मारवाड़ का गौरव ऐतिहासिक सूर्यनगरी जोधपुर
मारवाड़ का गौरव जोधपुर देशभक्ति, साहस, त्याग एवं बलिदान के साथ-साथ अपनी संस्कृति व स्थापत्य कला के साथ-साथ कलात्मक व नैसर्गिक सौंदर्य के कारण जोधपुर थार मरूस्थल का प्रवेश द्वार तथा सूर्यनगरी के नाम से अपनी विशिष्टता को बनाये हुए है।
राजस्थान में वर्ष 1949 में सम्मिलित होने से पूर्व जोधपुर तत्कालीन मारवाड रियासत की राजधानी थी। जोधपुर की स्थापना राव जोधा ने विक्रम संवत् 1515 की ज्येष्ठ सुदी शनिवार को (12 मई 1459 ई.) भव्य किले की नींव रखकर उसके चारों और नगर बसाया जो उनके नाम पर जोधपुर कहलाया। मारवाड़ की राजधानी इससे पूर्व मंडोर थी। राव जोधा द्वारा बनाया मेहरानगढ़ दुर्ग...वर्षो के बाद आज भी उसी वैभव एवं शालीनता के साथ खड़ा है। अपने चातुर्दिक बसे जोधपुर नगर के मुकुट के समान शोभायमान इस ऐतिहासिक किले के चारों सुदृढ़ परकोटा है, जो 120 फीट ऊंचा और 20 फुट चौड़ा है।
किले की प्राचीर में विशाल बुर्जे बनी हुई हैं, जिसके कारण ही मुगलों के आक्रमण के बावजूद यह दुर्ग अभेद्य ही रहा। दुर्ग के परकोटे के साथ ‘सात’ दरवाजे हैं जो स्थापत्य कला के अनुपम नमूने हैं। इन सात दरवाजों में नागौरी गेट, मेड़ती गेट, चांदपोल, सोजती गेट, जालोरी गेट, सिवांची गेट व सिंघोड़ा की बारी प्रमुख है। किले में प्रवेश का मुख्य द्वार उत्तर पूर्व में जयपोल और दक्षिण पश्चिम में फतेहपोल है।
राव जोधा के समय तक यह दुर्ग ‘लोहापोल’ तक बना था लेकिन बाद में वंश-दर-वंश राजगद्दी पर बैठने वाले महाराजाओं ने विभिन्न पोलो का निर्माण करवाया। कई महाराजाओं ने अपने शासन काल में विभिन्न युद्धों के दौरान विजय हासिल करने के पश्चात् अनेकानेक निर्माण कार्य करवाये। इन महाराजाओं में महाराजा अजीत सिंह, राव मालदेव, महाराजा विजय सिंह, महाराजा मानसिंह, गजसिंह आदि प्रमुख है। जोधपुर का किला अपने अनूठे स्थापत्य और विशिष्ट संरचना के कारण भी विशेष पहचान रखता हैं लाल पत्थरों से निर्मित और जालियों व झरोखों से सुशोभित इस किले के महल राजपूत स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं इनमें महाराज सवाई सूरसिंह द्वारा विक्रम संवत् 1602 के लगभग निर्मित मोती महल सुनहरी अलंकरण व संजीव चित्रांकन के लिए प्रसिद्ध है। इसकी छत व दीवारों पर रमणीय सोने के कार्य आज भी ज्यों का त्यों हैं, किले के भीतर महलों में फतेह महल, ख्वाबगाह महल, तख्त विलास, दौलतखाना, चोखेलाव महल, बिचलामहल, रनिवास, विलहखाना तथा तोपखाना उल्लेखनीय हैं दौलत खाने के आंगन में महाराजा तख्त सिंह द्वारा निर्मित सिंणगार चौकी (श्रृंगार चौकी) है, जहां जोधपुर के राजाओं का राजतिलक होता था। पास ही में स्थित एक