शिरोमणि कमेटी के चुनावों के लिए दिल्ली अभी दूर है 

चाहे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के चुनावों के लिए गुरुद्वारा चुनावों (इलैक्शन) के च़ीफ कमिश्नर द्वारा एस.जी.पी.सी. के चुनावों हेतु वोटर सूचियों में संशोधन अभिप्राय अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा कर दी गई है ताकि एस.जी.पी.सी. के सदस्यों का नया जनरल हाऊस चुना जा सके। चाहे इस समाचार के प्रकाशित होते ही यह चर्चा शुरू हो गई है कि अब शीघ्र ही शिरोमणि कमेटी के आम चुनाव हो जाएंगे। शिरोमणि अकाली दल (बादल) तथा बादल विरोधी अकाली दलों ने भी इस घोषणा का स्वागत किया है परन्तु हमारे विचार के अनुसार शिरोमणि कमेटी के आम चुनावों के मामलों में ‘दिल्ली’ अभी बहुत दूर है। गुरुद्वारा एक्ट 1925 के सैक्शन 48 के तहत पंजाब के मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव, गृह विभाग तथा पंजाब के सभी ज़िलों के ज़िलाधीशों को नई चुनाव सूची बनाने के लिए कहा गया है। यह ठीक है कि सरकार जब कुछ करवाने की ठान ले तो रास्ते की सभी रुकावटों को दूर करने में अधिक समय नहीं लगता। फिर पहले ही चुनावों में क्रियात्मक रूप से बहुत देरी हो चुकी है क्योंकि यह चुनाव अंतिम बार 2011 में हुये थे, परन्तु सहजधारियों की वोटों के मामले के संबंध में चलते केस के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने इस नये चुने हाऊस के चार्ज लेने पर स्टे लगा दिया था। बाद में इस हाऊस ने 2016 में काम करना शुरू किया था, यदि इसकी अवधि की शुरुआत 2016 से भी गिनी जाये तो भी यह 2021 में अपनी समय सीमा पूरी कर चुकी है। इसलिए चुनाव जितनी शीघ्र हों, अच्छी बात है।
परन्तु शिरोमणि कमेटी के आम चुनावों में कुछ संवैधानिक रुकावटें हैं तथा इनके आधार पर कुछ पक्षों द्वारा सम्भावित रूप से अदालत में जाने की सम्भावना के कारण नये चुनाव देरी से होने पर इन्कार नहीं किया जा सकता। हालांकि इन रुकावटों को भारत की संसद द्वारा दूर किया जा सकता है।
इस समय सबसे अधिक अस्पष्टता हरियाणा को लेकर बनी हुई है। एक तरफ हरियाणा की अलग गुरुद्वारा कमेटी अस्तित्व में आ चुकी है तथा वह बाकायदा अलग तौर पर गुरुद्वारों का प्रबन्ध भी सम्भाल रही है। दूसरी तरफ अभी 1925 का गुरुद्वारा एक्ट भी कायम है, जिसके अनुसार शिरोमणि कमेटी के प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते 157 सदस्यों में से 10 सदस्य तथा कुल 191 सदस्यों में से 11 सदस्य हरियाणा से आते हैं। अब यह बिल्कुल स्पष्ट नहीं है कि इन 11 सदस्यों का क्या होगा? क्या अब शिरोमणि कमेटी के जनरल हाऊस में 11 सदस्य कम कर दिए जाएंगे तथा 1925 के गुरुद्वारा एक्ट में संशोधन किया जाएगा। हमारी जानकारी के अनुसार कुछ पक्ष इस स्थिति को लेकर अदालत में जा सकते हैं, जिससे चुनाव का मामला एक बार फिर लटक सकता है, जबकि अभी चंडीगढ़ तथा हिमाचल प्रदेश में शिरोमणि कमेटी सीटों के लिए वोट बनवाने के संबंध में भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। 
कल तलक कहते थे दिल्ली दूर है,
आज भी सरकार दिल्ली दूर है।
(़खालिद महमूद)
घर-घर जाकर बनाए जाएं वोट
