चीन व अमरीका के शीत-युद्ध में कूटनीतिक हथियार बना टिकटॉक

आज लगभग हर चीज़ को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की पृष्ठभूमि में देखा जा रहा है, लेकिन एक दशक पहले स्थिति यह न थी। साल 2010 के दशक के शुरुआत में एआई  से संबंधित चर्चा अकेडमिक क्षेत्रों व विज्ञान समुदायों तक ही सीमित थी। उस समय कम्प्यूटर इंजीनियर जहांग यिमिंग ने एआई-आधारित रिकमेंडेशन इंजन बनाना शुरू किया, जिसने लोगों का ऑनलाइन सूचना से जुड़ने का तरीका ही बदल दिया। रियल एस्टेट सर्च कंपनी सफलतापूर्वक स्थापित करने के बाद यिमिंग एक दिन बीजिंग में मेट्रो राइड पर थे कि उन्होंने नोटिस किया कि लोग अखबार कम पढ़ रहे थे, जबकि अपने स्मार्टफोन का अधिक इस्तेमाल कर रहे थे। इस अवलोकन की बदौलत उन्होंने चीन में सबसे कीमती स्टार्ट-अप्स विकसित किया, जिसकी वजह से वह फोर्ब्स की रईस व्यक्तियों की सूची में 26वें स्थान पर पहुंच गये। यिमिंग ने 2012 में अपने पूर्व रूम-मेट लिआंग रुबो और डिवेल्पर्स के समूह की मदद से बाइटडांस शुरू की, जोकि शोर्ट-वीडियो शेयरिंग एप्प है। 
चीन में इसकी अपार सफलता से प्रेरित होकर उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय यूजर्स के लिए इसका टिकटॉक वज़र्न लांच किया, जोकि अमरीका व चीन के टेक शीत युद्ध में फंस गया है। 
अमरीका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव सदन ने टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक द्विदलीय (जिसमें दोनों मुख्य पार्टियां आपस में सहमत हो जाती हैं) विधेयक पारित किया है, जिस पर अब केवल सीनेट और राष्ट्रपति जो बाइडन की सहमति की मोहर लगना शेष है। अगर टिकटॉक की पैरेंट कम्पनी बाइटडांस अपना नियंत्रण स्टेक किसी ऐसी कम्पनी को नहीं बेचती हैं, जिसका चीन, रूस, ईरान व उत्तर कोरिया से कोई संबंध न हो या प्रस्ताव अदालत में खारिज नहीं हो जाता है, तो यह एप्प अमरीका में प्रतिबंधित हो जायेगा यानी अपने एक मुख्य बाज़ार को खो बैठेगा। टिकटॉक के अमरीका में लगभग 170 मिलियन यूजर हैं। भारत में जब इसे 58 अन्य चीनी एप्पस के साथ प्रतिबंधित किया गया था, तब भारत में इसके तकरीबन 200 मिलियन यूजर थे। उस समय अमरीका ने तुरंत नई दिल्ली के निर्णय की तारीफ करते हुए कहा था कि इससे ‘भारतीय सम्प्रभुता को बल मिलेगा’। फिर अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति ने टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाने के लिए एग्जीक्यूटिव आर्डर जारी किया था, अगर वह किसी अमरीकी कम्पनी को नहीं बेचा जाता है तो। माइक्रोसॉफ्ट ने टिकटॉक की अमरीका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया व न्यूज़ीलैण्ड में बिज़नस खरीदने के लिए वार्ता की, जो असफल रही। तब से अनेक देश सरकारी उपकरणों पर टिकटॉक को प्रतिबंधित कर चुके हैं। अमरीका के राज्य मोंटाना ने व्यक्तिगत उपकरणों पर टिकटॉक पर रोक लगायी थी, लेकिन फैडरल कोर्ट ने प्रतिबंध को हाल ही में खारिज कर दिया।
भारत में टिकटॉक पर प्रतिबंध के कारण मल्टीबिलियन डॉलर के अवसर उत्पन्न हुए। इन्हें भुनाने के लिए भारतीय शोर्ट-वीडियो स्टार्ट-अप्स को फण्ड किया गया। चिंगारी, रोपोसो, मोज, जोश, एमएक्स टकाटक, मित्रों व पंच जैसे एप्पस वजूद में आये और उस 200 मिलियन यूजर बेस को आकर्षित करने का प्रयास करने लगे जिसे एक मंच की तलाश थी। लेकिन इन्हें न यूजर मिले और न राजस्व मिला। दरअसल, भारतीय प्रतिबंध का असल लाभ इंस्टाग्राम व यू-ट्यूब को मिला, जिन्होंने कुछ ही माह में अपने शोर्ट वीडियो सैक्शन लांच कर दिए, रील्स व शॉर्ट्स। 
कानूनी दृष्टि से यह प्रतिबंध बहुत कमज़ोर था और इसे आसानी से अदालत में चुनौती दी जा सकती थी। भारत के इन्फोटेक ब्लॉकिंग प्रावधानों का प्रयोग करके एप्पस को प्रतिबंधित करना अनुचित था, क्योंकि इनका उद्देश्य अवैध कंटेंट को संबोधित करना है। एप्पस व एकाउंट्स पर प्रतिबंध लगाकर आप न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के वैध तरीकों को बाधित कर रहे हैं बल्कि भविष्य की अभिव्यक्ति पर भी रोक लगा रहे हैं। इंटरनेट दुनिया को एक मंच पर लाने का माध्यम है और अभिव्यक्ति व व्यापार के लिए ग्लोबल बाज़ार है। इसलिए किसी भी देश के एप्पस पर प्रतिबंध लगाने का विचार बेकार का प्रतीत होता है। बहरहाल, चीनी एप्पस पर प्रतिबंध लगाना सही दिशा में उठाया गया कदम मालूम हुआ। 
हालांकि अमरीका में टिकटॉक क्रिएटर्स ने कैपिटल के बाहर विधेयक का विरोध किया है, लेकिन उन्हें कोई दूसरा प्लेटफार्म मिल जायेगा। बाइटडांस के पास टिकटॉक को बेचने का छह माह का समय है। अगर वह बेच भी देता है तो भी इस बात की क्या गारंटी है कि अन्य स्रोतों से संवेदनशील डाटा चीनी सरकार तक नहीं पहुंचेगा? अमरीका में अनेक मोबाइल एप्प विशाल मात्रा में व्यक्तिगत डाटा एकत्र करके उसे देश व विदेश की कम्पनियों को बेचते हैं। दरअसल, एआई के दौर में ग्लोबल गांव बनती दुनिया में प्रतिबंध केवल दिल को बहलाने का ख्याल बनकर रह गया है क्योंकि आज के दौर में हर चीज़ उपलब्ध है, हर चीज़ बिकती है, बस खरीदार होना चाहिए।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर