असम्भव को सम्भव करने का यत्न

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आज यूक्रेन एवं गाज़ा पट्टी दो स्थानों पर बेहद विनाशकारी युद्ध चल रहा है। रूस ने कभी अपने भागीदार तथा साथी रहे पड़ोसी देश यूक्रेन पर 24 फरवरी, 2022 को हमला किया था। चाहे शुरू में इस लड़ाई के शीघ्र ही खत्म हो जाने की उम्मीद व्यक्त की जा रही थी, क्योंकि यूक्रेन के मुकाबले रूस हर पक्ष से शक्तिशाली दिखाई देता था, परन्तु इस बात की उम्मीद नहीं की जाती थी कि यूक्रेन इस तरह अपने विनाश को देखते हुए भी रूस का सामना करने का हौसला कर सकेगा। इसका एक कारण तो वहां के राष्ट्रपति व्लोदिमीर ज़ेलेंस्की के नेतृत्व में यूक्रेन के लोगों का पूरी हिम्मत एवं दृढ़ता के साथ रूस विरुद्ध खड़े रहना है, चाहे कि यूक्रेन में अब तक हज़ारों की संख्या में जन-हानि हो चुकी है। एक बड़े भाग में मूलभूत ढांचा पूरी तरह तबाह हो चुका है। इसकी आर्थिकता भी बुरी तरह से लड़खड़ा चुकी है। रूस की ओर से लगातार हमले जारी रखे जा रहे हैं तथा उसने यूक्रेन के एक बड़े भाग पर कब्ज़ा भी कर लिया है, परन्तु इस सब के बावजूद  यूक्रेन ने अभी तक हार नहीं मानी। इसके पीछे एक और कारण अमरीका, आस्ट्रेलिया तथा कनाडा के साथ-साथ यूरोप के लगभग दर्जन भर देशों का यूक्रेन के साथ खड़ा होने का संकल्प एवं उसे लगातार भारी संख्या में हर तरह के हथियारों की आपूर्ति करना भी कहा जा सकता है। यह विनाशकारी युद्ध इस सीमा तक जा पहुंचा है, जहां इसका कोई भी हल निकलना असम्भव प्रतीत होता है, परन्तु स्विटज़रलैंड की ओर से इस मास विश्व भर के देशों की इस संबंध में बुलाई गई कान्फ्रैंस पैदा हुये इस संकट को हल करने संबंधी एक बड़ा प्रयास कहा जा सकता है। ऐसा करके नि:संदेह वह असम्भव कार्य को सम्भव बनाने का यत्न कर रहा है।
स्विटज़रलैंड विगत लम्बी अवधि से अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी निष्पक्ष नीति के लिए जाना जाता रहा है। उसके यत्न पर विश्वास करना बनता है। स्विटज़रलैंड के राष्ट्रपति वियोला एमहर्ड की कुछ मास पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमीर ज़ेलेंस्की के साथ भेंट हुई थी। इस दौरान हुये विचार-विमर्श के पीछे ऐसी योजना सामने आई है। इसका ठोस आधार बनाने संबंधी स्विटज़रलैंड ने पिछले कई मास से बड़े-छोटे और कई देशों के साथ भी सम्पर्क बना कर रखा है। घोषित तिथियों के अनुसार स्विटज़रलैंड में यह अन्तर्राष्ट्रीय कान्फ्रैंस 15 एवं 16 जून को हो रही है। इससे पहले 13 से 15 जून तक इटली में जी-7 देशों के नेताओं की बैठक भी तय है। स्विटज़रलैंड ने अब तक विश्व के लगभग 120 देशों को इस सम्मेलन में भाग लेने का निमंत्रण दिया है। इसी क्रम में ही भारत को भी निमंत्रण दिया गया है। स्विटज़रलैंड की ओर से रूस एवं उसके साथी देशों को भी इस कान्फ्रैंस में शामिल करने के पूरे यत्न किये जा रहे हैं। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने इस संबंध में यह बयान दिया है कि इस में रूस के पक्ष को भी महत्त्व दिया जाना ज़रूरी है। ऐसा न हो कि इसमें यूक्रेन के पक्ष में ही राग अलापा जाये। इसके साथ ही रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यह धमकी भी दी है कि जब तक रूस की ओर से निर्धारित लक्ष्य पूरे नहीं होते, तब तक इस क्षेत्र में कोई शांति नहीं हो सकती। अमरीका भी इस युद्ध में बड़ा भागीदार बना रहा है। इसलिए इस सम्मेलन में अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन का शामिल होना भी बेहद ज़रूरी है, परन्तु आगामी दिनों में अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव होने जा रहे हैं, जिन्हें लेकर चुनावी गतिविधियां शिखर पर हैं। इसलिए यह देखना होगा कि जो बाइडन इस कान्फ्रैंस के लिए समय निकालेंगे या नहीं? इसके साथ ही चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग तथा रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भाग लेने संबंधी भी अनिश्चित स्थिति बनी  हुई है।
भारत के रूस एवं यूक्रेन दोनों के साथ अभी तक अच्छे संबंध बने हुये हैं। भारत इस कान्फ्रैंस में हिस्सा लेने का समर्थन करता भी नज़र आ रहा है, परन्तु यहां 4 जून तक हो रहे लोकसभा चुनावों के बाद नई सरकार के गठन के बाद ही इस कान्फ्रैंस में भारत के भाग लेने संबंधी कोई ठोस आधार बनाया जा सकेगा। इस संबंध में यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने भी क्षेत्र में शांति के लिए अपना 10 सूत्रीय फार्मूला तैयार किया है, जिसे विश्व भर में नशर भी कर दिया गया  है। हम स्विटज़रलैंड के इस यत्न की प्रशंसा करते हैं, एवं इसकी सफलता की भी आस करते हैं। क्योंकि स्विटज़रलैंड की निष्पक्षता की छवि का प्रभाव बेहद मज़बूत है। चाहे इस कान्फ्रैंस को किसी भी आगामी बातचीत के लिए पहला कदम कहा जा सकता है, परन्तु इसके प्रति अब तक भिन्न-भिन्न देशों की ओर से दिया गया सकारात्मक समर्थन बड़ी उम्मीद ज़रूर पैदा करता है। इस यत्न से आज बेहद खतरनाक मोड़ पर आ खड़े हुए इस युद्ध को कोई नया मोड़ दिये जाने की सम्भावना बन सकती है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द