प्रैस की आज़ादी के मुद्दे को क्यों नज़र-अंदाज़ कर रहे हैं मुख्यमंत्री ?

चंडीगढ़ पंजाब का है, यह केन्द्र सरकार द्वारा कई बार माना तो गया है परन्तु पंजाब को दिया नहीं गया। केन्द्र की लगभग सभी सरकारों ने चंडीगढ़ का पंजाबी प्रारूप बदलने वाले काम किए हैं या इन्हें बेपरवाह ढंग से होने दिया है। हालांकि सच्चाई यह है कि चंडीगढ़ 90 प्रतिशत पंजाबी (भाषा) बोलते गांवों को उजाड़ कर बनाया गया था, अभिप्राय: यह निरोल पंजाबी भाषायी क्षेत्र था परन्तु धीरे-धीरे इसका पंजाबी बोलता स्वरूप खत्म कर दिया गया है। अब चंडीगढ़ से पंजाबी को निकालने के लिए नया हमला किया गया है। चंडीगढ़ में तैयार किए जाते तथा आकाशवाणी चंडीगढ़ से प्रसारित किए जाते पंजाबी समाचारों, पंजाबी घोषणाओं तथा अन्य कार्यक्रम बंद कर दिए गए हैं तथा यह काम आकाशवाणी जालन्धर को सौंप दिया गया है। उदाहरण दी जा रही है कि जालन्धर में बड़ा एवं पावरफुल ट्रांसमीटर है। वहां पंजाबी में काम करने वाले लोग भी अधिक उपलब्ध हैं। इससे पंजाबी समाचारों का स्तर भी सुधरेगा। पंजाबी के प्रादेशिक समाचार तो अभी भी चंडीगढ़ आकाशवाणी से प्रसारित किए जा रहे हैं, परन्तु इसे पंजाबी को प्यार करने वाले अलग नुकता- नज़र से देखते हैं कि इस तरह से चंडीगढ़ पर पंजाब के अधिकार को और कमज़ोर किया जा रहा है। देश भर में प्रत्येक प्रदेश की राजधानी में ही उसका रेडियो केन्द्र है तथा वहां पर ही समाचार बनाए तथा प्रसारित किए जाते हैं। फिर एकमात्र समाचार ही नहीं, प्रदेश की स्थानीय भाषा में कार्यक्रम तथा घोषणाएं भी की जाती हैं परन्तु पंजाब की राजधानी से पंजाबी को एक तरह ‘देश निकाला’ ही दे दिया गया है। यह कहना कि 2 पंजाबी प्रादेशिक बुलेटिन चंडीगढ़ से भी प्रसारित करने से पंजाब का अधिकार पूरा हो जाता है, बिल्कुल गलत है। ऊपर से आकाशवाणी के जालन्धर केन्द्र पर पहले ही बहुत बोझ है। कई सर्विसिज़ हैं तथा उन्हें अमृतसर केन्द्र का बहुत काम भी करना पड़ता है। लोगों को यह भी डर है कि आज तो जालन्धर वाले प्रादेशिक बुलेटिन चंडीगढ़ से प्रसारित किए जाते हैं, परन्तु समय रहते, वक्त देख कर, यह बुलेटिन चंडीगढ़ से प्रसारित किए जाने भी बंद कर दिए जाएंगे। 
जैसे दिल्ली में हिन्दू, सिर्ख एवं अन्य धर्मों के लगभग 35 प्रतिशत लोग प्राथमिक रूप से पंजाबी हैं। चाहे सरकार के संरक्षण के चलते वह हिन्दी पढ़ने-लिखने की ओर अधिक रुचि रखने लगे हैं, परन्तु यह आज भी आपस में पंजाबी में बात करते हैं, परन्तु इसके बाद दिल्ली आकाशवाणी में से पंजाबी को गायब ही किया गया है। इस समय दिल्ली के संस्कृत, हिन्दी, उर्दू तथा अंग्रेज़ी में ही समाचारों के बुलेटिन एवं अन्य कार्यक्रम आकाशवाणी दिल्ली में बनते तथा प्रसारित होते हैं। वैसे भी सफाई देने वाले कुछ भी कहें परन्तु सच्चाई तो यह है कि चंडीगढ़ के राजधानी होने के कारण समाचारों का जो स्तर एवं जो जानकारी चंडीगढ़ में बैठे पत्रकारों को मिल सकती है, वह जालन्धर में नहीं मिल सकती।
ब़ेखुदी बे-सबब नहीं ़गालिब,
कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है।
(मिज़र्ा ़गालिब)
राजनीति का स्तर 
पंजाब सरकार तथा सत्तारूढ़ पार्टी का यह स्टैंड बिल्कुल ही गलत तथा गुमराह करने वाला है कि जांच एक समाचार पत्र के सम्पादक की नहीं हो रही अपितु जंग-ए-आज़ादी यादगार के जीवन भर के लिए बने प्रमुख की हो रही है। परिस्थितिजनक सबूत हमारे सामने हैं। यदि बात जंग-ए-आज़ादी यादगार में किसी कथित अनियमितता की जांच की होती तो पहले ही ‘अजीत’ के विज्ञापन क्यों बंद किये गए? पहले समाचार पत्र में पेड न्यूज़ के विज्ञापन पृष्ठ के नीचे ‘विज्ञापन’ शब्द लिखे बिना प्रकाशित करने के लिए दबाव न बनाया जाता। फिर ‘अजीत’ द्वारा सरकार की कुछ कार्यगुज़ारियां, जो पंजाब तथा लोगों के हित में नहीं, के समाचार प्रकाशित करने पर गुस्सा न दिखाया जाता। ये समचार रुकवाने के लिए समाचार पत्र के मुख्य सम्पादक को विजीलैंस का डर, जांच शुरू करने से पहले ही नहीं दिखाया जाता। यदि बात सिर्फ जंग-ए-आज़ादी यादगार में अनियमितताओं की जांच की ही होती तो फिर पहला कार्य उसकी जांच से शुरू होता। स्पष्ट है कि जब विज्ञापन बंद करके तथा अन्य दबाव के आगे समाचार पत्र के सम्पादक नहीं झुके तो जंग-ए-आज़ादी यादगार की जांच शुरू हुई। इसलिए, यह वास्तव में प्रैस की आज़ादी को हर हाल में दबाने का ही मामला है। 
