मिश्रा आखिर ईडी के ‘परम आवश्यक’ निदेशक क्यों हैं?
यह क्या पहेली है? सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यों की खंडपीठ ने 11 जुलाई, 2023 को कहा था कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निदेशक संजय कुमार मिश्रा को नवम्बर 2021 से दिए गये विस्तार अवैध हैं और केंद्र को 31 जुलाई, 2023 तक ईडी का नया प्रमुख नियुक्त कर देना चाहिए। लेकिन दो सप्ताह के भीतर ही अदालत की उसी खंडपीठ ने 27 जुलाई को विशेष सुनवायी की और ‘पब्लिक व राष्ट्रीय हित’ में मिश्रा का कार्यकाल 15 सितम्बर, 2023 बढ़ा दिया व साथ ही केंद्र के आग्रह को आंशिक रूप से अनुमति प्रदान भी की जिससे मिश्रा अपने वर्तमान पद पर 15 अक्तूबर, 2023 तक बने रहेंगे।
इस पहेली के अनसुलझे पहलुओं से अनेक प्रश्न उठते हैं। अगर दिए गये विस्तार जब अवैध थे तो उन्हें तुरंत पद से हटाने के आदेश क्यों नहीं दिए गये? उन्हें 31 जुलाई तक का समय क्यों दिया गया? फिर ‘पब्लिक व राष्ट्रीय हित’ की ऐसी क्या बात थी या है जिसके लिए अदालत ने विशेष सुनवाई करके मिश्रा का कार्यकाल न केवल 15 सितम्बर, 2023 तक बढ़ाया साथ ही उनके 15 अक्तूबर तक पद पर बने रहने की अनुमति भी दे दी। सोचने की बात यह भी है कि संजय कुमार मिश्रा को ईडी का निदेशक बनाये रखने के लिए भारत सरकार ने ‘असाधारण व असामान्य’ स्थितियों का हवाला देते हुए विशेष याचिका क्यों दाखिल की? केंद्र के लिए मिश्रा ‘परम आवश्यक’ निदेशक क्यों हैं? गौरतलब है कि मिश्रा केवल दूसरे नौकरशाह हैं जिनको पद पर बनाये रखने के लिए यह सरकार अध्यादेश लेकर आयी। इससे पहले यह काम प्रधानमन्त्री के पूर्व प्रिंसिपल सचिव नृपेन्द्र मिश्रा के लिए किया गया था।
बहरहाल, इस पूरी कवायद से 1984 बैच के भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) अधिकारी संजय कुमार मिश्रा के महत्व का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। मिश्रा को अक्तूबर 2018 में तीन माह के लिए ईडी का अंतरिम निदेशक नियुक्त किया गया था और फिर नवम्बर 2018 में उन्हें दो वर्ष के निश्चित कार्यकाल के लिए पूर्णकालिक प्रमुख बना दिया गया। नवम्बर 2020 में जब उनका कार्यकाल समाप्त होने जा रहा था तो केंद्र सरकार ने बहुत खामोशी के साथ उसका विस्तार पूर्वव्यापी प्रभाव से कर दिया यानी प्रारम्भिक दो वर्ष के कार्यकाल को तीन वर्ष का कार्यकाल कर दिया गया? हालांकि इस दौरान मिश्रा ने सेवा निवर्तन हासिल कर लिया था। इसको सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। अदालत ने 2021 में आदेश दिया था कि मिश्रा को आगे अतिरिक्त विस्तार नहीं दिया जाना चाहिए। लिहाज़ा मिश्रा को पद पर बनाये रखने के लिए केंद्र सरकार अध्यादेश लेकर आयी।
दरअसल मिश्रा के नेतृत्व में ईडी अत्यधिक शक्तिशाली बन गई है और उसने भाजपा के राजनीतिक विरोधियों, सिविल सोसाइटी एक्टिविस्ट्स और सरकार के अन्य आलोचकों को कथित तौर पर अपना निशाना बनाया है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, मिश्रा को सरकार का ‘राजनीतिक सेवक’ कहते हैं जिन्हें विपक्षी पार्टियों व उनके नेताओं और जो केंद्र सरकार के समर्थक नहीं हैं, उन्हें लक्षित करने का कार्य दिया गया है।
गौरतलब है कि मिश्रा के प्रमुख रहते हुए ईडी ने विपक्ष के नेताओं की जांच की, जैसे कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम व उनके सांसद पुत्र कार्ति चिदंबरम, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, कर्नाटक के कांग्रेस प्रमुख डी.के. शिवकुमार, एनसीपी नेता शरद पवार, महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख, ‘आप’ के मंत्री मनीष सिसोदिया व सत्येन्द्र जैन और तमिलनाडु के मंत्री सेंथिल बालाजी।
संजय कुमार मिश्रा की ईडी पर मज़बूत पकड़ है और संभवत: इसी वजह से इस भ्रष्टाचार रोधी एजेंसी ने वरिष्ठ राजनीतिक कार्यकर्ताओं, पूर्व मंत्रियों व शक्तिशाली नेताओं पर अपना शिकंजा कसा है। पिछले पांच वर्षों के दौरान ईडी ने लगभग 4,000 केस दर्ज किये हैं और तकरीबन 3,000 छापे मारे हैं। आश्चर्य की बात यह है कि इन जांच व छापों में केंद्र व राज्यों में भाजपा से जुड़े नेताओं या कार्यकर्ताओं के नाम तलाश कर पाना अति कठिन है जबकि उन पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं और कुछ के यहां से तो स्थानीय पुलिस ने मोटी राशि भी बरामद की। मार्च 2023 में कर्नाटक लोकायुक्त अधिकारियों ने भाजपा विधायक के मडल विरुपक्षप्पा के बेटे प्रशांत मडल के घर व दफ्तर से 8.12 करोड़ रुपये बरामद किये थे, जो कि अवैध रूप से हासिल किये थे। इसके अतिरिक्त ऐसे भी आरोप हैं कि भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपी जैसे ही भाजपा में शामिल होते हैं तो उनके खिलाफ चल रही जांच अचानक बंद हो जाती है।
21 जुलाई, 2015 को भाजपा ने नई दिल्ली में अपने सांसदों की बैठक, जिसमें प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी भी शामिल थे, में एक पुस्तिका ‘वाटर सप्लाई स्कैम 2010 इन गोआ एंड गुवाहाटी’ जारी की थी जिसमें हिमंता बिस्वा सरमा पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाते हुए उन्हें लुइस बर्जर घोटाले का मुख्य संदिग्ध बताया गया था।
इस मामले में 7 जुलाई, 2015 को केस दर्ज किया गया था। उस समय सरमा कांग्रेस में थे और अब वह असम में भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री हैं। इस केस की जांच कहां तक पहुंची है या ठंडे बस्ते में है, किसी को कोई खबर नहीं है। इस प्रकार के अन्य अनेक उदाहरण हैं।
बहरहाल, मिश्रा ने ईडी के स्कोप का विस्तार किया है। पीएमएलए (धन शोधन निवारण अधिनियम) या भगोड़ा आर्थिक अपराध अधिनियम, 2018 और विदेशी मुद्रा विनियम अधिनियम की नागरिक धाराओं को लागू करने के लिए बाहरी विशेषज्ञों व प्रोफेशनलों को अपने साथ शामिल किया है। जिन लोगों ने मिश्रा के करियर पर गहरी नज़र रखी है, वह उनके कौशल व गतिशीलता की प्रशंसा करते हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि टैक्सेशन मामलों की जटिलताओं, भ्रष्टाचार व फाइनेंस के बारे में उनकी समझ गहरी है। एक नौकरशाह के रूप में वह लो प्रोफाइल बने रहते हैं। उन्हें बमुश्किल ही नेटवर्किंग करते हुए या सार्वजनिक तौर पर राजनीतिक शख्सियतों व नौकरशाहों से मिलते हुए देखा जाता है।
वह मीडिया से भी न के बराबर ही बात करते हैं। भारत सरकार के एक अवकाश प्राप्त सचिव का कहना है कि मिश्रा दुर्लभ नौकरशाह हैं जो संप्रग के दौर में दिवंगत कांग्रेस नेता अहमद पटेल की आंख का तारा थे और अब वर्तमान केंद्र सरकार के लिए पूर्णत: ‘परम आवश्यक’ बन गये हैं। एक अन्य नौकरशाह जो प्रणव मुखर्जी के दौर में वित्त मंत्रालय में काम करते थे, का कहना है कि मिश्रा उस समय के राजस्व सचिव से भी अधिक शक्तिशाली बन गये हैं।
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