केन्द्र के अध्यादेश के विरुद्ध विपक्षी दलों का समर्थन जुटा रहे हैं केजरीवाल

आम आदमी पार्टी ‘आप’ के संयोजक तथा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल सर्वोच्च न्यायालय का आदेश उनके पक्ष में आने के बावजूद, दिल्ली की चुनी हुई सरकार की शक्तियां कम करने के केन्द्र के नये अध्यादेश के विरुद्ध लड़ाई में समर्थन हासिल करने के लिए ़गैर-भाजपा पार्टियों के अलग-अलग नेताओं से सम्पर्क में हैं। साथी विपक्षी दल के नेताओं के साथ केजरीवाल की व्यस्तता भरी बैठकों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केन्द्र द्वारा कड़े अध्यादेश को बिल में बदलने के प्रयास को संसद में लाने पर असफल किया जा सके। केन्द्र ने 19 मई को दिल्ली में ग्रुप-ए अधिकारियों के तबादले तथा नियुक्तियों के लिए एक अथारिटी बनाने के लिए अध्यादेश जारी किया था, जिसे ‘आप’ सरकार ने खास तौर पर सेवाओं के नियन्त्रण पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की रौशनी में ‘धोखा’ कहा था। सी.पी.आई. (एम.) के महासचिव सीताराम येचुरी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव, शिवसेना (यू.बी.टी.) के प्रमुख नेता उद्धव ठाकरे, एन.सी.पी. प्रमुख शरद पवार तथा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अब तक ‘आप’ को अपना समर्थन दिया है। 
बिहार के मुख्यमंत्री तथा जे.डी. (यू.) नेता नितीश कुमार के साथ-साथ उनके उप-मुख्यमंत्री तथा आर.जे.डी. नेता तेजस्वी यादव ने भी इस मामले में केजरीवाल का समर्थन किया है। इस दौरान ‘आप’ के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने अध्यादेश के विरुद्ध समर्थन मांगने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे तथा राहुल गांधी से मिलने के लिए समय मांगा है। कांग्रेस ने पार्टी के नेताओं के साथ इस मुद्दे पर चर्चा की थी  हालांकि पंजाब तथा दिल्ली के क्षेत्रीय नेता ‘आप’ को समर्थन देने के विचार के विरुद्ध थे, परन्तु उन्होंने इस मामले में अंतिम फैसला लेने के लिए कांग्रेस हाईकमान को अधिकार सौंप दिए हैं। वैसे भी कांग्रेस के लिए संसद में अध्यादेश का समर्थन करना लगभग असम्भव है। 
पटना सम्मेलन
आगामी वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों में सत्ताधारी भाजपा के विरुद्ध विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने के लिए एक सौहार्दपूर्ण कदम के रूप, पटना में 12 जून को समान विचारधारा वाली राजनीतिक पार्टियों का एक सम्मेलन आयोजित किया जाएगा। बैठक की अध्यक्षता बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार कर सकते हैं। भागीदारों में धर्म-निरपेक्ष विपक्षी दलों की लगभग 18 राजनीतिक पार्टियां शामिल हैं। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे तथा पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी दोनों व्यस्तताओं का हवाला देते हुए बैठक में शामिल नहीं हो रहे हैं परन्तु कांग्रेस ने विश्वास दिलाया है कि वह होने वाली बैठक में उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए अपने एक वरिष्ठ नेता को सुनिश्चित तौर पर बैठक में भेजेगी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन, एन.सी.पी. प्रमुख शरद पवार, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव, सी.पी.आई. (एम.) नेता सीताराम येचुरी पहले ही अपनी उपस्थिति का विश्वास तथा पुष्टि कर चुके हैं, जबकि यह सिर्फ एक शुरुआती बैठक है। नितीश रणनीतिक तौर पर एक ऐसा मंच तैयार कर रहे हैं, जहां भाजपा विरोधी दल आमने-सामने की लड़ाई में एकजुट हो सकें। उन्होंने पहले ही लगभग 475 सीटों की पहचान कर ली है, जहां 2024 के चुनावों में एकजुट विपक्षी दल भाजपा के विरुद्ध प्रत्यक्ष लड़ाई  लड़ सकते हैं। हालांकि विपक्षी दल की रणनीति 12 जून को राजनीतिक पार्टियों के सम्मेलन के बाद ही सामने आएगी।
