शिमला नगर निगम चुनाव नमोशीजनक कारगुज़ारी

हिमाचल में कांग्रेस ने पहले विधानसभा चुनाव जीते, और अब प्रदेश की राजधानी शिमला हेतु सम्पन्न हुए नगर निगम चुनावों में भी कांग्रेस ने विजय-श्री का वरण किया है। मुद्दा यह भी है कि प्रदेश कांग्रेस ने न केवल स्थानीय निकाय की शिमला इकाई में भारतीय जनता पार्टी से सत्ता हथियाई है, अपितु दो तिहाई बहुमत के साथ नगर निगम पर कब्ज़ा किया है। वर्ष 2017 के पिछले नगर निगम चुनावों में भाजपा पहली बार 17 सीटों पर काबिज़ हुई थी जबकि कांग्रेस को इस सदन में 12 सीटें हासिल हुई थीं। 2017 के चुनाव में चार निर्दलीय भी विजयी हुए थे किन्तु इस बार एक भी निर्दलीय चुनाव नहीं जीत सका।  शिमला नगर निगम के कुल 34 वार्ड हैं, और कांग्रेस ने इनमें से 24 वार्डों पर अपनी जीत का परचम लहराया है। भाजपा को इस बार केवल 9 सीटों से ही संतोष करना पड़ा है हालांकि भाजपा ने यह चुनाव भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर ही लड़ा था।  एक सीट मार्क्सवादियों ने जीती है जबकि बड़ी धूमधाम और बहुत ज़ोरदार वायदों के साथ मैदान में उतरी आम आदमी पार्टी के हिस्से में सिर्फ ज़ीरो ही आया है। इन चुनावों में कांग्रेस और भाजपा ने 34-34 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किये थे। आम आदमी पार्टी ने 21 उम्मीदवारों के हाथों में चुनाव चिन्ह हेतु झाड़ू पकड़वाया था, किन्तु इसे इस पार्टी की कारगुज़ारी कहिये अथवा इसकी नियति, कि उसकी तमाम उम्मीदों पर पानी फिर गया है, और कि उसके सभी उम्मीदवारों की ज़मानत तक ज़ब्त हो गई है। इस बार के चुनाव परिणाम में 20 महिलाएं भी निगम चुनाव जीत गई हैं। इनमें से कांग्रेस की 14 और भाजपा की 6 महिला पार्षद चुनाव जीती हैं। पांच अनारक्षित सीटों पर भी महिलाओं ने फतेह हासिल की है। इस प्रकार मौजूदा शिमला निगम सदन में महिलाओं का वर्चस्व बने रहने की सम्भावना है। ‘आप’ की इस कड़ी पराजय से पड़ोसी प्रांत पंजाब में भी ‘आप’ की राजनीतिक सम्भावनाओं पर कुछ न कुछ असर अवश्य पड़ेगा।
नि:संदेह शिमला नगर निगम चुनावों में पराजय से आम आदमी पार्टी को भारी आघात लगा है। दिल्ली और पंजाब में सत्ता संभालने के बाद ‘आप’ को गुजरात में उसकी कारगुज़ारी के दृष्टिगत चुनाव आयोग ने बेशक राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्रदान कर दिया था किन्तु सिर मुंडाते ही जैसे ओले पड़े हों, हिमाचल में अपने लिए एक और सुरक्षित किला तलाश कर रही आम आदमी पार्टी एक पहाड़ तक नहीं चढ़ सकी। पहले विधानसभा चुनाव और अब नगर निगम चुनाव में ‘आप’ के सभी उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो जाने से यह पार्टी इस प्रदेश में जैसे नेतृत्वविहीन होकर रह गई है। हिमाचल प्रदेश की यह परम्परा रही है, कि प्रदेश की जनता हर नये चुनाव में बदलाव लाती रही है। प्रदेश में पिछली बार 2017 के चुनावों में जय राम ठाकुर के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी थी जबकि विगत वर्ष दिसम्बर में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेसी दिग्गज नेता वीरभद्र सिंह के देहावसान  के बाद पहली बार हुए प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने फिर जीत हासिल की। मुख्यमंत्री सुखविन्द्र सिंह सुक्खू और उप-मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री के नेतृत्व में गठित हुई इस सरकार के दौरान कांग्रेस ने शिमला नगर निगम चुनावों में भी दो-तिहाई बहुमत के साथ जीत हासिल कर ली तो नि:संदेह यह जीत कांग्रेस सरकार की अल्पावधि वाली कार्यप्रणाली पर भी आम लोगों द्वारा पुष्टि की मुहर लगाए जाने जैसी है। शिमला नगर निगम चुनावों में इस बार मतदान की प्रतिशतता भी पिछली बार के चुनावों से अधिक रही है जिसका लाभ नि:संदेह कांग्रेस को मिला है। आम आदमी पार्टी मतदान प्रतिशतता के मामले में भी पिछड़ गई। 
हम समझते हैं कि हिमाचल प्रदेश में इस पार्टी की इस दयनीय स्थिति का पता तो तभी चल गया था, जब जंग शुरू होने से पहले ही इसके अनेक योद्धा रथ और रथवानों सहित कांग्रेस पार्टी में जा शामिल हुए थे। नेतृत्व के धरातल पर भी केजरीवाल और भगवंत मान दाल की हांडी चूल्हे पर चढ़ा कर शायद भूल गये थे। इससे दाल तो जली ही, हांडी भी टूट गई। चुनावों के दौरान भी ‘आप’ के तमामतर बड़े-छोटे नेता और कार्यकर्ता पंजाब के जालन्धर लोक सभा चुनाव में व्यस्त रहे और शिमला की वादियों में ‘आप’ की सेना बिना किसी जरनैल के नि:सहायता की स्थिति में लड़ते-लड़ते हांफ कर रह गई। नि:संदेह उसका यह हांफना अन्य प्रदेशों में उसकी दुर्बलता बनेगा। तथापि, इस दुर्बलता का रूप-आकार क्या होगा, यह अभी देखने वाली बात होगी। अलबत्ता प्रदेश कांग्रेस सरकार के नेतृत्व में शिमला नगर निगम की इतनी बड़ी जीत के दृष्टिगत मुख्यमंत्री सुक्खू के कंधों पर लोगों को न्याय, विश्वास और समानता पर आधारित शासन प्रदान करने की ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है।