चीड़ का पेड़-भारत के लिए वरदान या अभिशाप

70 और 80 के दशक की बॉलीवुड फिल्मों में हम सबने हीरो और हीरोइन को जिन खूबसूरत पेड़ों के इर्दगिर्द नाचते, गाते देखा है, उनमें से ज्यादातर चीड़ के पेड़ हैं। कुछ लोग चीड़ के पेड़ को देवदार का पेड़ भी समझ लेते हैं, लेकिन चीड़ और देवदार अलग-अलग हैं। चीड़ का पेड़ धरती पर सीधा तना खड़ा रहता है। इसमें शाखाएं और प्रशाखाएं निकलकर इसके शंकवाकार आकार की रचना करती हैं। पूरी दुनिया में करीब 115 चीड़ की प्रजातियां पायी जाती हैं, जिनमें करीब 30 प्रजातियां भारत में भी पायी जाती हैं। यूं तो चीड़ का पेड़ पहले से भी हिंदुस्तान में रहा है, लेकिन औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों ने पहाड़ी क्षेत्रों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए और धन कमाने के लिए चीड़ के बड़े-बड़े वन लगवाए। 
आज उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में जो करीब 12 हजार वर्ग किलोमीटर का वन क्षेत्र है, उसमें करीब 4.2 हजार वर्ग किलोमीटर अकेले चीड़ का वन है। जहां तक चीड़ के पेड़ के आर्थिक महत्व की बात है, तो चीड़ की लकड़ी दुनिया की सबसे उन्नत किस्म की लकड़ी मानी जाती है। यही वजह है कि पूरी दुनिया में इसकी बहुत मांग है। आज भी पुलों के निर्माण में, रेलगाड़ी के लिए पटरियां बिछाने में और दुनिया के सबसे महंगे फर्नीचर के निर्माण में, चीड़ या पाइन की लकड़ी का ही इस्तेमाल होता है। अपनी इसी उपयोगिता के कारण चीड़ की लकड़ी दुनिया की सबसे कीमती लकड़ी है। दुनिया की आधी से ज्यादा रेल की पटरियाें में जो लकड़ी के गाटर बिछे हैं, वो चीड़ की लकड़ी के ही हैं।
लेकिन हिंदुस्तान में चीड़ को लेकर लगातार एक लम्बी बहस है कि अंग्रेजों द्वारा विशेष रूप से संरक्षित रहा यह पेड़ भारत के लिए फायदेमंद है या नुकसानदेह। ऐसे लोगों का एक बड़ा समूह है, जो इसे पहाड़ों का सबसे बड़ा संकट मानता है, जबकि अंग्रेज इसे पहाड़ों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए लाये थे। चीड़ का विरोध करने वालों का मानना है कि चीड़ के जंगलाें में हर साल जो आग लगती है, उससे करोड़ों रुपये की वन संपदा नष्ट हो जाती है और इससे प्राकृतिक जलस्रोतों का भी नुकसान होता है। पहाड़ की अर्थव्यवस्था के आधार के रूप में अपनाये गये चीड़ के पेड़ को ऐसे लोग पहाड़ की बर्बादी का कारण मानते हैं। उनके मुताबिक चीड़ का सबसे बड़ा दुर्गुण यह है कि जहां इसके घने जंगल मौजूद हैं, वहां जमीन की उर्वराशक्ति खत्म हो गई है। क्योंकि चीड़ की पत्तियां पिरुल इस तरह से चीड़ आच्छादित भूमि को ढक लेती हैं कि उस जमीन की सारी उर्वराशक्ति क्षीण हो जाती है। इसलिए एक बड़ा वर्ग है जो उत्तराखंड में चीड़ उन्मूलन की दशकों से बात कर रहा है।
जबकि दूसरी तरफ एक ऐसा वर्ग भी है, जो न सिर्फ पहाड़ों की खूबसूरती, उसकी आर्थिक बल्कि जैवविविधता के लिए भी चीड़ को बहुत महत्वपूर्ण पेड़ मानता है। जैवविविधता की दृष्टि से देश की सबसे महत्वपूर्ण रानीखेत की वादियों में चीड़ के कुछ ऐसे पेड़ भी हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि ये डिवोनी युग यानी डायनासोरकाल के हैं। यहां चीड़ की 20 प्रजातियों के पेड़ हैं। यही नहीं इस घाटी को चीड़ की संरक्षणस्थली भी कहा जाता है। जहां एक तरफ कुछ लोग चीड़ के पेड़ का जंगल की आग का सबसे बड़ा दोषी मानते हैं, वहीं कुछ लोग चीड़ के पेड़ों का जंगल की आग का सबसे बड़ा शिकार मानते हैं। रानीखेत की घाटी में चीड़ के पेड़ के संरक्षण के लिए बनाया गया पाइनेटम में चीड़ को लेकर कई महत्वपूर्ण शोध हुए हैं, जो इसके आर्थिक महत्व को तो उजागर करते ही हैं, इसके औषधीय महत्व पर भी प्रकाश डालते हैं।
चीड़ की पत्तियों से बनने वाले तारपीन से वायुमंडल शुद्ध रहता है, इसलिए जब टीबी के मर्ज का मैडीकल के पास कोई इलाज नहीं था, तब चीड़ के जंगल में टीबी के मरीजों के लिए सेनिटोरियम खोले जाते थे। 1965 में रानीखेत में विकसित की गई चीड़ की सरंक्षणस्थली में इसके अनेक गुणों का अध्ययन किया गया है और इसे इंसान के लिए बेहद महत्वपूर्ण पेड़ माना गया है। रानीखेत में चीड़ की 20 देशों से ज्यादा की प्रजातियां हैं। जापान, न्यूजीलैंड़, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया- इन सभी देशों की महत्वपूर्ण चीड़ प्रजातियां रानीखेत की चीड़ घाटी में मौजूद हैं। यहां पर 5 हेक्टेयर के क्षेत्र को चीड़ टूरिज्म के रूप में भी विकसित किया गया है। यहां हुए शोध से यह भी पता चला है कि चीड़ की कई प्रजातियां अग्निरोधी भी होती हैं। 
जहां तक चीड़ के औषधीय गुणों की बात है तो इससे तारपीन का तेल बनता है, जो कमर, जोड़ों के दर्द, गठिया आदि में बहुत असर करता है। मौसमी बुखार, हैजा, प्लेग आदि के संक्रमण से तारपीन का तेल बचाता है। चीड़ का गोंद भी बहुत सारे काम में आता है। चीड़ से बनने वाला फर्नीचर दुनिया का सबसे महंगा और सबसे मजबूत फर्नीचर होता है। इस तरह अगर देखें तो जहां एक तरफ कुछ लोग चीड़ को पहाड़ों का अभिशाप मानते हैं, वहीं तमाम वैज्ञानिक शोधों के साथ कुछ लोग इसे पहाड़ का वरदान साबित करते हैं।         

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर