंजाब एजेंडे’ की पड़ताल नहीं हुई थी, जिसे कांग्रेस अब मुद्दा बना सकती है परन्तु इसलिए ज़रूरी है कि नवजोत सिंह सिद्धू भी अपने एजेंडे पर पार्टी में बहस करने तथा उसे और संवारने तथा सुधारने, पर यह ज़िद्द न करें कि जो उन्होंने कह दिया वही हरफ-ए-आखिर है तथा यदि उन्होंने अपनी कोई अलग पार्टी नहीं बनानी तथा कांग्रेस में ही रहना है तो ज़रूरी है कि वह जालन्धर उप-चुनाव सम्पन्न होने तक ऐसा कोई काम न करें जो कांग्रेस के लिए नुकसानदायक साबित हो। जैसे कि उन्हें इस समय न किसी पद की लड़ाई में पड़ना चाहिए तथा ऐसी बयानबाज़ी से भी दूर रहना चाहिए, जिससे कांग्रेस में फूट का कोई अहसास हो, अपितु जालन्धर उप-चुनाव में उन्हें चुनाव अभियान सम्भाल रहे नेतृत्व के अनुसार ही चलना चाहिए। हम समझते हैं कि यदि वह इस समय पार्टी के लिए ईमानदारी तथा विनम्रता से कार्य करेंगे तो आने वाले समय में उन्हें फिर से कांग्रेस का नेतृत्व करने से कोई भी रोक नहीं सकेगा परन्तु यदि उन्होंने अब भी कोई गलती की तो वह कांग्रेस का नुकसान तो करेंगे ही, अपना भी बहुत नुकसान कर बैठेंगे।

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