समूह पंजाबियों की चिन्ता करें किसान संगठन

भिन्न-भिन्न कारणों के दृष्टिगत किसान तथा किसान संगठन समाचारों में हैं। एक तरफ तो 13 फरवरी से शम्भू तथा खनौरी की सीमाओं पर किसानों की ओर से अपनी मांगों के लिए धरने दिये जा रहे हैं तथा इसी को बहाना बना कर हरियाणा सरकार की ओर से शम्भू तथा खनौरी की पंजाब के साथ लगती सीमाओं पर 6-7 लेयरों वाली नाकाबंदी करके एक तरह से पंजाब तथा हरियाणा के बीच सड़क यातायात ठप्प की हुई है। इन सीमाओं पर किसानों पर घोर अत्याचार भी किया जाता रहा है। नाकाबंदी के कारण पंजाब  से अम्बाला या दिल्ली को जाने वाले वाहनों को टेड़ी-मेढ़ी सड़कों से होकर जाना पड़ता है। कई बार लुधियाना से अम्बाला पहुंचने के लिए ही तीन घंटों के स्थान पर 8-8 घंटे लग जाते हैं। दूसरी तरफ हरियाणा पुलिस की ओर से पकड़े गए तीन किसानों को रिहा करवाने के लिए किसानों ने शम्भू के रेलवे स्टेशन के साथ लगती पटरियों पर भी 17 अप्रैल से धरना दिया हुआ है जिस कारण पंजाब तथा हरियाणा के बीच रेल यातायात भी ठप्प हो गया है जिस कारण पंजाब के उद्योगपतियों तथा व्यापारियों को बड़े नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। एक अनुमान के अनुसार प्रतिदिन पंजाब के उद्योगपतियों तथा व्यापारियों को 700-800 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। पंजाब से 40 प्रतिशत निर्यात कम हो गया है। 2020-21 में एक वर्ष से अधिक अवधि तक चले किसान आन्दोलन के कारण भी पंजाब के व्यापारियों तथा उद्योगपतियों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था। इस संबंध में अब पंजाब के कारोबारियों की सहनशीलता खत्म होती प्रतीत होने लगी है। कारोबारी लोगों का यह कहना है कि पहले किसान आन्दोलन के दौरान प्रदेश के व्यापारियों तथा उद्योगपतियों ने व्यापक स्तर पर अपना नुकसान सहन करके भी किसान आन्दोलन का हर तरह से समर्थन किया था, परन्तु अब जिस तरह पिछले तीन मास से उनके कारोबार चौपट हो चुके हैं, उस कारण उनके लिए आर्थिक रूप से और नुकसान सहन करना सम्भव नहीं है। इसलिए किसान संगठनों को अपने हितों के साथ-साथ समूचे पंजाब के लोगों के हितों तथा उनके काम-धंधों के संबंध में भी चिन्ता करनी चाहिए तथा अपना आन्दोलन जारी रखने के लिए रेल तथा सड़क यातायात ठप्प करने के स्थान पर अन्य वैकल्पिक ढंग-तरीकों की तलाश करनी चाहिए।
आजकल प्रदेश भर में किसानों की ओर से गेहूं के नाड़ का निपटारा करने के लिए जिस तरह व्यापक स्तर पर आग लगाई जा रही है, उससे भी किसान सुर्खियों में हैं। इससे जहां पंजाब का वातावरण दूषित हो रहा है, वहीं प्रदेश में भिन्न-भिन्न लोगों को जनहानि तथा आर्थिक नुक्सान भी सहन करना पड़ रहा है। माझा में अब तक खेतों में नाड़ के निपटारे के लिए लगाई गई आग के कारण चार मौतें हो चुकी हैं। इसी तरह माझा तथा दोआबा में भी भिन्न-भिन्न स्थानों पर व्यापक स्तर पर वृक्षों के झुलसने, पक्षियों के जलने, यहां तक अन्य पालतू जानवरों के भी झुलस कर मर जाने के समाचार आ रहे हैं। बटाला से यह भी समाचार प्राप्त हुआ है कि गांव खोखर फौजियों की तरफ खेतों में किसी किसान द्वारा गेहूं के नाड़ को लगाई आग ने तेज़ हवा के कारण भयावह रूप धारण कर लिया जिससे साइलो प्लांट छीना रेलवाला में स्टोर करने के लिए गेहूं ले कर जा रहे तीन ट्रक आग की चपेट में आ गये। इस दुर्घटना में एक ट्रक तथा उस पर लदी गेहूं की 600 बोरियां पूरी तरह राख हो गईं। दूसरा ट्रक लगभग आधा जल गया। तीसरे ट्रक का कुछ हिस्सा भी जल गया, परन्तु उसे बड़ी जद्दोजहद से लोगों ने आग की चपेट में आने से बचा लिया। इस हादसे में एक ट्रक चालक किशन कुमार के हाथ-पांव भी झुलस गए। यह कोई पहली बार नहीं हुआ है कि गेहूं के नाड़ को आग लगाए जाने के कारण प्रदेश में जन तथा आर्थिक हानि हो रही है, अपितु ऐसा नुकसान वर्ष में दो बार होता है, क्योंकि धान की कटाई के बाद भी पराली के निपटान के लिए इसी प्रकार आग लगाई जाती है। उस समय भी इसी तरह पेड़, पौधे तथा पशु-प्राणी आग की चपेट में आते हैं और पर्यावरण में व्यापक स्तर पर धुंआ भी फैलता है। 
अब यह सब कुछ आम जन के लिए बेहद दुखद बनता जा रहा है। इस संबंध में हमारी पंजाब के समूह किसान संगठनों तथा किसानों से विनम्र अपील है कि वे अपने अधिकारों-हितों के लिए संघर्ष करते या कृषि संबंधी अपना काम-काज करते समय समूचे पंजाब के लोगों तथा उनके हितों का भी ध्यान रखें। वे सिर्फ अपने हितों के दृष्टिगत वर्तमान समय में नहीं चल सकते। यदि उन्होंने सरकारों से अपनी उचित मांगें भी मनवानी हैं, तो भी उन्हें समूचे समाज की आवश्यकता है। अपने संघर्ष के दौरान उन्हें भी समाज के सभी वर्गों के हितों का पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए। नहीं तो आगामी समय में किसानों का समाज के अन्य अलग-अलग वर्गों के साथ टकराव तीव्र हो सकता है और इसका राजनीतिक तौर पर लाभ उन ताकतों को ही होगा, जिन ताकतों के खिलाफ किसान संघर्ष करने के लिए मजबूर हो रहे हैं। 
आशा करते हैं कि किसान संगठन तथा किसान उपरोक्त तथ्यों की रौशनी में अपने व्यवहार तथा अपनी कार्यशैली में अपेक्षित बदलाव लाएंगे।