आज विश्व हास्य दिवस पर विशेष खुशहाल जीवन की कुंजी है हास्य

किसी ने बिल्कुल सही कहा है कि जीवन में हास्य का वही महत्व है, जो भोजन में नमक का है। साहित्य में नौ रस माने गये हैं। इनमें से एक हास्य रस भी है। वास्तव में हास्य जीवन की एक ऐसी पूंजी है, जो हंसने वाले को तो स्वस्थ रखती ही है, हंसने वाले शख्स के आसपास रहने वाले लोगों को भी खुश और सकारात्मक रखती है। यह हास्य की ऊर्जा का ही कमाल है कि कई-कई घंटों तक हास्य कार्यक्रम देखने के बाद भी कोई थकता या ऊबता नहीं है। लेकिन सवाल है कि जब जीवन में हास्य की इस कदर महत्ता स्वयंसिद्ध है, तो फिर हर कोई हास्य का आनंद क्यों नहीं लेता? क्योंकि हर किसी के पास हंसने के लिए उपयुक्त माहौल नहीं होता और बिना अनुकूल माहौल या वातावरण के हंसना कतई संभव नहीं होता। हंसने के लिए ज़रूरी है कि हमारे इर्द-गिर्द एक खुशनुमा माहौल हो और यह माहौल तभी संभव है, जब हमारे आसपास ऐसे दोस्त, ऐसे सहकर्मी हों, जो हंसने का माहौल बनाएं और होंठों से बेसाख्ता हंसी छूट जाए।
शायद हंसने की इसी मुश्किल को ध्यान में रखकर विश्व हास्य दिवस के प्रणेता और हास्य योग आंदोलन के संस्थापक डॉ. मदन कटारिया ने पहली बार 11 जनवरी 1998 को देश की वित्तीय राजधानी मुंबई में विश्व हास्य दिवस मनाने की शुरुआत की। इसका प्रयोजन हंसने की एक ऐसी व्यवस्था ईजाद करनी थी, जहां हर कोई हंस सके। इसलिए लोग किसी सार्वजनिक स्थान में इकट्ठा होते और सामूहिक रूप से हंसने का अभ्यास करते। धीरे-धीरे सामूहिक रूप से हंसने की यह कला लोगों को रास आने लगी और देखते ही देखते मुंबई ही नहीं बल्कि पूरे देश और फिर दुनियाभर में लोकप्रिय होने लगी। तब विश्व हास्य दिवस को हर साल मई माह के पहले रविवार को मनाया जाना तय किया गया। मिलकर कोशिश न हंसने की इस कला को हास्य योग का नाम दिया गया। आज दुनियाभर में ऐसे हजारों की तादाद में हास्य क्लब हैं, जहां लोग स्वस्थ और सानंद रहने के लिए प्रयोजित तरीके से हंसते हैं। पिछली सदी के आखिरी दशक के आखिरी सालों में शुरु किया गया यह हास्य आंदोलन इस कदर विश्वव्यापी हुआ कि आज की तारीख में हठ योग के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा लोकप्रिय यही हास्य योग है।
दुनिया में आज करीब 6800 से ज्यादा हास्य क्लब मौजूद हैं। जहां लोग इकट्ठे होकर सामूहिक रूप से हंसते हैं, क्योंकि वे जानते हैं- हंसना ही जीवन है, हास्य में ही खुशहाल जीवन की कुंजी है। आज दुनिया के 115 से ज्यादा देशों में हास्य दिवस मनाया जाता है। इस दिन लोग हास्य के जरिये अपने बेहतर स्वास्थ्य बनाने का तो संकल्प लेते ही हैं, दुनिया में तनाव को दूर करने, शांति को स्थापित करने और मशीनीकृत जीवनशैली से उबरकर खुशहाल मानवीय जीवन गुजारने का भी संकल्प लेते हैं। विज्ञान साबित कर चुका है कि हंसी से अच्छी सेहत के लिए कोई दूसरी दवा नहीं है। यही कारण है कि आज बड़े-बड़े शहरों के सार्वजनिक पार्कों में सुबह-सुबह लोग इकट्ठे होकर सामूहिक रूप से हंसते हैं। इसमें सभी तरह के लोग होते हैं, डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, आम आदमी और कारोबारी। ये सब सुबह-सुबह सार्वजनिक जगहों में एकत्र होकर दिनभर सुकून से गुजारने के लिए 10 से 20 मिनट का हास्य योग करते हैं। 
हंसने के स्वास्थ्य संबंधी फायदों को लेकर दुनिया के हर कोने में मैडीकल और मनोवैज्ञानिक शोध हो चुके हैं और सभी में पाया गया है कि हर तरह से दिन में 10 मिनट बेफिक्र होकर हंस लेना, स्वस्थ और सुकून से जीवन जीने की गारंटी है। वास्तव में हंसना एक ऐसी शक्तिशाली भावना है, जो व्यक्ति में जबरदस्त ऊर्जा का संचार करती है। जब कई लोग मिलकर एक साथ हंसते हैं, तो उनकी यह समवेत हंसी एक ऐसा विद्युत चुबंकीय क्षेत्र निर्मित करती है, जिसके दायरे में आने वाला हर व्यक्ति सकारात्मक ऊर्जा से भरा होता है। हंसने से हमारे शरीर के आंतरिक भागों और चेहरे की मांसपेशियों को बहुत लाभ मिलता है। हंसने से लेक्टिव एसिड जैसा दूषित प्रदार्थ शरीर से बाहर निकल जाता है और मस्तिष्क की अल्फावेन एक्टिव हो जाती हैं, जबकि बीटा वेन डाउन हो जाती हैं, जिससे आनंद की अनुभूति बढ़ जाती है। हास्य से भय, तनाव और अवसाद दूर हो जाते हैं। विभिन्न शोधों ने यह भी साबित किया है कि अकेले से ज्यादा समूह में हंसने से फायदा होता है।
मानव इतिहास में यह पहला ऐसा दौर है जब इंसान सबसे ज्यादा व्यस्त है। 15वीं, 16वीं शताब्दी में भले जीवन कितना ही कठिन रहा हो, भले विज्ञान का बिल्कुल विकास न हुआ हो, लेकिन तब लोग दिन में औसतन 3 से 4 घंटे ही कड़ी मेहनत किया करते थे। इसके बाद जैसे जैसे इंसान विकसित होता गया, उसके काम और व्यस्तता के घंटे बढ़ते गये। इसके बावजूद पिछली सदी के मध्यार्ध तक यानी 1950 के दशक तक दुनिया का हर व्यक्ति हर दिन औसतन 4 से 4.5 घंटे ही काम करता था। लेकिन आज दुनिया का हर इंसान चाहे वह महानगरों में रहता हो, चाहे छोटे शहरों अथवा गांव में, औसतन हर दिन 8 से 10 घंटे काम करता है। सुबह जगने से लेकर रात सोने तक वह सक्रिय रहता है। निश्चित रूप से यह काम जहां हमारे तमाम सुखों और सहूलियतों का आधार है, वहीं यह ज़रूरत से ज्यादा समय तक किया गया काम हमें शारीरिक रूप से थकाता है और मानसिक रूप से चिड़चिड़ा बनाता है। 
नतीजा होता है मानसिक तनाव, एंजाइटी और डिप्रेशन। इससे उबरने का सबसे अच्छा तरीका हास्य ही है। यह अकारण नहीं है कि जिन शहरों में सबसे ज्यादा युवा, सबसे ज्यादा घंटों तक टूटकर काम करते हैं, उन्हीं शहरों में सबसे ज्यादा स्टैंडअप कमेडी की मांग है। गुड़गांव और बेंग्लुरु हिंदुस्तान के दो ऐसे शहर हैं, जो आईटी सेक्टर के हब हैं और जहां सबसे ज्यादा युवा कार्यरत हैं। आईटी क्षेत्र के युवा दुनिया के उन युवाओं में से है, जिनकी दैनिक नौकरी के घंटे औसतन 14 से 15 तक होते हैं। जाहिर है हर दिन इतना काम करने के बाद लोग टूटते हैं, ऊबते हैं, तब ऐसे लोगों को फिर से जोड़ने और तरोताजा बनाने में जिस चीज की सबसे बड़ी भूमिका होती है, वह हास्य है। हर दिन 10 मिनट हंसने से रक्तचाप, मधुमेह, एसिडिटी जैसी बीमारियाें की आशंका 50 प्रतिशत से ज्यादा कम हो जाती है। यही कारण है कि आज दुनिया में सैकड़ों ऐसे क्लब हैं, जहां हंसी को बतौर थैरेपी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

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