मणिपुर हिंसा : यह आग कब बुझेगी ?

 

मणिपुर में देशज हिंसा रोकने की अपील करने हेतु गत 7 जून को चिन-कूकी महिलाओं ने नई दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह के घर के बाहर प्रदर्शन किया। इन प्रदर्शनकारी महिलाओं ने कहा कि केंद्रीय गृहमंत्री द्वारा शांति स्थापना के आश्वासन के बावजूद मणिपुर में उनके समुदाय के विरुद्ध हिंसा जारी है। उनके घर जलाये जा रहे हैं और इसमें पुलिस व असम राइफल्स की भूमिका भी कथित तौर पर संदिग्ध है। दूसरी ओर 6 जून की रात इम्फाल में बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के सदस्यों ने प्रदर्शन कर कूकी गुटों के खिलाफ  सख्त कार्यवाही करने की मांग की। विभिन्न मैतेई संगठनों ने मिलकर कोआर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटीग्रिटी का गठन किया है, जिसने पुलिस व अर्द्धसैनिक बलों से लूटे गये हथियारों को वापस करने की अमित शाह की अपील को ठुकरा दिया है और साथ ही प्रण किया है कि हथियारों को रिकवर करने के लिए ‘काम्ंिबग ऑपरेशंस’ को नहीं होने देंगे। 
इसके अतिरिक्त इस कमेटी ने ‘चिन-कूकी नार्को-टेररिस्ट आक्रमकता’ के विरुद्ध ‘मणिपुरी राष्ट्रीय युद्ध’ छेड़ने की भी घोषणा की है। राज्य सरकार के अनुसार, अभी तक 868 हथियार और 11,518 यूनिट गोला-बारूद को ही बरामद किया जा सका है। विभिन्न मीडिया रिपोर्टों में लूटे गए सरकारी हथियारों की संख्या लगभग 3,000 बतायी गई है। मणिपुर में शांति बहाली के लिए अमित शाह ने पिछले सप्ताह राज्य का चार दिवसीय दौरा किया था। उन्होंने सभी समुदायों के प्रतिनिधियों व नेताओं से मुलाकात की थी और नागरिकों से अपील की थी कि वे सुरक्षा बलों से लूटे गये हथियारों को वापस कर दें। लेकिन 3 मई को आरंभ हुई देशज हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही। न सिर्फ विभिन्न समुदाय एक दूसरे के खिलाफ  हिंसा व आगज़नी कर रहे हैं बल्कि सुरक्षा बलों और दंगाइयों के बीच भी ज़बरदस्त गोलीबारी की घटनाएं  हो रही हैं। 
गत पांच और छह जून की पूरी रात रुक रुककर दोनों तरफ  से गोलीबारी होती रही, जिसमें सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के एक जवान की मौत हो गई और असम राइफल्स के दो जवान गंभीर रूप से घायल हो गये। सेना का कहना है कि सर्च ऑपरेशंस जारी हैं। मणिपुर की हिंसा में सबसे अधिक त्रासदीपूर्ण घटना रही है एक 8 वर्ष के लड़के की मौत। यह बच्चा तोंसिंग हंगसिंग अपने परिवार के साथ कंगचुप स्थित असम राइफल्स के राहत कैंप में रह रहा था। 4 जून की शाम को कूकी व मैतेई समुदायों के बीच में ज़बरदस्त गोलीबारी हुई। इस दौरान एक गोली बच्चे को भी लग गई। उसे अस्पताल ले जाना ज़रूरी था। चूंकि अस्पताल मैतेई बहुल क्षेत्र से होकर ही पहुंचा जा सकता था, इसलिए तोंसिंग के साथ उसकी मां मीना व एक अन्य व्यक्ति लीडिया (जो दोनों मैतेई थे) एम्बुलेंस में सवार हो गये। कूकी होने के नाते तोंसिंग का पिता कैंप में ही रहा। असम राइफल्स ने एम्बुलेंस को एस्कॉर्ट करने के बाद उसे पुलिस की निगरानी में दे दिया। इसोइसएम्बा में भीड़ ने एम्बुलेंस को घेर लिया, एस्कॉर्ट पुलिस वहां से भाग खड़ी हुई, मीना व लीडिया ने भीड़ से कहा भी कि वे मैतेई समुदाय से हैं, लेकिन उन पर कोई रहम नहीं किया गया। 
