पुष्प कमल दहल की भारत यात्रा आपसी संबंधों के इतिहास का नया पन्ना

नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल ‘दहल’ प्रचण्ड की चार दिवसीय भारत-यात्रा, और इस दौरान दोनों देशों में सम्पन्न हुए सात समझौते नि:सन्देह दोनों देशों के बीच आपसी संबंधों की प्रगाढ़ता हेतु एक नये युग की शुरुआत जैसे हो सकते हैं। विशेषकर तब इन रिश्तों का महत्त्व और बढ़ जाता है जब यह पता चलता है कि दोनों देशों के बीच इसी सीमा-रेखा पर विगत कुछ समय में विवादों के कुछ कांटेदार कैक्टस उग आए थे। ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री प्रचण्ड की भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ सम्पन्न हुई वार्ता के दौर की तुलना नि:सन्देह रूप से किसी तपते हुए भू-खण्ड को भिगोने वाली मानसून की पहली बरसात से की जा सकती है। प्रधानमंत्री मोदी ने जहां इस दौरान वर्ष 2014 में देश के प्रधानमंत्री के रूप में अपनी पहली पारी के दौरान अपनी नेपाल यात्रा का उल्लेख करते हुए उसे सुपरहिट की शुरुआत कहा, वहीं इस सुपर हिट को हिमालय की शिखर बुलन्दियों की ओर ले जाने की भी घोषणा की। दोनों नेताओं ने दोनों देशों के बीच रेल सम्पर्कों को बढ़ाये जाने और व्यापार के धरातल पर आयात-निर्यात को मजबूती और निरन्तरता प्रदान किये जाने पर भी सहमति जताई। भारत और नेपाल के बीच सुपर हिट संबंधों को नई दिशा दिये जाने हेतु दोनों नेताओं ने मिलकर, दोनों देशों की संयुक्त सीमा रेखा पर एकीकृत चेक-पोस्ट स्थापित करने हेतु इसका वर्चुअल शिलान्यास भी किया। यह चेक पोस्ट अवश्यमेव रूप से जहां दोनों देशों के बीच व्यापार अनियमितताओं को रोकने के संकल्प का काम करेगी, वहीं इससे सीमाओं पर उपजने वाले छिट-पुट विवादों के निपटान हेतु भी मदद मिल सकेगी। भारतीय उत्तर प्रदेश के बहराईच और नेपाली क्षेत्र के नेपालगंज में लगभग 52 एकड़ भूमि पर बन रही इस चेक पोस्ट पर 500 करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च होने के अनुमान है।
दोनों नेताओं के बीच जिस एक अन्य अहम मुद्दे पर सहमति बनी, वह सीमा विवाद को लेकर रही। नि:सन्देह इस सीमा विवाद ने दोनों देशों के बीच सदियों पुराने मैत्री-सहयोग संबंधों के धरातल पर तनाव की अनेक कांटेदार थोहर उपजाई थीं। दोनों देशों के बीच कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा को लेकर स्वामित्व विवाद भी इसी दौरान उपजा था। इसी कारण दोनों देशों के आम जन के बीच संबंधों में भी दरार उत्पन्न होने का अंदेशा बन गया था, परन्तु नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचण्ड की मौजूदा भारत-फेरी और भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किये गये उनके अति भावपूर्ण स्वागत ने नि:सन्देह रूप से दोनों देशों की धरा पर सुगन्धित पुरबा का एहसास कराया है। भारत की ओर से नेपाल में निवेश की सम्भावनाओं की प्रचुरता की तलाश आपसी संबंधों की मज़बूती हेतु एक और पायदान सिद्ध हो सकती है। यह निवेश खनन, विनिर्माण, कृषि, ऊर्जा और पर्यटन आदि क्षेत्रों में किया जा सकता है। भारत द्वारा नेपाल में दो बड़े सम्पर्क पुलों का निर्माण स्वयं किये जाने की सहमति का भी आपसी संबंधों की धरा पर सुखद प्रभाव पड़ने की सम्भावना है।
नेपाल में राजशाही के दौरान, इसे हिन्दू राष्ट्र माना जाता था, किन्तु इस देश में साम्यवादी पार्टी के हाथों शासन की बागडोर आने से स्थितियां एकाएक बदली थीं। तथापि, अब प्रधानमंत्री प्रचण्ड द्वारा भारत के सहयोग से रामायण सर्किट हेतु सहमत हो जाना  वैश्विक धरातल पर एक बड़ी कूटनीतिक कामयाबी हो सकती है। विगत वर्ष दिसम्बर में जब प्रचण्ड तीसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने थे, तब तक नेपाल एक प्रकार से चीनी कूटनीति का अनुगामी हो चुका था, किन्तु मौजूदा भारत यात्रा के दौरान उन्होंने न केवल अपने भारतीय समकक्ष नरेन्द्र मोदी की ‘पड़ोसी पहले’ वाली नीति की जम कर तारीफ की है, अपितु यह स्वीकार किया कि भारत के साथ सामान्य संबंधों से नेपाल के नागरिक विशेषकर युवाओं और विद्यार्थियों को बड़ा लाभ हो सकता है। नेपाल में बिजली का उत्पादन बढ़ाये जाने, और फिर उसके भारत में निर्यात के समझौते से भी दोनों देशों को लाभ हो सकता है। कुल मिला कर हम समझते हैं कि नि:सन्देह नेपाली प्रधानमंत्री प्रचण्ड की मौजूदा भारत यात्रा दोनों देशों के बीच संबंधों के धरातल पर एक नई तहरीर लिखने में कामयाब होगी। वैश्विक दृष्टिकोण से भी भारत और नेपाल के बीच नज़दीकियों के बढ़ने से बेहतर लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। नि:सन्देह पुष्प कमल दहल प्रचण्ड की भारत यात्रा को कामयाब कहा जा सकता है।