छत्तीसगढ़ के त्रिवेणी संगम पर लगने वाला राजिम कुम्भ कल्प मेला

हर साल माघ पूर्णिमा से शुरु होकर महाशिवरात्रि तक चलने वाला छत्तीसगढ़ का राजिम कुम्भ कल्प मेला इस साल 24 फरवरी से 8 मार्च 2024 तक आयोजित होगा। यह न केवल आदिवासियों का देश में लगने वाला सबसे बड़ा मेला है बल्कि प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन के बाद यह छत्तीसगढ़ के राजिम शहर में आयोजित होने वाला पांचवां ‘महाकुंभ’ भी है। इसमें देश के हर कोने से साधु, संत, पीठाधीश्वर, मठाधीश और शंकराचार्य भी स्नान के लिए पहुंचते हैं। छत्तीसगढ़ के गारियाबंद ज़िले में स्थित राजिम यूं तो एक छोटा सा शहर है, मगर इसकी धार्मिक मान्यताएं बहुत बड़ी हैं। इसका भूगोल कुछ कुछ प्रयागराज जैसा है। प्रयागराज की तरह यहां भी तीन नदियों का संगम यानी त्रिवेणी है। प्रयागराज में तो गंगा, यमुना के अलावा तीसरी सरस्वती नदी अदृश्य है। लेकिन यहां साक्षात तीन नदियां मौजूद हैं। यहां महानदी में आकर दो नदियां पैरी और सोंढूर मिलती हैं। इसी संगम के किनारे देश का यह पांचवां महाकुंभ मेला आयोजित होता है। इस पवित्र संगम में डुबकी लगाने के लिए महाकुम्भ के दौरान यहां देश के कोने-कोने से लाखों लोग आते हैं।
गौरतलब है कि पहले इस मेले को राजिम कुम्भ कल्प मेला नहीं कहा जाता था बल्कि राजिम माघी पुन्नी मेला कहते थे। लेकिन 2005 में भाजपा के शासनकाल के दौरान इसे राजिम कुंभ कल्प मेला कहा जाना शुरु हुआ। मगर 2018 में जब यहां कांग्रेस की सरकार आ गयी तो फिर उसने इसका नाम राजिम माघी पुन्नी मेला कर दिया। लेकिन जब पिछले यानी दिसम्बर 2023 में एक बार फिर से छत्तीसगढ़ में भाजपा सत्ता आ गई है तो फिर से इस प्रसिद्ध मेले का नाम राजिम कुम्भ कल्प कर दिया गया है। हाल के सालों में जिस तरह से इसका प्रचार, प्रसार हुआ है, उसके कारण न सिर्फ छत्तीसगढ़ की इस त्रिवेणी पर डुबकी लगाने के लिए देश के कोन कोने से बल्कि हजारों विदेशी पर्यटक भी यहां पहुंचते हैं। इस बार 10,000 से ज्यादा साधु, संत, शकंराचार्य, महामंडलेश्वर और नागा साधुओं ने यहां आने के लिए खुद का रजिस्ट्रेशन करवाया था, लेकिन बिना रजिस्ट्रेशन के सैकड़ों गुना लोग यहां पहुंचेंगे। इस बार इस त्रिवेणी के तट पर पंडित प्रदीप मिश्रा और बागेश्वर धाम से धीरेंद्र शास्त्री भी पधार रहे हैं, इस कारण इस साल अनुमान से कहीं ज्यादा श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। इस कुंभ कल्प में श्रद्धालु माघ पूर्णिमा की रात 3 बजे से ही स्नान करना शुरु कर देते हैं, जो कि अगले दिन शाम तक चलता है।
24 फरवरी से 8 मार्च तक चलने वाले इस कुंभ कल्प में 4 मार्च को दूसरा पवित्र स्नान जानकी जयंती पर और 8 मार्च को तीसरा तथा शाही स्नान महाशिवरात्रि पर होगा। शाही स्नान वाले दिन देश के जाने माने महामंडलेश्वर, पीठाधीश्वर, शकंराचार्य और नागा साधु पवित्र त्रिवेणी में स्नान करते हैं। छत्तीसगढ़ सरकार का अनुमान है कि इस साल मेले में 30 लाख से ज्यादा लोग आएंगे। श्रद्धालुओं की इसी संख्या को ध्यान में रखकर मेले की तैयारी की गई है। कुंभ कल्प में सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था हो इसके लिए हजारों सीसीटीवी कैमरे समूचे मेला परिसर में लगाये गये हैं और कई गोताखोर तथा पुलिस बल इस कुंभ कल्प के दौरान पूरे समय यहां तैनात रहेंगे। त्रिवेणी संगम में 15 दिनों तक महानदी की आरती के लिए घाट भी तैयार किया गया है और हजारों वाहनाें की पार्किंग व्यवस्था भी की गई है। चूंकि इस शहर के इर्दगिर्द छत्तीसगढ़ के और भी कई विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटनस्थल मौजूद हैं, जैसे राजीव लोचन मंदिर जो देश के सबसे पुराने भगवान विष्णु के मंदिरों में से एक है। इस दौरान राजीव लोचन मंदिर और कुलेश्वर महादेव मंदिर में भी लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
राजिम के कुंभ कल्प मेले के महत्व को इस बात से भी जाना जा सकता है कि अगर आपने राजिम की यात्रा नहीं की तो आपकी पूरी की यात्रा का कोई मतलब नहीं है। पूरी की यात्रा अधूरी मानी जाती है। इस धर्म क्षेत्र को कुलेश्वर की संज्ञा दी जाती है, क्योंकि माना जाता है कि ब्रह्मांड के निर्माण के समय भगवान विष्णु के नाभि से निकले कमल पुष्प के पत्ते पृथ्वी पर जिस जगह गिरे थे, यह वही जगह है। बहरहाल छत्तीसगढ़ के जिस गारियाबंद ज़िले में आजकल राजिम शहर पड़ता है, पहले वह गारियाबंद जिला, बिंद्रानवागढ़ तहसील के नाम से जाना जाता था और ब्रिटिशकाल के दौरान यह महासमुंद तहसील का हिस्सा था। इस जिले का नाम गारियाबंद इसलिए है क्योंकि यह गिरि यानी पहाड़ों से घिरा हुआ है।

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