‘नये दौर के नये आयाम’

जब से प्राणियों पर दया करने और उनका महत्त्व समझ लेने का नया दौर चला है, आदमी भी सोचता है यार आजकल कामधाम तो कोई मिलता नहीं, रियायती संस्कृति की तरक्की के साथ-साथ सब पर फर्जीवाड़ा हावी होता जा रहा है, तो हे प्रभु हमें रियायती अनाज की दुकानों की लम्बी कतार में खड़ा रहने का धीरज देने के स्थान पर कोई जीव-जन्तु बना दे, न किसी बड़े आदमी का पालतू, कि हमारे रोग शोक में हमें पंचतारा उपचार मिल सके, और हम अपने देश की तरक्की पर गौरवान्वित होते रहें।
अभी ़खबर मिली है कि पुलिस के एक बड़े साहिब का एक प्रिय कुत्ता कैंसर जैसे महारोग से संघर्ष करके दो बार बच निकला और अब फिर अपनी उसी भयावह ‘बाख बाख’ अर्थात् भौंकने की आवाज़ के साथ उनके रिश्वत कांडों की जांच-पड़ताल करने वालों पर भौंकने का प्रिय कर्म कर रहा है। यह भौंकना भी खूब है साहिब इस पर राजनीतिक बदलाखोरी का मुलम्मा चढ़कर मीडिया के हवाले कर दो, तो कल का अपराधी आज का बेचारा बन जाता है। लगता है नैतिकता के कैंसर से दो बार बच गया यह पालतू भी अब अपने मालिक की व़फादारी उससे अधिक ऊंची आवाज़ में निबाह देगा, जिस आवाज़ से चैनल मीडिया के वाद-विवाद में पूर्वाग्रही बातूनी अपने एंकर से टकराते हैं। न्यायपालिका इस ओर से आती कटु हवाओं के प्रति और भी चिंतित हो जाती है।
पहले पालतू वह होता था जो गुड़िया-सा पामेरियन बन कर बड़े साब की मेम के गले से लिपट सके, अब उपयोगी वह जो आपके हक में ऊंची आवाज़ से चिल्ला सके। आवाज़ जितनी कटखनी होगी, उतनी ही मारक होगी। पुलिस के बड़े साब के जुझारू कुत्ते के कैंसर से दो बार बच निकलने की घटना पर उत्सव मनाने की ़खबर तो सच निकली, लेकिन आज अगर कोई झूठ भी आपकी हामी भर दे या ऊंचे स्वर का जयघोष बन जाये, तो इस पालतू से अधिक आपका पालतू हो जाये। वैसे दर्जा उसका वही रहेगा, क्योंकि कुत्ते से अधिक स्वामीभक्त कोई और देखा है क्या? 
आज आया राम गया राम का सच पलटूराम का फैशन हो गया है। ऐसे माहौल में उम्र भर आप पर न्यौछावर रहने वाले कुत्तों से बढ़ कर कोई और हो सकता है? पहले किसी को कुत्ता कह देना एक गाली या निंदनीय होता था, आज किसी न्यौछावर हो जाने वाले कुत्ते का मिल जाना, बिल्कुल ऐसा ही है जैसे आपने कौन बनेगा करोड़पति जीत लिया हो।
वैसे बड़े आदमी का कुत्ता तो क्या चूहा भी बन जाओ तो धन्यभाग्य। सुना नहीं किसी विरोधी पक्ष के आतंक से वह चूहे महोदय खेल रहे थे,तो उसके लिए जांच कमेटी बैठ गई, कि कैसे इस राजनीतिक चूहे की मौत हो गई जो विरोधी पार्टी में अपनी कुतर-कुतर से सेंध लगाने के काम आ सकता था। पता भी नहीं चलता और समर्थक विरोधी हो जाते हैं, और विधानसभा में शक्ति परीक्षण के भय से राजपाट बदल जाते हैं। बातें चूहों और पालतू कुत्तों के महत्त्व की होने