गहलोत, पायलट की खड़गे के साथ मुलाकात
हालांकि कांग्रेस पार्टी ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तथा उनके विरोधी सचिन पायलट के साथ एक बैठक के बाद एकता का प्रदर्शन किया, परन्तु बैठक अन्य सवालों के जवाब न दिए जाने से समाप्त हुई, जिससे यह संकेत मिलता है कि पार्टी ने अभी तक दोनों के मध्य के विवाद को सुलझाना  है, ऐसी स्थिति में आगामी प्रदेश के विधानसभा चुनावों में सम्भावनाएं उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं। अशोक गहलोत, सचिन पायलट, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे तथा राहुल गांधी के बीच चार घंटे चली बैठक में सत्ता के बंटवारे को लेकर कोई सहमति नहीं बनी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का दावा है कि बोर्ड पर कोई ठोस प्रस्ताव नहीं है परन्तु दोनों लड़ रहे नेताओं को कर्नाटक मॉडल का पालन करने के निर्देश दिए गए हैं, जहां कट्टर विरोधियों सिद्धारमैया तथा डी.के. शिवकुमार ने संयुक्त मोर्चे के रूप में लड़ाई लड़ी थी। सूत्रों ने कहा कि पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व ने स्पष्ट कर दिया है कि वह पायलट की भूमिका पर बाद में फैसला लेगी। चुनावों से पहले उन्हें एक प्रमुख भूमिका दी जाएगी, परन्तु उन्हें वायदा करना चाहिए कि वह पार्टी में संकट नहीं आने देंगे, जैसे कि उन्होंने अपनी पिछली टिप्पणियों से किया था। राहुल ने स्वयं पायलट को विश्वास दिलाया  है कि उनकी चिन्ताओं को दूर किया जाएगा। 
दक्षिणी ब्राह्मणों संबंधी प्रश्न?
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता तथा एम.एल.सी. स्वामी प्रसाद मौर्य ने सवाल किया है कि 28 मई को नये संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर सिर्फ दक्षिण भारतीय ब्राह्मण संतों को ही कार्यक्रम का निमंत्रण क्यों दिया गया। स्वामी ने इस मामले में सरकार के फैसले का खुलकर विरोध किया, क्योंकि उनके विचार अनुसार जब भारत सभी धर्मों को समान महत्त्व देता है तो दक्षिण के एक वर्ग (सम्प्रदाय) के धार्मिक नेताओं को ही क्यों आमंत्रण दिया गया था। इस दौरान राम जन्म भूमि ट्रस्ट के प्रमुख तथा श्री कृष्ण जन्म स्थल सेवा संस्थान के प्रमुख वी महंत नृत्य गोपाल दास, पूर्व सांसद तथा राम जन्म भूमि ट्रस्ट के सदस्य डा. राम विलास वेदांती तथा हिन्दू आध्यात्मिक नेता तथा विकलांग विश्वविद्यालय तुलसी पीठ के संस्थापक जगदगुरु रामभद्राचार्य तथा कई अन्य संतों को भारत के नये संसद भवन के उद्घाटन समारोह में आमंत्रण नहीं दिया गया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा स्पीकर की कुर्सी के नज़दीक ऐतिहासिक ‘सेंगोल’ स्थापित किया है।  मोदी ने सेंगोल के सामने दंडवत प्रणाम किया तथा हाथ में पवित्र राजदंड लेकर तमिलनाडू के अलग-अलग अधीनामों के महा-आयोजकों से आशीर्वाद मांगा। गोल्डन सेंगोल के शिखर पर एक नंदी है, जो शक्ति तथा न्याय का प्रतीक है। ऐतिहासिक रूप से तमिलनाडू शिव पूजा का गढ़ रहा है, दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश भगवान राम तथा  श्री कृष्ण की पूजा का गढ़ रहा है। जबकि वैष्णवों तथा शैवां के मध्य मतभेद पैदा हो गए हैं तथा साधु-संत शांत नहीं हैं तथा इस बात से नाराज़ हैं कि उन्हें भारत के नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में क्यों नहीं बुलाया गया था तथा राजनीतिक दल इस स्थिति का लाभ उठाने का प्रयास कर रहे हैं।

(आई.पी.ए.)