राजनीतिक पार्टियों द्वारा प्रस्तुत संकल्प-पत्र

देश में 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव होने जा रहे हैं। वर्ष 1952 से शुरू हुआ यह चुनाव सिलसिला लगातार जारी है। देश में स्थापित लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए ये चुनाव अहम होते हैं। भिन्न-भिन्न पार्टियां इस अवसर पर मतदाताओं के समक्ष अपनी ओर से किये गये अथवा किये जाने वाले कामों का प्रारूप चुनाव घोषणा पत्रों अथवा संकल्प पत्रों के रूप में प्रस्तुत करती हैं। देश की आज़ादी के बाद उस समय वरिष्ठ नेताओं एवं विचारवानों ने मिलकर कुछ अन्य देशों के संविधानों तथा राजनीतिक प्रणालियों का अध्ययन करके एक उत्तम किस्म का संविधान बनाया था। इसके दीर्घकालिक होने के लिए इसके बीच की स्थापित प्रणालियों में समय-समय पर ज़रूरत के अनसुर संशोधन करने के नियम भी बनाये गये थे। उनके अनुसार समय-समय पर किये गये संशोधनों के कारण यह संविधान आज तक भी प्रासंगिक बना रहा है। तत्कालीन सरकारें अपने उद्देश्यों को पूरा करने में किस सीमा तक सफल होती रही हैं, इसका फैसला भी बड़ी सीमा तक लोकसभा के चुनाव ही करते रहे हैं। 
पिछले 10 वर्ष से एन.डी.ए. के नेतृत्व वाली मोदी सरकार की कार्यशैली को देखा गया है। इसकी कारगुज़ारी के परिणाम भी लोगों के सामने हैं। इससे पहले यू.पी.ए. की डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने भी 10 वर्ष का समय पूरा किया था। पंडित जवाहर लाल नेहरू से शुरू होकर आज तक यह सिलसिला जारी है। देश में केन्द्र में अधिक समय के लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारें सत्तारूढ़ रही हैं। समय-समय पर विपक्षी दलों को भी प्रशासन चलाने का अवसर मिलता रहा है। देश के निर्माण में सभी सरकारों का अपना-अपना योगदान रहा है। इसके साथ-साथ उनकी त्रुटियों के संबंध में भी लगातार सवाल उठते रहे हैं। कोई भी सरकार पिछले निर्माण को छोड़ कर फिर शुरू से नया निर्माण नहीं कर सकती। आज चाहे भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार पूर्व सरकारों की ओर से विकास की निर्धारित की गईं मंज़िलों को दृष्टिविगत करके अपने उठाये गये कदमों को ही महत्त्वपूर्ण समझ रही है परन्तु कोई भी अगला पड़ाव उससे पिछले पड़ाव के बाद ही शुरू होता है। सरकारों का उद्देश्य जहां लोगों को हर पक्ष से अच्छा एवं खुशहाल जीवन देना होना चाहिए, वहीं उसके कदमों की तेज़ी को भी मापा जाता है। 
आज भाजपा सरकार के सारथी नरेन्द्र मोदी हैं। इसीलिए पार्टी की ओर से इन चुनावों में मोदी की ओर दी जाती गारंटियों को ही उभारने का यत्न किया जा रहा है। सरकार का यह दावा है कि पिछले 10 वर्ष में उसने करोड़ों ही लोगों को ़गरीबी रेखा से ऊपर उठाया है। हम समझते हैं कि आज भी यह समस्या किसी भी सत्तारूढ़ पार्टी की ओर से प्रमुख प्राथमिकता होनी चाहिए, क्योंकि आज भी देश में ज्यादातर स्थानों पर दयनीय ़गरीबी के दृश्य देखे जा सकते हैं। आज भी अधिक से अधिक रोज़गार के साधन पैदा किये जाने ज़रूरी हैं ताकि प्रत्येक स्थिति में लोगों को बेरोज़गारी एवं ़गरीबी से उभारा जा सके। बेरोज़गारी एवं महंगाई आज भी सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण मुद्दे बने हुये हैं, जिन्हें नियन्त्रित करने में ही सरकार की सफलता मानी जा सकती है।
नि:संदेह पिछले 10 वर्ष में जहां देश के सामने बेहद चुनौतियां खड़ी रही हैं, वहीं सरकार ने अपनी दृढ़ता से इनका मुकाबला करने का भी यत्न किया है, परन्तु इसके साथ-साथ यह ध्यान भी रखा जाना ज़रूरी है कि भारत बेहद विभिन्नताओं वाला देश है। यहां स्थानीय स्तर पर भिन्न-भिन्न प्रदेशों में अनेकानेक मामले सामने आते रहते हैं, जिनके हल अलग-अलग ढंग-तरीकों से निकाले जाने ज़रूरी होते हैं। भिन्न-भिन्न पार्टियों की ओर से पेश संकल्प पत्रों को उन पार्टियों के सत्ता में आने पर क्रियात्मक रूप कैसे दिया जाता है, इस संबंध में भी लगातार जांच-पड़ताल होनी ज़रूरी है। इसके साथ-साथ राजनीतिक नेताओं एवं पार्टियों की विश्वसनीयता को भी जांचा जाना चाहिए, क्योंकि आने वाले समय में केन्द्र में बनने वाली सरकार के कार्यों का जन-जीवन पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता देखा जाएगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द