नैतिक मूल्यों के लिए संकल्प का दिन है महावीर जयंती

आज के लिए विशेष 

जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर के विचारों के कारण ही भारत मूलत: अहिंसावादी और आध्यात्मिक स्वतंत्रता वाला देश कहलाता है। भगवान महावीर के पंचशील सिद्धांत न सिर्फ  भारत की संस्कृति का सार हैं बल्कि हिंदू-सनातन परम्परा का भी मूल हैं। इन पंचशील सिद्धांतों में सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अस्तेय और ब्रह्मचर्य के बारे में बताया गया है। बौद्ध धर्म के प्रवर्त्तक गौतम बुद्ध की तरह ही जैन धर्म के प्रवर्त्तक भगवान महावीर ने भी 30 वर्ष की आयु में सांसारिक मोह माया को त्याग दिया था। भगवान महावीर की जयंती के दिन जैन समाज के लोग उनके महत्वपूर्ण संदेशो समाज में फैलाते हैं ताकि जैन धर्म फले-फूले। इस वर्ष महावीर जयंती 21 अप्रैल को मनाई जा रही है।
यह दिन जैन धर्म के अनुयायियों के लिए सबसे बड़ा त्योहार होता है। इस दिन भगवान महावीर को बिहार स्थित पावापुरी में मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। जैन धर्म के अनुयायी इस दिन भगवान महावीर को याद करने के लिए प्रभात फेरियां निकालते हैं। शोभा यात्रा निकालते हैं और भगवान महावीर की मूर्ति का सोने और चांदी के कलशों में भरे गये जल से जलाभिषेक करते हैं। इस पूरे दिन जैन धर्म के गुरु अपने समाज के लोगों को पूरे दिन भगवान महावीर के प्रमुख उपदेशों को सुनाते हैं और लोगों से उन पर चलने का आह्वान करते हैं।
भगवान महावीर कहते थे, ‘अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है।’ उनके मुताबिक धर्मात्मा वही है, जिसके मन में सदा धर्म का वास रहता है। देवता लोग भी उसे नमस्कार करते हैं। भगवान महावीर त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील एवं सदाचार की सीख देते हैं और इसे ही इन्सान का सबसे मजबूत धर्म बताते हैं। भगवान महावीर को  ‘महावीर’ इसलिए कहते हैं, क्योंकि धर्मशास्त्रों के मुताबिक डर, कठिनाइयों, आपदाओं आदि में दृढ़ रहने तथा इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने वाले को महावीर कहते हैं । स्वामी महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व में बिहार के वैशाली जिले में स्थित कुंडलपुर गांव में हुआ था। वह शाही परिवार में पैदा हुए थे, लेकिन कम उम्र में ही भिक्षु बनने के लिए उन्होंने घर को त्याग दिया। 30 वर्षों तक उन्होंने घूम-घूमकर उपदेश दिये और 30 वर्षों के बाद दीवाली की रात उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
भगवान महावीर का बचपन का नाम वर्द्धमान था। उनके पिता राजा सिद्धार्थ थे और माता रानी त्रिशला थीं। स्वामी महावीर के गुरु 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे। वह बनारस में सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व में शिक्षक थे। स्वामी महावीर ने जैन सिद्धांतों के साथ साथ, जैन धर्म के आध्यात्मिक, पौराणिक और ब्रह्मांड संबंधी मान्यताओं को व्यवस्थित किया था। महावीर जयंती के दिन जैन समुदाय अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और परिजनों के साथ मिलकर जीवन के कई संकल्प लेते हैं। महावीर जयंती के दिन भगवान महावीर की मूर्ति का प्रदर्शन होता है, उसे सुगंधित तेल से धोया जाता है, जो उनकी पवित्रता को दर्शाता है। इस दिन भारत और दुनियाभर के जैन समुदाय के लोग जैन मंदिरों में दर्शन करने हेतु आते हैं। इस दिन जिस जैन तीर्थस्थल पर सबसे ज्यादा भीड़ होती है, वह कर्नाटक में स्थित गोमतेश्वर है। इस दिन देशभर में सरकारी छुट्टी होती है और सभी राज्य, स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर के सरकारी कार्यस्थल बंद रहते हैं। साथ ही जैन समुदाय के लोग या जैन स्वामित्व वाली दुकानें तथा वाणिज्यिक संस्थान भी बंद रहते हैं। इस दिन जैन समुदाय के लोग भगवान महावीर की शिक्षाओं का प्रसार करने के लिए एक रथयात्रा निकालते हैं, जिसके शीर्ष पर भगवान महावीर की मूर्ति को बहुत करीने से रखा जाता है। इस दिन मंदिरों को जैन धर्म के झंडों से सजाया जाता है और जैन समुदाय के लोग इस दिन घूम-घूमकर पशुओं के वध का विरोध करते हैं। इस तरह देखा जाए तो महावीर जयंती नैतिक मूल्यों और अनुशासन के संकल्प का दिन होता है। 
गोमतेश्वर, गजपंथा, गिरनारजी, मधुबन और मूंगी-तूंगी जैसे मशहूर जैन तीर्थस्थल हैं, जहां जैन धर्मवलम्बी एवं अन्य धर्मों के लोग घूमने एवं श्रद्धावनत होने के लिए जाते हैं। मधुबन झारखंड में स्थित है। गिरनारजी गुजरात में स्थित है। गोमतेश्वर कर्नाटक में एक आकर्षक पर्यटनस्थल है। मूंगी-तूंगी और गजपंथा महाराष्ट्र में स्थित जैन धर्मावलम्बियों के  प्रसिद्ध तीर्थ स्थान हैं। महावीर जयंती के दिन जैन धर्म पर आस्था रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अहिंसा, ईमानदारी, चोरी न करना, शुद्धता और अपरिग्रह जैसी शिक्षाएं लेनी चाहिएं, तभी यह महान दिन हमारे विचारों और संदेशों को मानवता से ओतप्रोत करेगा।-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर