अगले विधानसभा चुनाव तय करेंगे कांग्रेस-भाजपा का भविष्य

(कल से आगे)


फिर आंध्र प्रदेश और ओडिशा अलग श्रेणी के हैं। आंध्र प्रदेश में युवजन श्रमिक रायथू कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) अकेले चुनाव लड़ेगी, भाजपा और कांग्रेस दोनों के खिलाफ। ओडिशा में नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली बीजू जनता दल (बीजद) उभरती भाजपा और कांग्रेस दोनों के खिलाफ  लड़ेगी। ओडिशा के मुख्यमंत्री भाजपा के और विस्तार से अपने क्षेत्र को बचाने के लिए सभी प्रयास करेंगे।
तेलंगाना एक और राज्य है जो इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव का सामना करेगा, जिसमें सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) भाजपा और कांग्रेस से अलग-अलग जूझेगी। विधानसभा के नतीजे बतायेंगे कि भाजपा की चुनौती से निपटने के लिए बीआरएस और कांग्रेस के बीच किसी समझौते की संभावना है या नहीं। उत्तर पूर्व राज्यों में त्रिपुरा में भाजपा अपनी दो लोकसभा सीटों को खो सकती है यदि वाम-कांग्रेस गठबंधन ने टिपरामोथा के साथ समझौता किया, जो कि आदिवासियों की पार्टी है। भाजपा अपनी दो लोकसभा सीटें सुनिश्चित करने के लिए गठबंधन में टिपरामोथा को लुभाने का प्रयास कर रही है, लेकिन अभी तक कोई प्रगति नहीं हुई है। त्रिपुरा में भगवा को किनारे करने के लिए कांग्रेस टिपरामोथा के साथ समझौता करने की कोशिश कर सकती है।
असम में कांग्रेस अभी भी विपक्षी दलों के बीच प्रेरक शक्ति है, लेकिन भाजपा के खिलाफ संयुक्त विपक्ष को सुविधाजनक बनाने के लिए बहुत-सी समस्याओं को सुलझाना है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व शर्मा एक चतुर भाजपा नेता हैं और उत्तर-पूर्व में क्षेत्रीय दलों के बीच भाजपा के प्रभुत्व को सुनिश्चित करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। समग्रता में भाजपा को अपने गढ़ों में हराना कांग्रेस और क्षेत्रीय गठबंधनों की क्षमता पर निर्भर करेगा।
2019 के लोकसभा चुनावों में हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा को भारी संख्या में सीटें मिलीं थीं, लेकिन अभी जो स्थिति है, उससें उत्तर प्रदेश को छोड़कर भाजपा को बड़ी संख्या में सीटों का नुकसान हो सकता है। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में 65 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें से 2019 के चुनावों में कांग्रेस को तीन तथा भाजपा को 61 सीटें मिली थीं। इन तीन राज्यों से कांग्रेस की सीटों की संख्या न्यूनतम 30 को पार करना निश्चित लगता है। इसी तरह कर्नाटक में कुल 28 लोकसभा सीटों में से भाजपा को 25 सीटें मिली थीं। भाजपा का यह आंकड़ा 2024 के चुनाव में दस से कम हो सकता है और अगर लोकसभा चुनाव से पहले जद (एस) के साथ समझौता हो जाता है तो भाजपा को कुल 28 लोकसभा सीटों में से 5 से कम सीटें मिल सकती हैं।
अभी तक कांग्रेस के पास मौजूदा लोकसभा में जितनी सीटें हैं, उनमें कांग्रेस रणनीतिकार सुनील कानूगोलू के अनुसार उचित योजना के साथ 70 से 80 तक का इजाफा हो सकता है। इससे 2024 के चुनावों के बाद कांग्रेस का आंकड़ा 122 से 132 के बीच हो सकता है, जो लोकसभा की कुल 543 सीटों में से भाजपा को 170 सीटों से नीचे लाने के लिए पर्याप्त है। 2024 के लोकसभा चुनाव में पर्याप्त सीटों के साथ वाई.एस.आर.सी.पी. और बीजेडी विपक्षी गठबंधन के साथ सहयोग करने में रुचि लेंगे। 2004 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को केवल 114 सीटें मिलीं थीं और 2009 के चुनावों में यह संख्या बढ़कर 146 हो गयी थी।विपक्ष की आगामी बैठक में उन मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए जिन पर पार्टियां संसद और संसद के बाहर प्रचार करेंगी। कर्नाटक चुनाव के नतीजे बताते हैं कि बेरोज़गारी और गरीबी के साथ-साथ भ्रष्टाचार के मुद्दों ने भी मतदाताओं का ध्यान खींचा है। संयुक्त विपक्ष द्वारा उन मुद्दों के आधार पर एक राष्ट्रीय अभियान शुरू किया जाना है जो आने वाले दिनों में न्यूनतम सामान्य कार्यक्रम के मूल में हो सकते हैं। गैर-भाजपा विपक्ष के लिए अब राजनीतिक स्थिति उर्वर है। लोकसभा चुनाव से पहले अगला एक साल कांग्रेस के साथ-साथ अन्य भाजपा विरोधी दलों के लिए भी महत्वपूर्ण है। कर्नाटक की लड़ाई जीत ली गयी है, लेकिन विपक्ष को 2024 में भाजपा के खिलाफ  अंतिम युद्ध जीतना बाकी है। (समाप्त)
 

(संवाद)