नमोशी का आलम

एक तरफ लोकसभा के चुनाव सिर पर हैं, दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी बड़ी नमोशी के दौर में से गुज़र रही है। इन चुनावों में भी और इससे पहले हुए अनेक चुनावों में इसने भारत को फतेह करने के लिए अपनी आशाओं के पंख फैलाए थे लेकिन आज वे पंख झरते हुए प्रतीत होते हैं। राजनीति में ईमानदारी और सदाचारक नैतिक मूल्यों की स्थापना के दावे के साथ इसने दूसरी सभी पार्टियों और उनके बड़े नेताओं के विरुद्ध लगातार भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप लगाए थे, जिनके कारण बाद में पार्टी सुप्रीमो केजरीवाल को सार्वजनिक तौर पर माफी भी मांगनी पड़ी थी। दूसरे नेता संजय सिंह ने भी ऐसा ही किया था, लेकिन उसने माफी नहीं मांगी थी। इसी कारण उसको भी बेहद आपत्तिजनक टिप्पणियों के लिए अदालत के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। यह सिलसिला अभी भी जारी है, क्योंकि उसके पास अपने द्वारा लगाए गये गम्भीर आरोपों संबंधी कोई ठोस आधार नहीं है।
आम लोगों को दशकों पहले बनी इस नई पार्टी से बहुत उम्मीदें थीं, इसलिए उन्होंने कई बार इसको दिल्ली के चुनाव जिताने के बाद पंजाब में भी बड़ा प्रोत्साहन देकर सत्ता की कुर्सी पर बिठाया था, लेकिन कुछ समय में ही ‘आप’ के नेताओं के नारे खोखले साबित होने लगे। गुब्बारों की तरह जो वायदे इन्होंने फैलाये थे, उनकी हवा निकलने लगी। पंजाब में इस पार्टी के दो वर्षों के प्रशासन ने न सिर्फ निराशा ही पैदा की है, बल्कि लोगों के मनों में उसके प्रति गुस्सा भी भरा दिखाई देने लगा है। प्रदेश में सुधार तो क्या होने था, बल्कि शीराज़ा ही बिखर गया लगता है। उपलब्धियों और विकास संबंधी दिए गये ब्यान खोखले साबित हो रहे हैं। दिल्ली में आज इस ‘ईमानदार’ पार्टी के मुख्यमंत्री केजरीवाल सहित कई वज़ीर जेलों में बंद हैं। चाहे ‘इंडिया’ गठबंधन बनने से कांग्रेस को दिल्ली और कुछ अन्य स्थानों पर इसके साथ समझौता करना पड़ा था लेकिन पंजाब कांग्रेस के नेतृत्व ने प्रत्यक्ष रूप में ऐसे समझौते से इन्कार कर दिया था। ऐसा कड़ा रुख धारण करने से ही आज पंजाब में ये दोनों पार्टियां अलग-अलग रूप में चुनाव लड़ रही हैं। दिल्ली में इन दोनों पार्टियों के बीच चुनाव समझौता अवश्य हुआ था, परन्तु कांग्रेस पार्टी के स्थानीय नेता आम आदमी पार्टी के साथ समझौता करने के लिए सहमत नहीं थे। अंत में उनके गुस्से का उबाल भी सिर तक पहुंच गया है। लम्बी अवधि से पार्टी से जुड़े रहे तथा दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अरविन्दर सिंह लवली ने अपने साथियों को साथ लेकर एक प्रैस कान्फ्रैंस में अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। उनकी ओर से की गई टिप्पणियां ध्यान देने योग्य हैं। उन्होंने कहा है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस पर गम्भीर आरोप लगा कर बनी थी। फिर उसके साथ गठबंधन कैसे हो सकता है? उन्होंने यह भी बताया कि दिल्ली कांग्रेस इकाई इस पार्टी के साथ गठबंधन के खिलाफ थी। उन्होंने यह भी कहा कि जिस पार्टी के आधे कैबिनेट मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में नज़रबंद हों, उसके साथ पार्टी अनुशासन के कारण ही उनके सहित दिल्ली कांग्रेस के अन्य नेताओं को समझौता करना पड़ा था।
 परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि अब उनके सब्र का प्याला भर गया है, जिस कारण उन्हें यह कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा है। ऐसे बयान तथा उनके इस्तीफे का हो रहे चुनावों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इस बारे किसी संदेह की गुंजाइश नहीं रही। इसके साथ ही दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा पार्टी संयोजक केजरीवाल बारे की गई सख्त टिप्पणियों ने भी एकबारगी आम आदमी पार्टी को सुन्न करके रख दिया है। अदालत का यह कहना कि केजरीवाल सत्ता का भूखा है और यह भी कि वह राष्ट्रीय हितों से अधिक निजी हितों को प्राथमिकता दे रहा है, के बाद सदाचारक तौर पर ही उसकी ओर से इस्तीफा दिया जाना बनता था, परन्तु उसने ऐसा नहीं किया। इस कारण आम आदमी पार्टी के साथ-साथ कांग्रेस को भी राजनीतिक रूप में चुनावों के समय नुकसान का सामना करना पड़ेगा। इसी बात को लेकर अन्य विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने भी केजरीवाल की कड़ी आलोचना की है, क्योंकि जेल में होते हुए भी उसकी ओर से इस्तीफा न देने के कारण दिल्ली नगर निगम के स्कूलों में दो लाख से अधिक बच्चों को पुस्तकों और वर्दियों से वंचित रहना पड़ रहा है। इस बात का अदालत ने कड़ा नोटिस लिया है। इस सब कुछ के कारण आज यह पार्टी दिशाहीन होकर उस चौराहे पर आ खड़ी हुई है, जिससे आगे वह अपना रास्ता चुनने संबंधी असमंजस में पड़ी हुई है। नि:संदेह यह स्थिति पार्टी के लिए बेहद नमोशी तथा निराशा वाली है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द