इलैक्टोरल बॉन्ड पर कुछ और सवाल

इलैक्टोरल बॉन्ड पर जो चीज़ें सामने आई हैं, उससे कुछ और सवाल उठे हैं। नये खुलासे के अनुसार सबसे ज्यादा राशि भाजपा को ही मिली है। सी.बी.आई., आयकर और ई.डी. की जांच में शामिल  हुई कम्पनियों ने लगभग 2471 करोड़ का चंदा दिया है। इसमें से 1698 करोड़ भाजपा को मिले हैं। आरोप लगाने वाले कह रहे हैं कि कई कम्पनियों ने 1751 करोड़ चंदा भाजपा को दिया है जिसके बाद 62 हज़ार करोड़ का धंधा यानी लाइसैंस मिल गया था। तीन दशक पहले वोहरा कमेटी ने नेता, अफसर, उद्योगपति और अपराधियों के गठजोड़ की रिपोर्ट सौंप दी थी।
 विपक्ष कह रहा है कि चुनावी बॉन्ड के खुलासे से लूट के आपराधिक तंत्र पर मुहर लग चुकी है। भाजपा के लोग निश्चयात्मक स्वर में कह रहे हैं कि जीत की हैट्रिक लगने ही वाली है। लेकिन इसे विडम्बना ही कहा जा सकता है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पैसों की कमी के कारण चुनाव नहीं लड़ने की बात कही है, लेकिन उनके पति प्रभाकर के अनुसार चुनावी बॉन्ड दुनिया का सबसे बड़ा स्कैम है। इधर भाजपा के नेताओं का कहना है कि इलैक्टोरल बॉन्ड चुनाव प्रक्रिया में काला धन खत्म करने के लिए लाया गया है। इसमें लेने वाले और देने वाले दोनों के खाते में दर्ज है कि कितना पैसा लिया गया  या दिया गया। क्योंकि इससे पहले के चुनाव में भी धन तो लिया दिया जाता रहा है जो गुप्त ही रहता था। इलैक्टोरल बॉन्ड की मार्फत धन केवल भाजपा को ही नहीं मिला, अपितु कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और अन्य को भी मिला है। 
ईडी के अनुसार जन-प्रतिनिधित्व कानून के तहत रजिस्टर्ड पार्टियों को कम्पनी जैसा ही माना जा सकता है। उसी के अनुसार शराब घोटाले में लाभार्थी के तौर पर ‘आप’ पार्टी को कम्पनी और केजरीवाल को निदेशक अथवा सी.ई.ओ. मानते हुए मुकद्दमा चलाने की नौबत आई है। शराब घोटाले से जुड़ी कम्पनी ने भाजपा को 44.5 और तेलंगाना की बी.आर.एस. पार्टी को 15 करोड़ का चंदा दिया है जिसकी नेता कविता तिहाड़ जेल में बंद है। जब केजरीवाल ने अदालत में अपनी पैरवी खुद की, उसने भाजपा को भी कटघरे में लाने की कोशिश की लेकिन भाजपा को गलत साबित करने की मुहिम छेड़ कर ही केजरीवाल दोष मुक्त साबित नहीं हो जाते। भाजपा के पक्षधर तो कहते हैं कि जेल से गैंग चलते हैं, सरकारें नहीं। लालू यादव और हेमंत सोरेन के उदाहरण हमारे सामने हैं, लेकिन केजरीवाल जेल से ही सरकार चलाना चाहते हैं और अपने मंत्रियों को आदेश दे रहे हैं। इधर भ्रष्टाचार, परिवारवाद तथा संवैधानिक संस्थाओं के गिरावट के कारण भाजपा ने कांग्रेस को ज़िम्मेदार बताया है। खुद सुशासन और अच्छे दिनों का वायदा करके कांग्रेस को पराजित कर बाहर किया था। अधिकांश पूर्व प्रधानमंत्रियों के परिजन इस समय भाजपा के सहयोगी ही बन चुके हैं। कई दर्जन कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले या इच्छुक भाजपा को ही ‘मे आई कम इन’ कह चुके हैं और भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। 
वित्त मंत्री ठीक ही कह रही हैं कि कानून के तहत चुनावी बॉन्ड से पैसा लेना वैध था, लेकिन अगर चंदा आपराधिक और अवैध तरीके से लिया गया है तो इस पर कानूनी सुरक्षा उपलब्ध नहीं है। प्रधानमंत्री ने हाल ही में कहा है कि ई.डी. ने बंगाल के नेताओं और अफसरों से जो तीन हज़ार करोड़ जब्त किये हैं और लूट का यह पैसा गरीबों को वापिस मिले, वे इसे सुनिश्चित करने के लिए कार्य कर रहे हैं। इस पूरे कांड में न्यायालय की भूमिका प्रशंसनीय है। वहां से आगे भी अंधकार में कोई नया दीप उजाला देता नज़र आ सकता है। लूटने वाले बख्शे नहीं जाने चाहिएं।