सरकार और कानून  


पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में हुए घटनाक्रम ने प्रदेश के गैंगस्टरों और पुलिस की कारगुजारी संबंधी अनेक सवाल खड़े कर दिये हैं। प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार के बारे में यह प्रभाव ज़रूर बन चुका है कि उसने पुलिस सख्ती के साथ उत्तर प्रदेश में बड़े स्तर पर फैले हर प्रकार के गुंडा तत्वों को बड़ी चेतावनी दी है और उनके बीच में एक सहम भी पैदा कर दिया है। बिहार और उत्तर प्रदेश दो ऐसे राज्य रहे हैं जो चोरियों, कत्लों, डाकों और दुष्कर्मों के मामलों में से देश भर के सभी प्रदेशों से ऊपर माने जाते रहे हैं। पिछली सरकारें इस मुहाज़ पर कभी भी प्रभावशाली ढंग के साथ सर्किय नहीं हो सकीं। इसका एक बड़ा कारण गैंगस्टरों, पुलिस और राजनीतिज्ञों की मिलीभुगत रही है। लोगों में बड़े-छोटे गैंगस्टरों का सहम लगातार बना रहा है लेकिन अब यहां जिस प्रकार सख्ती की जा रही है, उसने हालात में फर्क ज़रूर डाला है। पिछले दिनों गैंगस्टर से राजनीतिज्ञ बने अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को प्रयागराज में पुलिस कर्मियों के सामने तीन व्यक्तियों द्वारा गोलियां मार दिये जाने और उससे दो दिन पहले अतीक के बेटे असद के झांसी में पुलिस मुकाबले में मारे जाने के समाचारों ने राजनीति और मानवाधिकारों के लिए सक्रिय संगठनों में बड़ी हलचल ज़रूर पैदा की है। प्रदेश की बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने इन घटनाओं की सख्त आलोचना की है और इन कार्रवाइयों को योगी सरकार के समय प्रदेश में बना जंगल राज कहा है।
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने जहां पुलिस की इन कारवाइयों की सख्त आलोचना की है, वहीं बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने यह कहा है कि इन कत्लों से उत्तर प्रदेश सरकार की कारगुजारी संबंधी गम्भीर सवाल उठते हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को भी इसका नोटिस लेने के लिए कहा है। मानवाधिकार संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भी इसको सरकार और पुलिस की स्वेच्छाचारिता कहते हुए कहा है कि प्रदेश में कानून के राज की बजाय पुलिस तंत्र कायम कर दिया गया है। आगामी समय में भी देश की अदालतों में यह गम्भीर प्रश्न उठाये जाएंगे क्योंकि किसी भी आरोप के लिए सज़ा का भागी बनाया जाना अदालतों का काम होता है। यदि पुलिस यह कार्य अपने हाथ में ले ले तो कानून का शासन बुरी तह लुढ़क जाएगा। लोगों के मन में पुलिस का और भी भय पैदा हो जाएगा। 
जहां तक अतीक अहमद के जीवन का संबंध है, वह गत 4 दशक से अपराध की दुनिया से जुड़ा रहा, परन्तु इसके साथ-साथ उसने समय की राजनीति का भी सहारा लिया। वर्ष 1989 में इस बाहुबली ने विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की। उस समय इस प्रकार का भय व प्रभाव का माहौल उसने कायम कर लिया था जिससे वह लगातार चुनाव भी जीतता रहा। जुर्म की दुनिया में वह भूमि संबंधी, ठेकों संबधी तथा जायदादों संबंधी फैसले करवाता था। सिर्फ 17 वर्ष की आयु में ही उसने अपने विरोधी मुहम्मद गुलाम को दिन-दिहाड़े छुरा मार कर मार दिया था। लोगों में उसकी इतनी दहशत तथा प्रभाव था कि अक्सर उसके ग्रुप की सरेआम अपने विरोधियों से लड़ाई होती थी जिससे उसका प्रभाव और भी बढ़ जाता था। यहां तक कि वह पांच बार विधायक बना और एक बार लोकसभा सांसद भी रहा, परन्तु इसके साथ ही उस पर 100 से अधिक केस दर्ज हुए, जिनमें से अधिकतर में वह बरी होता रहा। इस वर्ष पहले महीनों में ही उसे एक केस में सज़ा सुनाई गई जबकि उसके खिलाफ 5 दर्जन के लगभग केस अब भी अदालतों में चल रहे हैं। अधिकतर गंभीर केसों में उसके खिलाफ कोई भी व्यक्ति गवाही नहीं देता था। यदि कोई गवाही देने की कोशिश करता तो उसे वह बाहुबली ढंग इस्तेमाल करके चुप करवा देता। वह पहले समाजवादी पार्टी में शामिल हुआ और बाद में बहुजन समाज पार्टी की ओर से भी चुनाव लड़ता रहा। अंत में उसके ऐसे कारनामों के कारण इन पार्टियों ने उससे किनारा कर लिया। 
कुछ महीने पहले ही राजू पाल नामक एक व्यक्ति को दिन-दिहाड़े गोलियों से भून दिये जाने के बाद प्रशासन द्वारा अतीक तथा उसके भाई अशरफ को गिरफ्तार किया गया था परन्तु जेल में से ही वह अपने बड़े गैंग के सहारे पूरा प्रभाव इस्तेमाल करता रहा जिस कारण सुप्रीम कोर्ट द्वारा उसे प्रदेश के बाहर किसी अन्य राज्य में बदलने का आदेश देना पड़ा। इस हत्या केस में गवाह उमेश पाल को 24 फरवरी, 2023 को उसके दो अंगरक्षकों स्हित दिन-दिहाड़े मार दिया गया। अतीक तथा उसके गिरोह के सैकड़ों की संख्या में सदस्यों के काले कारनामों के बारे में प्रदेश में हर कोई जानता था परन्तु उत्तर प्रदेश की पुलिस की ओर से जिस ढंग-तरीके से इन हत्याओं को अंजाम दिया गया है, उससे ‘कानून के शासन’ की धज्जियां अवश्य उड़ी हैं। इस संबंधी आगामी समय में अदालतों के साथ-साथ समाज में भी गम्भीर चर्चा बनी रहेगी। अदालतों तथा संवैधानिक प्रबंध में विश्वास पैदा करने के लिए ऐसी चर्चा का चलना तथा इसे सही परिणाम तक ले जाना बेहद ज़रूरी होगा। 

 —बरजिन्दर सिंह हमदर्द