अगले विधानसभा चुनाव तय करेंगे कांग्रेस-भाजपा का भविष्य

आगामी वर्ष अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम समय रह गया है जिसके ठीक पहले कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी की शानदार जीत ने पार्टी और उसके नेताओं अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी का हौसला बुलंद कर दिया है। देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए ऐसी जीत की सख्त आवश्यकता थी ताकि वह अपनी साख फिर से स्थापित कर दिखाये कि वह अपने दम पर बड़े राज्यों में भाजपा को हरा सकती है।
2019 के संसदीय चुनावों के बाद सेए कांग्रेस हिमाचल को छोड़कर सभी विधानसभा चुनाव हार गयी थी।इस तरह कर्नाटक में उसे मिली बड़ी जीत को उनके मनोबल बढ़ाने से कहीं अधिक माना जा सकता है। आगामी लोकसभा चुनावों के पहले पांच राज्यों में कांग्रेस और भाजपा के बीच चुनावी दंगल होगा, जिसकी प्रकृति उनका भविष्य निर्धारित करने जैसी होगी।
भाजपा के कर्नाटक में बुरी तरह परास्त होने के बाद कांग्रेस को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा, जिनमें संकट को अवसर में बदलने की अदम्य क्षमता है। प्रधानमंत्री और उनकी टीम भाजपा की हार से सबक लेगी और जीतने की रणनीति को फिर से तैयार करेगी—आगामी पांच विधानसभा चुनावों और अंत में 2024 में लोकसभा चुनाव, दोनों के मामले में। नरेंद्र मोदी एक बड़े सशक्त राजनीतिक नेता हैं और उनके पास आर.एस.एस. की संगठनात्मक शक्ति भी है और उसे गति देने के लिए विशाल वित्तीय संसाधन भी। विपक्ष को दिल्ली की गद्दी से दूर रखने के लिए मोदी और भाजपा के राजनीतिक युद्ध को अंजाम देने वाला वार रूम किसी भी हद तक जा सकता है, इसमें कोई संदेह नहीं। कांग्रेस के लिए जश्न मनाने के लिए बहुत कम समय बचा है। साल के अंत तक मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिज़ोरम में राज्य विधानसभा चुनाव होने हैं। फिर 2024 में आंध्र प्रदेश, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में विधानसभा चुनाव होने हैं जो संभवत: लोक सभा चुनावों के साथ होंगे।
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा के सामने मुख्य पार्टी कांग्रेस है। 2018 के विधानसभा चुनावों में तीनों राज्यों को शुरुआत में कांग्रेस ने जीता था। कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने और राज्य सरकार के गठन के महीनों बाद दल-बदल के उपरान्त अब मध्य प्रदेश में भाजपा का शासन है। लेकिन तीनों राज्यों में कांग्रेस की ताकत हाल के ग्रामीण चुनावों में सफलता मिलने से स्थापित हुई है। तीनों राज्यों में जीत सुनिश्चित करने के लिए पार्टी को अपने सभी संगठनात्मक संसाधनों को जुटाना होगा। इन राज्यों में जीत प्राप्त करके कांग्रेस भाजपा के खिलाफ  विपक्षी खेमे का नेतृत्व करने के योग्य हो सकती है।
बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार के कहने पर पटना या दिल्ली में शीघ्र ही विपक्षी दलों की बैठक होने की संभावना है ताकि एकता के आकार पर चर्चा की जा सके और भाजपा विरोधी वोट में किसी भी विभाजन को रोकने के लिए पार्टियों की अधिकतम समझ स्थापित की जा सके। यह शुरू से ही स्पष्ट होना चाहिए कि इस तरह की समझ के लिए कोई समान सूत्र नहीं हो सकता है। प्रत्येक राज्य की अपनी मजबूरियां होती हैं और कोई भी राजनीतिक दल एकता के हित में अपने शक्ति आधार की उपेक्षा नहीं करना चाहेगा, जो परिणाम दे या न दे।
इसलिए सबसे अच्छा तरीका यह है कि प्रत्येक राज्य में सबसे मज़बूत भाजपा विरोधी दल को गठबंधन की प्रकृति तय करने में मुख्य भूमिका दी जाये। अभी चार राज्यों बिहार, झारखंड, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में सक्रिय विपक्षी गठबंधन है। पहले तीन में उसकी सत्तारूढ़ सरकारें हैं। यह गठबंधन संबंधित राज्यों में भाजपा को टक्कर देने के लिए पर्याप्त है। ज़रूरत पड़ने पर अन्य भाजपा विरोधी दलों को शामिल कर इसका विस्तार किया जा सकता है। इसी तरह केरल, बंगाल और पंजाब में विपक्ष का कोई समग्र गठबंधन नहीं हो सकता। पंजाब में भाजपा का बहुत कुछ दांव पर नहीं है और वहां ‘आप’ और कांग्रेस लोकसभा चुनाव में एक-दूसरे को टक्कर देंगे। ‘आप’ निश्चित रूप से पंजाब में कुल 13 सीटों में से अधिक से अधिक सीटें हासिल करने की कोशिश करेगी ताकि लोकसभा चुनाव के बाद की स्थिति में अपनी सौदेबाजी की ताकत बढ़ाये।
जहां तक दिल्ली का संबंध है, भाजपा से विपक्ष को खतरा है और इसलिए ‘आप’ और कांग्रेस के बीच एक समझ हो सकती है, अगर सभी सात सीटों पर भाजपा की हार सुनिश्चित करनी हो तो। बंगाल के संबंध में परिदृश्य स्पष्ट है कि ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस भाजपा से लड़ने वाली मुख्य पार्टी है और उसके सभी 42 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की उम्मीद है। कांग्रेस और वामपंथी टीएमसी और भाजपा दोनों के खिलाफ  लड़ सकते हैं लेकिन ज्यादातर सीटों पर लड़ाई सिर्फ  टीएमसी और भाजपा तक ही सीमित रहेगी।
केरल में वर्तमान पैटर्न कायम रहेगा। वाम मोर्चा और कांग्रेस नीत यूडीएफ  लड़ेंगे। वामपंथी कुछ और सीटें हासिल करने के लिए सभी प्रयास करेंगे क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनावों में एलडीएफ  को कांग्रेस की 15 और यूडीएफ  की 19 सीटों के मुकाबले केवल एक सीट मिली थी। यह दोनों मोर्चों के वास्तविक शक्ति आधार को नहीं दर्शाता था। इसलिए एलडीएफ  निश्चित रूप से 2024 में उस विकृति को दूर करने का प्रयास करेगा। (संवाद) (शेष कल)