मणिपुर में बिगड़ते हालात

उत्तरी-पूर्वी भारत के प्रदेशों में अक्सर अशांति बनी रहती है। ये प्रदेश हर-भरे वनों से ढंके हुए हैं। इनमें ज्यादातर जनसंख्या कबायली मूल के लोगों की है। मणिपुर प्रदेश में भी अधिकतर कबीलों के लोग रहते हैं। यह प्रदेश छठी अनुसूचि के क्षेत्र में आता है, जिसमें वनों तथा नदियों सहित प्राकृतिक स्रोतों पर वहां के निवासियों के अधिक अधिकार होते हैं। इन पर सरकार का ज्यादा अधिकार नहीं होता। विगत अवधि में इन स्थानों पर कुछ कबीलों के लोगों को भांग की कृषि करने से रोका भी गया था जिसकी तीव्र प्रतिक्रिया हुई थी। इसके साथ ही यहां पड़ोसी देश म्यांमार से बड़ी संख्या में मिज़ोरम के रास्ते शरणार्थी भी दाखिल हो गये थे। एक अनुमान के अनुसार उत्तर-पूर्व के इन सात प्रदेशों में इन शरणार्थियों जिनमें मिज़ो-चिन तथा रोहिंग्या मूल के लोग हैं, की संख्या 50,000 से भी अधिक हो चुकी है। मणिपुर में नागा तथा कूकी कबीलों के लोग भी रह रहे हैं परन्तु वहां अधिकतर संख्या मैतेई कबीले के लोगों की है। इस कबीले के लोग भी एस.टी. (शैड्यूल ट्राईब) अभिप्राय अनुसूचित कबीलों का दर्जा प्राप्त करने के लिए लम्बी जद्दोजहद करते रहे हैं ताकि उन्हें भी रियायतें मिल सकें। प्रदेश के उच्च न्यायालय ने जब बड़ी संख्या वाले मैतेई कबीले को यह दर्जा देने का फैसला कर दिया तो कूकी तथा नागा कबीलों के लोगों ने इसके विरुद्ध रोष मार्च निकाला और इससे साम्प्रदायिक दंगे शुरू हो गये। इन आपसी झड़पों में बड़ी सीमा तक तबाही हुई तथा दर्जनों ही लोग मारे गये। सैकड़ों ही घायल हो गये तथा 35,000 से अधिक लोगों को घर से बेघर होना पड़ा। ऐसे समय में भाजपा की ज़िम्मेदारी अधिक बढ़ जाती है क्योंकि वहां दूसरी बार मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह के नेतृत्व में इस पार्टी की सरकार बनी हुई है। नि:सन्देह वहां अफीम तथा अन्य नशों की समस्या है। केन्द्रीय कानून के अनुसार वनों के क्षेत्र को सुरक्षित रखा गया है परन्तु मैतेई कबीले को अनुसूचित  जन-जाति का दर्जा मिलने से उनका हर तरह से वन क्षेत्रों में हस्तक्षेप बढ़ जायेगा। मणिपुर में 90 प्रतिशत भूमि पहाड़ी है। सिर्फ अनुसूचित जन-जाति के लोग ही यह ज़मीन खरीद सकते हैं। सदियों से वहां रहते अन्य कबीलों को इस तरह अपने स्रोत छिन जाने का भय लगातार बना रहा है। समूचे रूप से कबीलों का यह पेचीदा ताना-बाना अक्सर वहां तनाव पैदा कर देता है। इस बेहद नाज़ुक स्थिति को देखते हुये सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्देश दिया है कि यह एक मानवीय मामला है, जिस पर संबंधित सरकार को शीघ्र कड़ी कार्रवाई करने की ज़रूरत है, ताकि वहां भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों की लड़ाई को रोका जा सके। इन प्रदेशों में बड़ी संख्या में ईसाई तथा मुस्लिम समुदाय के लोग भी रहते हैं, जिनके कारण यहां अक्सर कबीलों के आपसी विवाद के साथ-साथ धर्म के नाम पर भी विवाद होते रहते हैं। इसलिए ही सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को हर स्थिति में धार्मिक स्थलों को क्षति से बचाने हेतु कड़े निर्देश दिये हैं।
नि:संदेह इन प्रदेशों में जातीय विवादों ने जहां इनके विकास में बड़ी रुकावट डाल रखी है, वहीं ये प्रांतीय सरकारों के साथ-साथ केन्द्र के लिए भी एक ऐसी उलझन बने रहे हैं, जिसे हल करना आसान नहीं है, परन्तु देश के लिए यह क्षेत्र बेहद महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह चीन की सीमा के साथ भी जुड़ा हुआ है। चीन अक्सर इस क्षेत्र पर अपनी नज़र रखता रहा है, ताकि यहां फैली किसी भी गड़बड़ का वह अपने ढंग-तरीके से लाभ ले सके। भारत सरकार के लिए भी इस क्षेत्र का विकास तथा बड़ी संख्या में ़गरीबी में रह रहे लोगों की सुधि लेना और उनकी समस्याओं का हल निकालना एक बड़ी चुनौती है, परन्तु यह सब कुछ तभी हो सकता है यदि इस क्षेत्र में शांति तथा सद्भावना बनी रहे। इसलिए इस प्रदेश की भाजपा सरकार तथा केन्द्र सरकार को आपसी तालमेल के साथ सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की रौशनी में उच्च न्यायालय के फैसले के कारण उपजे मामले का कोई शांतिपूर्ण हल निकालने को विशेष अधिमान देना चाहिए।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द