कोई भी सिख महिला या पुरुष जो 18 वर्ष की उम्र का हो, केस न काटता हो तथा शराब एवं तम्बाकू का सेवन न करता हो, एस.जी.पी.सी. का वोटर बन सकता है। नि:संदेह यह अच्छी बात है कि गुरुद्वारा चुनाव आयोग के प्रमुख जस्टिस एस.एस. सारों जो पंजाब तथा हरियाणा हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश भी हैं, ने सलाह दी है कि एस.जी.पी.सी. चुनाव लड़ने वाला हर वह उम्मीदवार जिसके विरुद्ध कोई फौज़दारी केस चल रहा है, समाचार पत्र में घोषणा (डैकलेरेशन) दे कि उस पर यह केस है। इसके साथ ही ऐसे उम्मीवार खड़े करने वाली पार्टियां भी ऐसी घोषणा अपनी वैब साइट पर पेश करें, परन्तु विधानसभा चुनावों में हमने देखा है कि ऐसे कदमों का क्रियात्मक रूप में कोई प्रभाव नहीं दिखाई दिया। यह प्रक्रिया सिर्फ एक दिखावा ही बन कर रह गई थी। एक और अच्छी बात यह है कि इस बार शिरोमणि कमेटी वोट भी मतदाताओं की तस्वीर लगा कर बना रही है परन्तु पिछला अनुभव बताता है कि शिरोमणि कमेटी के वोट कुछ लोग तो स्वयं बनवाते हैं, परन्तु अधिकतर वोट बनवाने का काम सम्भावित उम्मीदवार ही करते हैं, जो स्वाभाविक रूप में अपने समर्थकों के वोट बनाने को ही प्राथमिकता देते हैं। इस प्रकार अधिकतर सिख मतदाता बनने से रह जाते हैं। इसलिए यदि गुरुद्वारा चुनाव आयोग यह चाहता है कि इन चुनावों में समूची संगत भाग ले तो यह आवश्यक हो जाता है कि सरकारी कर्मचारी अन्य वोट की भांति ये वोट भी गली-गली, घर-घर जाकर बनाएं ताकि प्रत्येक योग्य सिख महिला-पुरुष मतदाता बन सकें। 
राजनीतिक स्थिति अभी स्पष्ट नहीं
शिरोमणि कमेटी चुनाव में अकाली दल बादल तथा बादल विरोधी दलों के चुनावों में भाग लेने की बात तो पूरी तरह स्पष्ट है, जबकि यह चर्चा भी है कि आम आदमी पार्टी भी इन चुनावों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में अपनी भूमिका निभाएगी। सम्भावना है कि ‘आप’ किसी बादल विरोधी गुट को मदद दे सकती है या दिल्ली की भांति अलग धार्मिक सिख गुट बना सकती है, जबकि कांग्रेस तथा भाजपा के चाहे इन चुनावों में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप की सम्भावना बहुत कम हैं, परन्तु स्थानीय स्तर पर उनके नेता अपना प्रभाव अवश्य इस्तेमाल करेंगे। जबकि एक और चर्चा भी बहुत हो रही है कि भाजपा शिरोमणि कमेटी चुनाव 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले करवाना चाहती है और वह 2024 के चुनावों में उस अकाली दल के साथ चुनावी समझौता करने को प्राथमिकता देगी, जो शिरोमणि कमेटी चुनाव जीत कर क्रियात्मक रूप में स्वयं को असली अकाली दल सिद्ध कर सकेगा।  
भीड़ तंत्र को रोका जाए
27 मई को महाराष्ट्र के परभनी जिले के गांव उख्लाद में भीड़ ने एक 14 वर्षीय सिख बच्चे किरपाल सिंह को पीट-पीट कर मार दिया, जबकि 15 वर्षीय तथा 16 वर्षीय दो सिख बच्चों को पीट-पीट कर गम्भीर घायल कर दिया गया। इन बच्चों पर बकरी चोरी करने का आरोप लगाया गया। सिख तो हमेशा ही ज़ुल्म के खिलाफ खड़े होते रहे हैं। जब-जब भी देश में कहीं भी किसी धर्म के किसी व्यक्ति को भीड़तंत्र ने मारा है तो सिखों ने आम तौर पर उसका विरोध ही किया है। 
परन्तु हैरानी की बात है कि सिख बच्चों को मारने वाली भीड़ को लोग उस धर्म के ही प्रतीत होते हैं, जिसके अपने लोग बहुत बार भीड़ तंत्र का शिकार हुए हैं। अच्छी बात यह है कि पुलिस ने इस कृत्य के कुछ आरोपी गिरफ्तार कर लिए हैं और शेष की पहचान कर ली है। 
परन्तु हमारा देश के प्रधानमंत्री को निवेदन है कि देश में कानून का शासन लागू करने में कोई कसर न छोड़ी जाए। देश में कहीं भी भीड़ को कानून अपने हाथ में लेने तथा दूसरे धर्म के लोगों को संदेह के आधार पर पीट-पीट कर मार देने की वारदातें चाहे वह किसी भी धर्म के लोग हों, को रोकने के लिए विशेष प्रयास किये जाएं तथा यदि आवश्यकता हो तो इस संबंध में कोई नया कानून भी बनाया जाए, यही देश के हित में है। इस घटना के अवसर पर बाबा नानक जी का बाबर के हमले के समय हिन्दुस्तानियों पर हुए ज़ुल्म के समय परमात्मा को दिया उपालम्भ याद आ रहा है : 
एती मार पई कुरलाणै 

तैं की दरदु न आया।। १।। (अंग : 360)
-1044, गुरु नानक स्ट्रीट, समराला रोड, खन्ना 
-मो. 92168-60000