विशाल कक्ष में सोने व चांदी की विशाल पालकिंया रखी हुई हैं। जिनमें सोने का महाडोल प्रमुख है। किले में बने तमाम महलों में शस्त्रागार, चित्रांकन कला, सूक्षम कारीगरी के नमूने, हस्तशिल्प के कार्य देखे जा सकते है, किले में ही राठौडों की कुलदेवी ‘चामुण्डा मां’ का दर्शनीय मंदिर भी है। जहां कभी मनुष्यों की बलि राजपरिवार द्वारा नवरात्रों में दी जाती थी।
जोधपुर शहर से 7 कि.मी. दूर मण्डोर बसा हुआ है जो पूर्व में मारवाड़ की राजधानी के रूप में माण्डव्यपुर के नाम से जाना जाता था। मण्डोर राजपरिवारों के सैर सपाटों का रमणीय स्थल है जहां अनेकों महाराजाओं का अंतिम संस्कार कर उन पर भव्य देवलों तथा छतरियों का निर्माण करवाया जो मण्डोर के नैसर्गिक सौंदर्य में चार चांद लगाती हैं। मंडोर के देवलों में महाराजा अजीत सिंह व तख्त सिंह के देवल नक्काशी के बेहतरीन नमूने हैं। यही पर एक पत्थर की चट्टान को काटकर बनाया गया ‘इक थम्बा महल भी है तो समीप ही पचकुण्डा में एक से बढ़कर एक नक्काशीदार गढ़ाई युक्त छतरियां हैं जो महाराजाओं की रानियों की स्मृति में बनी हुई हैं। यहां पर तनापीर की दरगाह, मकबरे, जैन मन्दिर तथा वैष्णव मन्दिर सभी एक क्षेत्र में है जो साम्प्रदायिक सद्भाव की अनूठी मिसाल है।
जोधपुर के सफेद छीतर के पत्थरों से बना भव्य उम्मेद भवन पैलेस एशिया के भव्य प्रासादों में एक है व समूचे विश्व के निजी महलों में सबसे बड़े महल के रूप में हैं। यह महल महाराजा उम्मेद सिंह की गौरव गाथा का कीर्ति स्तंभ हैं विश्व के अनेक देशों में इसे टेम्पल मांउटेन पैलेस के नाम से पहचाना जाता है।
पर्यटकों के लिए यह अपलक निहारने वाली कृति है तो इतिहासकारों के लिए कला का अद्भुत उदाहरण है। एक सौ साठ फुट ऊंचे इस प्रासाद में सौ कमरे, साठ बेडरूम, बीस स्टेट रूम तथा इतनी लंबी गैलेरी है कि प्रत्येक हिस्से में लगाई गई दौड़ की कुल दूरी छह मील के बराबर है। 13 फरवरी 1943 के दिन महाराज कुमार हनवंत सिंह के विवाह के अवसर पर महाराजा उम्मेद सिंह ने इस भवन के द्वार पर लगे सोने के ताले को खोलकर इसका उद्घाटन किया था। उस समय यह डेढ़ करोड की लागत से बनकर तैयार हुआ था। इसकी बारादरी में लगे लॉन में दस हजार लोगों के बैठने की क्षमता है।
आजकल यह भवन पांच सितारा होटल के रूप में है व इसके एक भाग में जोधपुर के तत्कालीन महाराज गजसिंह सपरिवार रहते हैं। पर्यटकों के ठहरने का यह प्रमुख स्थल है। जोधपुर में रंगाई, छपाई, बंधेज, सोने व लकड़ी पर की गयी कारीगरी, प्रस्तर कला, कलात्मक चमड़े की जूतियां व अन्य हस्तकला से प्रभावित होकर देश-विदेश के लाखों पर्यटक यहां आते हैं। वर्ष भर यहां विदेशी सैलानियों का हूजूम रहता है। (सुमन सागर)