तोंसिंग, मीना व लीडिया को एम्बुलेंस में ही जिंदा जलाकर मार दिया गया। वहां जो पुलिस पहले से मौजूद थी, वह मूक दर्शक बनी रही। म्यांमार की सीमा से लगे उत्तरपूर्व के मणिपुर राज्य में तनावपूर्ण हिंसा पिछले पांच सप्ताह से जारी है। दंगों व देशज झड़पों में तकरीबन 80 लोग मारे गये हैं और 35,000 से अधिक विस्थापित हुए हैं, जो फिलहाल सरकारी कैम्पों में रह रहे हैं। आगज़नी में सैंकड़ों गांव जलकर राख हो गये हैं। बड़ी संख्या में धार्मिक स्थलों में भी आगज़नी व तोड़फोड़ की गई है। पिछले महीने सेना के अनुसार 30 से अधिक विद्रोहियों को भी ढेर किया गया था। मणिपुर में 3 मई से आरंभ हुई देशज हिंसा की पृष्ठभूमि यह है कि बहुसंख्यक मैतेई समुदाय लम्बे समय से अपने लिए अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग कर रहा है। हाल ही में मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा था कि वह मैतेई समुदाय की मांग की सिफारिश केंद्र को भेजे। इससे राज्य के आदिवासियों को लगने लगा कि उन्हें जो आरक्षण लाभ मिल रहे हैं, उनमें बहुत कमी आ जायेगी और पहाड़ों पर उनकी भूमि पर भी कब्जा कर लिया जायेगा। 
इसके विरोध में आल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) ने आदिवासी एकता मार्च का आयोजन किया, जिसके बाद ही राज्य में स्थिति ऐसी हो गई कि अभी तक शांति के आसार दिखायी नहीं दे रहे हैं। बहरहाल एक लड़के, उसकी मां व रिश्तेदार को पुलिस के सामने ही इम्फाल के आउटस्कर्ट्स पर एम्बुलेंस में ज़िंदा जला देने की घटना से स्पष्ट है कि मणिपुर में कानून व्यवस्था पूर्णत: ध्वस्त हो गई है। राज्य में जारी हिंसा में यह दिल दहलाने वाली इकलौती घटना नहीं है बल्कि ऐसी वारदातों को गिनना भी अब कठिन होता जा रहा है। हाल ही में कांग्रेस विधायक रंजीत सिंह के मकान को संदिग्ध कूकी विद्रोहियों ने आग लगा दी थी और नत्यंग गांव में कूकी समुदाय के 32 मकानों में संदिग्ध मैतेई विद्रोहियों ने आग लगा दी थी। यह सब उस समय हो रहा है, जब भारत सरकार राज्य में शांति बहाल करने के लिए गंभीर प्रयासों का दावा कर रही है। इससे यह साधारण व कड़वा सत्य स्पष्ट हो जाता है कि तनावग्रस्त राज्य में भारत सरकार चाहे कितने भी केंद्रीय बल तैनात कर दे, बिना स्थानीय पुलिस के प्रोफेशनल व निष्पक्ष व्यवहार के कानून व्यवस्था को लागू नहीं किया जा सकता।
दरअसल, पुलिस की नाकामी से आदिवासी समुदायों की इस सोच को अतिरिक्त बल मिलता है कि उनकी सुरक्षा का एकमात्र स्रोत सशस्त्र देशज विद्रोही ही हैं। इसलिए मणिपुर में एक शातिर चक्र चल रहा है, जहां राज्य पुलिस बल की लापरवाही व निष्क्रियता विद्रोह को पनपने का अवसर प्रदान कर रही है और फलस्वरूप राज्य में शांति स्थापित करना निरन्तर अधिक कठिन होता जा रहा है। इन हालात में ज़रूरी है कि भारत सरकार गंभीरता से मणिपुर सरकार के कामकाज व ज़िम्मेदारी की समीक्षा करे। जब तक राज्य के प्रशासन व पुलिस को दुरुस्त नहीं किया जायेगा तब तक मणिपुर जलता रहेगा।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर