चंद्रयान-3 : इस बार सफलता मिलना सुनिश्चित है

इसरो ने घोषणा कर दी है कि चंद्रयान-3 प्रक्षेपण के लिये तैयार है। चंद्रयान-2 की विफलता से सीख लेते हुये इस बार जो बदलाव किये गये हैं, जिन नये उपकरणों को इसके साथ रखा गया है, उनके आकलन से इस बात की पूरी उम्मीद बनती है कि चंद्रयान-3 न सिर्फ  चंद्रयान-2 की विफलता की भरपाई करेगा बल्कि चंद्रमा और उसकी सतह तथा वातावरण के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां भी देगा, संभवत: इस प्रश्न का उत्तर भी कि क्या चांद पर मानव बस्तियां संभव हैं?
चंद्रयान-3 को यूआर राव सैटेलाइट सेंटर पेलोड की फाइनल असेंबली में पहुंचा दिया गया है। मतलब चांद पर रवाना होने से पहले जो साजो सामान साथ ले जाना है, उसकी आखिरी तैयारी। सभी तरह के परीक्षणों के बाद अब यह अंतिम चरण है। इसके बाद सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है इसका लांच पैड पर पहुंचकर चंद्रमा की ओर रवाना होना, जिसका समय जुलाई के दूसरे हफ्ते में किसी दिन तय होगा। चंद्रयान-2 की बस दो कदम की दूरी पर मिली असफलता के कारण चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण न सिर्फ  बहुत महत्वपूर्ण है बल्कि हर आम खास की निगाहें इस पर लगी हुई हैं। बेशक चंद्रयान-3 को जिस थीम और जिन उद्देश्यों को लेकर प्रक्षेपित किया जा रहा है, वे सभी पूरे होंगे। 
यह वर्ष विश्व में चांद को लेकर वैश्विक स्तर पर अति सक्रियता वाला वर्ष माना जा रहा है। युद्धरत रूस और तंगहाल अमरीका से लेकर जापान और चीन समेत बहुत-से देश चांद की ओर अपनी सक्रियता बनाये हुए हैं। इनके अनेक कार्यक्रम इस साल पूर्णता की ओर हैं। इनमें से अधिकतर का उद्देश्य पूरी तरह वैज्ञानिक न होकर व्यावसायिक है। चांद पर पर्यटन, बस्तियां बसाने, वहां के खनिजों के दोहन के अतिरिक्त और भी कई उद्देश्य हैं। जहां तक हमारा सवाल है, तो अभी हमारा उद्देश्य शुद्ध विज्ञान और मानवता की सेवा की दिशा में खोजपरक अभियान है। यह ’चंद्रमा के विज्ञान’ की थीम पर आधारित है, ज़ाहिर है एक महान उद्देश्य को, जिसे करोड़ों भारतीयों की शुभेच्छा और इसरो के वैज्ञानिकों की निपुणता शामिल हो, उसे कामयाब होना ही है।
चंद्रयान-2 की लैंडिंग के समय की विफलता इसरो के वैज्ञानिकों को अब भी बहुत खलती होगी। सबको याद है कि 7 सितम्बर, 2019 को चंद्रमा पर लैंडिंग से कुछ सेकेंड पहले चंद्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर की दूरी पर चंद्रयान-2 का ज़मीन पर स्थित स्टेशन से सम्पर्क टूट गया था, लैंडिंग के ठीक पहले लैंडर की गति को नियंत्रित नहीं किया जा सका था और क्रैश लैंडिंग हुई थी। अमरीका, रूस और चीन भी अब तक चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग नहीं करवा पाए। भारत चंद्रमा की सतह के दक्षिण ध्रुव के करीब यान उतारने वाला दुनिया के पहला देश होता, परन्तु इस उपलब्धि से महज दो कदम दूर रह गया था। इस विफलता ने हमें लैंडर के गति नियंत्रण, वजन संबंधी कई तकनीकी सबक दिये। बाद में पता चला कि लैंडर के पैर और बेहतर तकनीकी से निर्मित किए जा सकते थे। चंद्रयान-3 में बहुत से बदलाव किए हैं। लैंडर का वजन कम करने की दिशा में बड़ा प्रयास हुआ है, एक इंजन को हटा लिया गया है। चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम में कुल पांच इंजन थे। चंद्रयान-2 में दोनों तरफ  दो इंजन के साथ ही जो बीच का इंजन था, उसे इस बार नहीं रखा गया है, इसके अलावा इसके लैंडर के पांवों में पर्याप्त बदलाव किया गया हैं। इसके सहारे लैंडर चंद्रमा की सतह पर आसानी से उतर सकेगा, मज़बूती से खड़ा रहेगा। सबसे बड़ी बात यह कि इस बार लैंडर में उन्नत किस्म का ‘लैंडर डॉप्लर वैलोसीमीटर’ भी लगा है, इससे उसकी चाल का सूक्ष्मता से पता लगाने और उसकी गति के नियंत्रण में आसानी होगी। 
वर्तमान के आकलन यह संकेत देते हैं कि कोई चंद्रयान-3 इस बार चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सटीक लैंडिंग के अपने प्राथमिक उद्देश्य को हासिल कर लेगा। एक नरम स्थान पर तैनात लैंडर, इसका चार पहियों वाला रोवर इसके साथ जाने वाले वैज्ञानिक उपकरण, लैंडिंग साइट के आसपास चंद्रमा की चट्टानी सतह की परत, उसके प्लाज्मा, रासायनिक विश्लेषण, मौलिक संरचना की थर्मल-फिजिकल गुणधर्मों की महत्वपूर्ण सूचनाएं प्रेषित करेंगे। अरबों वर्षों से सूर्य की रोशनी से अछूते दक्षिणी ध्रुव के क्रेटर बर्फ  मिलने की संभावना को जांचेंगे। हमारे सौर मंडल के जन्म से सम्बंधित नए सुराग तलाशेंगे। अमरीका की एजेंसी नासा 2025 में अपने आर्टेमिस तीन कार्यक्रम के ज़रिये तथा कई दूसरी अंतरिक्ष एजेंसियां और निजी कम्पनियां चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर मानव अभियान भेजकर यह पता लगाने वाली हैं कि क्या वहां मानव बस्ती बसने की संभावना है? उम्मीद है कि चंद्रयान-3 उनसे पहले इसके जवाब तलाश लेगा। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर