लुधियाना की भयावह त्रासदी

 

लुधियाना में ज़हरीली गैस के रिसाव से ग्यारह लोगों की मृत्यु हो जाने वाली घटना जहां अतीव पीड़ादायक और हृदय-विदारक है, वहीं बेहद चिन्ताजनक भी है। इस घटना में मरने वालों में एक डाक्टर परिवार के पांच सदस्यों का पूरा परिवार और एक अन्य परिवार के तीन सदस्य शामिल हैं। तीन बच्चे और तीन महिलाएं भी इस ज़हरीली गैस का शिकार हुए। ऐसा समझा जाता है कि किसी एक औद्योगिक इकाई द्वारा अपने अति प्रदूषित पानी-अवशेष किसी सीवरेज में डाल दिये गये, और जगह-जगह से टूटे मैन-होल के कारण इन अवशेषों से उपजी विषाक्त गैस का रिसाव होते चला गया, जिससे लोग पीड़ित एवं प्रभावित होकर इधर-उधर बेहोश होकर गिरने लगे। कोढ़ में खाज यह भी कि जिस ग्यासपुरा इलाके में यह घटना हुई है, उसकी साफ-सफाई और स्वच्छता का हाल भगवान के भरोसे रहता है। यह घटना एक चेतावनी भी है कि यह कोई अंतिम घटना तो कदापि नहीं है। यह भी कि प्रदेश की सरकारों और ज़िला प्रशासन की ओर से चिरकाल से इस प्रकार की किसी घटना की जैसे प्रतीक्षा हो रही थी। असल में तो पूरा लुधियाना शहर औद्योगिक कूड़ा-कचरे और यहां स्थित विभिन्न प्रकार के रसायनों पर आधारित उद्योगों से निकलने वाले दूषित और कैमीकल-युक्त पानी के कारण दशकों से गैसों के विस्फोट की आशंकाओं वाले कगार पर बैठा हुआ है। बेशक पंजाब का यह ज़िला औद्योगिक धरातल पर मानचैस्टर बन कर उभरा है, किन्तु अधिकतर उद्योगों के अनियोजित एवं इनके अनियंत्रित प्रसार के कारण इनसे होने वाले लाभों के विपरीत ये नुकसानदायक अधिक साबित हो रहे हैं। ऐसी औद्योगिक इकाइयों में नियमों एवं कानूनों के अनुसार न तो बाकायदा ट्रीटमैंट प्लांट लगे हैं, न इनके भीतर समुचित सुरक्षा उपकरण ही लगाए गए हैं। जिस क्षेत्र में यह घटना घटित हुई है, उसके 500 मीटर के इलाके वाली 90 प्रतिशत औद्योगिक इकाइयों में आज भी ट्रीटमैंट प्लांट नहीं हैं। ऐसे में, ऐसी घटना के पुन: घटित होने की आशंका के बने रहने से कदापि इन्कार नहीं किया जा सकता। 
लुधियाना शहर के इर्द-गिर्द होकर बहता बुड्ढा नाला भी चिरकाल से इस प्रकार की घटनाओं को आमंत्रित करने वाला क्षेत्र बना हुआ है। इस नाले के तटों पर और इर्द-गिर्द के क्षेत्र में सैंकड़ों ऐसी औद्योगिक इकाइयां हैं जिनसे अत्यधिक दूषित व विषाक्त पानी-अवशेष निकलता है और थोड़े-से लालच के वशीभूत कुछ उद्योगपति इस पानी को किसी निकटवर्ती सीवरेज  अथवा बुड्ढे नाले में डाल देते हैं। यह पानी अन्तत: सतलुज दरिया के ज़रिये खेतों आदि में सिंचाई के लिए प्रयुक्त होकर पंजाब की बेहद उपजाऊ धरती को भी विषाक्त करने लगता है। उद्योगों द्वारा किये जाते इस कानूनोल्लंघन में प्रशासनिक तंत्र की भी बड़ी भूमिका रहती है, और कि उन्हें राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त होता है, किन्तु उनकी इस कार्रवाई से लुधियाना के एक बड़े क्षेत्र के लोगों की ज़िन्दगी सदैव दांव पर लगी रहती है। इन अवशेषों के ट्रीट न होने से इनसे कई प्रकार की विषाक्त गैसें उत्पन्न होने लगती हैं। मौजूदा घटना में सीवरेज में डाले गए प्रदूषित अवशेषों से उपजी गैस ज़हरीली हाईड्रोजन सल्फाइड जैसी थी जो सांसों के ज़रिये शरीर में प्रवेश कर नाड़ी तंत्र को प्रभावित कर देती है। सीवरेज गैस वाली ऐसी छिट-पुट घटनाएं पहले भी यहां-वहां होती रही हैं हालांकि उनके दुष्परिणाम अधिक न होने के कारण उनकी ओर किसी का कभी अधिक ध्यान नहीं गया। तथापि, इस मुद्दे को लेकर अक्सर कुछ समाजसेवी वर्गों और खासकर मीडिया की ओर से समय-समय पर चेतावनी दी जाती रही है, और प्रशासन एवं सरकारों को चेताया भी जाता रहा है। मौजूदा भगवंत मान सरकार की भी इस ओर की प्राथमिकता कभी नज़र नहीं आई, किन्तु इस अचानक घटित हुई त्रासद घटना ने एकबारगी प्रशासन और समाज के एक बड़े प्रबुद्ध वर्ग को स्तब्ध करके रख दिया है।
नि:संदेह हम समझते हैं कि इस घटना के बाद से सरकार और प्रशासन की ़ग़फलत वाली निद्रा अब अवश्य टूटनी चाहिए। उद्योगपतियों के लिए भी यह घटना एक सबक जैसी सिद्ध होनी चाहिए। थोड़े से लाभ और लालच के वशीभूत समाज के निरीह आम लोगों के जीवन को खतरे में डालना किसी भी सूरत न्याय-संगत करार नहीं दिया जा सकता। इस घटना की भयावहता को देखते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और केन्द्रीय गृहमंत्री ने भी संवेदना व्यक्त की है। इस घटना की बाकायदा जांच हेतु एक विशेष टीम (सिट) के गठन का आदेश भी दिया गया है, किन्तु अतीत का अनुभव यही दर्शाता है कि समय के अंतराल पर ऐसी घोषणाएं अक्सर पृष्ठभूमि में चली जाती हैं। प्रदेश सरकार ने प्रत्येक मृतक के लिए दो-दो लाख की मुआविज़ा राशि देने की भी घोषणा की है, किन्तु इन दो लाख रुपयों से मरने वालों को लौटाया तो नहीं जा सकता, खास तौर पर इस त्रासदी में जो पूरे के पूरे परिवार मौत के मुंह में गये हैं, उनके सगे-संबंधियों की पीड़ा और वेदना को समझा जाना चाहिए। हम समझते हैं कि सरकार एवं प्रशासन को इस घटना को पूरी गम्भीरता के साथ लेना चाहिए, और इसके घटित होने की जवाबदेही तय होनी चाहिए। मृतकों के संबंधियों और प्रभावित होने वालों को समुचित मुआविज़ा भी मिलना चाहिए। सरकार और प्रशासन को इस घटना के प्रति पहले जैसी उदासीनता तो कदापि नहीं दिखानी चाहिए। अनियोजित और त्रुटिपूर्ण व्यवस्था वाली औद्योगिक इकाइयों की शिनाख्त कर उन्हें समुचित सुरक्षा प्रबंधों को अपनाने हेतु विवश किया जाना चाहिए। उद्योगों के लिए ट्रीटमैंट प्लांट लगाने और फिर इस पानी को समुचित तरीके से किसी निर्दिष्ट केन्द्र पर डाले जाने की भी उचित व्यवस्था की जानी चाहिए। लुधियाना इस समय देश और प्रदेश का सर्वाधिक आबादी वाला प्रदूषित शहर बन कर रह गया है। इसकी वायु गुणवत्ता भी बड़े निचले स्तर की है। हम समझते हैं कि थोड़े से अतिरिक्त प्रयासों और सरकार, प्रशासन एवं उद्योगपतियों के आपसी सहयोग और परामर्श से इस प्रकार की घातक त्रासदियों से भविष्य को सुरक्षित किया जा सकता है। विशेषज्ञों ने प्रभावित स्थल से कुछ नमूने लिये भी हैं। तथापि यह कार्य जितनी शीघ्र नियोजित किया जाएगा, उतना ही इस शहर, ज़िला और पूरे प्रदेश के लिए उचित एवं उत्तम सिद्ध होगा।