इस मध्य ‘आप’ को छोड़ कर पंजाब की लगभग सभी प्रमुख पार्टियों की ‘अजीत’ के कार्यालय में जो बैठक हुई, उसने भी एक आवाज़ में ‘अजीत’ तथा ‘डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द’ के साथ खड़े होने का संदेश दिया है। कुछ नेताओं ने यहां निजी टिप्पणियां भी कीं, परन्तु आश्चार्यजनक बात है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कुछ नेताओं द्वारा की गई निजी किस्म की टिप्पणियों का नोटिस तो लिया, परन्तु यहां हुई प्रभावशाली बैठक की भावनाओं का कोई नोटिस नहीं लिया। किसी समाचार पत्र को उसके हिस्से के बनते विज्ञापन पर पाबंदी लगाकर दबाने की बात न बनने के बाद डराने-धमकाने के प्रयास जायज़ नहीं। मुख्यमंत्री ने पंजाबी के सबसे बड़े समाचार पत्र के विज्ञापन क्यों बंद किए और उसको दबाने के प्रयास क्यों किए जा रहे हैं, का जवाब देना तो उचित ही नहीं समझा। परन्तु कुछ नेताओं द्वारा की गई निज़ी टिप्पणियां जिनके पक्ष में हम भी नहीं हैं, को आधार बना कर उनको ताने देना यह मुख्यमंत्री जैसे बड़े प्रतिष्ठित पद पर बैठे व्यक्ति के लिए किसी भी तरह उचित नहीं माना जा सकता, परन्तु ऐसे तानों से राजनीति का गिरता स्तर सचमुच ही चिन्ता का विषय है। 
एक तहज़ीब है दोस्ती की 
एक म्यार है दुश्मनी का,
दोस्तों ने मुरव्वत न सीखी
 दुश्मनों को अदावत तो आये।
700 विद्यार्थियों का भविष्य बचाएं
लाखों रुपये खर्च करके 3-4 वर्ष का समय लगा चुके कनाडा मेें गए 700 भारतीय पंजाबी विद्यार्थियों के सिर पर उन्हें वहां से निकाल दिये जाने की तलवार लटक रही है। वे धरने पर बैठे हैं। उनकी बात सही भी है कि इसमें उनका क्या दोष, सज़ा उन्हें क्यों? दोष या तो एजेंटों का है या मिलीभुगत करने वाले संबंधित अधिकारियों का है। सज़ा के हकदार तो वही हैं। नि:संदेह कनाडा पहुंच कर इन विद्यार्थियों को पता चल गया था कि उन्हें गलत दस्तावेज़ों पर भेजा गया है, परन्तु कनाडा पहुंचने के लिए लाखों रुपये खर्च करने वाले विद्यार्थी क्या करते? वे तो एजेंट के रहम-ओ-कर्म पर ही थे। एजेंटों ने उन्हें वहां अन्य कालेजों में दाखिला दिला दिया। वे वहां बाकायदा पढ़े, बाद में वर्क परमिट भी मिला और काम भी किया। परन्तु जब उन्होंने पीआर (स्थायी निवास) के लिए आवेदन किया तो कनाडा की सीमा सुरक्षा एजेंसी ने जांच में पाया कि उनके कनाडा आने के लिए इस्तेमाल दस्तावेज़ सही नहीं थे। सो, उन्हेंने 700 विद्यार्थियों को डिपोर्ट करने का नोटिस जारी कर दिया। 
यह अच्छी बात है कि सांसद हरसिमरत कौर तथा एनआरआई मामलों के मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने भारत के विदेश मंत्री को हस्तक्षेप करने तथा अपना प्रभाव इस्तेमाल करने के लिए पत्र लिखे थे। परन्तु इसके साथ-साथ पंजाब के नेताओं को कनाडा के भारतीय सांसदों से भी सम्पर्क करके उन्हें धोखे के शिकार भारतीय विद्यार्थियों की मदद के लिए पहल करने हेतु कहना चाहिए। इससे ही भारत तथा कनाडा के एजैंटों तथा अधिकारियों, जिनकी मिलीभुगत से ऐसा किया गया है, को सज़ाएं दिलानी चाहिएं ताकि अन्य एजैंट भी ऐसा करने के बारे सोचने का साहस न करें। 
मिट्टी के अम्बार के नीचे 
डुब गया मुस्तकबिल भी,
दीवारों ने देखा होगा
 बच्चे त़ख्ती तोड़ चले।
(कैसर-उल-ज़ाफरी)
-मो. 92168-60000