लगी, तो बड़े साहिब की महिमा गाने का अवसर भी आ गया? आइए अब इसी महिमा का बखान कर लें। भई पर्यावरण प्रदूषण और मौसम में असाधारण परिवर्तन का ज़माना है। एक दिन ़खबर आती है कि इस बार सूखा पड़ेगा, और जीव-जन्तु से लेकर प्यासी धरती तक सब इससे हांप-हांप कर त्राहिमाम करेंगे, और दूसरे ही दिन ऐसे घिर-घिर कर काले बादल आसमान में आ जाते हैं, कि फटने के बिना मानते नहीं। सब जल-थल हो जाता है और गरीब लोगों का जमा जत्था उसमें बह जाता है। अब आयेगा मुआवज़ा बांटने का मौसम अर्थात फर्जी शिकार बनाने का मौसम। जो चल बसे उनके जाली कार्डों पर दयानिधी बांटने का मौसम।
इसके बाद तालाबों से लेकर जल बांधों पर मुआयना का सत्र शुरू होता है। अपने निजी वंश परिवार के प्रति कर्त्तव्य निष्ठा से भरे हुए अफसर साहिबान मुआयने पर निकलते हैं, कि बांध टूटने और जलाशयों के उफनने का कितने प्रतिशत मौका है? पानी की सतह धरती से कितनी नीचे चली गई है? शहर है तो उस जल सुरक्षा अभियान में बनी हुई सड़कों को तोड़ डालो, ताकि उनके नीचे पाइप बिछाये जा सकें। ठेकेदार रखने के लिए टैंडर निकालने का मौका आया। अच्छी भली सड़कें टूट कर मुरम्मत के लिए कराहने लगी, नई तो क्या बनेंगी? कराहने दो उन्हें। इस कराह पर मुरम्मत की मरहम पट्टी करने के लिए शुरुआत की घोषणा करने नेता जी चलेंगे तो बाजे-गाजे के साथ चलेंगे। आपको याद दिलाते हुए कि अपने चुनाव में जो वायदा हमने किया था, उसे पूरा करने की शुरुआत करने जा रहे हैं। वायदा पूरा कब होगा, यह तो केवल आपका भाग्य ही जानता है।
किसका भाग्य कहां फूट जाये? कुछ पता चलता है। ़खबर मिली है एक बड़े अफसर किसी बांध सरोवर का मुआयना करने गये। वह पानी की स्थिति पर चिंतित हो रहे थे कि उनका कीमती मोबाइल पानी में गिर गया। समर्पित पालतुओं के साथ रहते हुए भी पानी में गिर गया। अब ऐसा घाटा तो होने नहीं देंगे। बांध के द्वार खोल लाखों क्यूबिक मीटर पानी बहाने का आदेश हो गया। छर-छराता हुआ पानी किनारों को बहाता हुआ निकला, धरातल नज़र आई तो मोबाइल मिल गया। जान में जान आई। भई घोड़े की अगाड़ी, अफसर की पिछाड़ी और वह भी मोबाइल के बिना तो होना ही नहीं चाहिये। लीजिये नौकरशाही की निपुणता देखो। मोबाइल अफसर को वापिस मिल गया। इकट्ठा हुआ पानी बह गया तो क्या? जनता को तो प्यास से हांपने और धरती की फसलों को सूखने की तो आदत हो गई है, इस पानी के बिना। हां, इस ़खबर से एक बात प्रमाणित हो गई कि देश में डिजीटल क्रांति हो गई है। इंटरनैट की ताकत बढ़ गई है और अब पुस्तक मिले न मिले, मोबाइल की ताकत के बिना तो हम अधूरे हैं और वह ताकत जो जल्द ही पांच जी से छ: जी होने जा रही है, और मानव उपचार से लेकर उसमें ठगी की ताकत को अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा बख्श देगी। वल्लाह।