यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में महारानी जिंदां की याद

मुक्तसर क्षेत्र से कैलिफॉर्निया जाकर बसे पंजाबी कवि अवतार सिंह प्रेम ने 1986 में ‘मर्सीये’ नामक काव्य संग्रह प्रकाशित किया था। इसके भीतर के ‘महारानी जिंदां’ के शब्दों को यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफॉर्निया ने अपने फाऊलर संग्रहालय की एक दीवार का शृंगार बनाया है।
याद ओहनूं पंजाब दी सी प्यारी,
मोती हंझुआं नाल शिंगारदी रही।
बहि के कोल दलीप के सुबा शामी,
सिखी जज़्बे नूं ओहदे उभारदी रही।
यह और भी खुशी की बात है कि महारानी जिंदा वाले मर्सीये का अंग्रेज़ी अनुवाद इंटरनैट पर डाल दिया गया है। 
ऊंची कुर्सी निम्न सोच 
चल रहे लोकसभा चुनावों के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ताज़ा टिप्पणी आश्चर्यजनक है। उनका कहना है कि बी.आर. अम्बेडकर न होते तो प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने पिछड़ी श्रेणियों के आरक्षण का कानून पारित नहीं करना था, अतयंत हास्यस्पद है। क्या अम्बेडकर को कानून मंत्री तथा संविधान सभा का चेयरमैन पंडित नेहरू की सरकार ने नहीं बनाया था? आरक्षण का विधेयक पेश करना अम्बेडकर के कार्यों में शामिल था और इसे स्वीकार करना नेहरू के काम में शामिल था। लग रहा है कि मोदी साहिब को पांवों के नीचे से ज़मीन खिसकती प्रतीत हो रही है। भारतवासियों ने सात वर्षों के शासन को 70 वर्ष से अधिक उपलब्धियों वाला होने की टिप्पणी तो सुन ली थी, कच्चाथीवू द्वीप वाली भी, परन्तु कानूनी सच पर पोंछा फिरते देखना असम्भव है। देखो क्या बनता है।
श्रीमती सुन्दर दिल बनी सिमर ढिल्लों 
कनाडा के ब्रिटिश कोलम्बिया प्रांत में पढ़ने गई मेरी भांजी सिमर ढिल्लों की झेली में गत सप्ताह मिसिज़ ब्यूटीफुल हार्ट का टाइटल आ पड़ा है। मिसिज़ इंडिया वर्ल्ड वाइड नामक संस्था ने इस बार का मुकाबला दुबई में आयोजित किया था। कनाडा से भाग लेने आईं युवतियों में सिमर दूसरे स्थान पर आई है। खूबी यह कि इस यात्रा में से समय निकाल कर वह अपनी मां को कोट फतूही (ज़िला होशियारपुर) भी मिलने आई और चंडीगढ़ में मुझे तथा मेरी पत्नी को भी। 
यह भी नोट करने वाली बात है कि उसके पिता परमजीत सिंह लाली का सिमर के बचपन में ही निधन हो गया था, परन्तु उसकी मां प्रो. बलविन्दर कौर (बी.एड. कालेज, नवांशहर) ने अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर अच्छा जीवन जीने के योग्य बनाया। एस. सिमर की छोटी बहन किरणदीप भी वैंकूवर है और दोनों का भाई अमरप्रीत सिंह लाली राजनीति में कूद पड़ा है। सिमर के दुबई से कोट फतूही आते समय वह आनंदपुर साहिब से लोकसभा उम्मीदवार विजयइन्द्र सिंगला के प्रचार अभियान में इतना व्यस्त था कि दूर से आई बहन के लिए चुनिंदा पल ही निकाल सका।   
रोज़ी-रोटी के लिए सिमर ने कनाडा जाकर कैनेडियन इम्पीरियल बैंक ऑफ कामर्स में नौकरी शुरू की थी और आज वह एक शाखा की ब्रांच मैनेजर है। फैशन तथा ब्यूटी उसका शौक है। मिसिज़ इंडिया वर्ल्ड वाइड का ताज़ा दौरा भी उसका शौक पूरा करने का हिस्सा था, परन्तु इस दौरे में उसने सवा चार लाख रुपये की माया भी इकट्ठा की, जिसे वह शांति सज्जल रिसर्च एंड चैरीटेबल ट्रस्ट के माध्यम से ज़रूरतमंद बच्चों की शिक्षा तथा डाक्टरी सहायता के लिए इस्तेमाल करेगी। 
सिमर की वर्तमान भावना की जड़ें उसके पिता के निधन के बाद उसकी माता की उदासी में हैं और आज के दिन यह भावना पूरी दुनिया के ज़रूरतमंदों में दस्तक दे चुकी है। मुख्य उद्देश्य स्त्री जाति को उसके अधिकारों से अवगत करवा कर उन्हें आत्मनिर्भर तथा सशक्त बनाना है। अपनी नौकरी में से समय निकाल कर दुबई तक की यात्रा उसके शौक का हिस्सा थी। सज्जल ट्रस्ट के लिए माया इकट्ठी करके श्रीमती सुन्दर दिल का टाइटल जीतने समेत।
सुरेन्द्र गिल को कलम पुरस्कार
अंतर्राष्ट्रीय लेखक मंच कलम के कर्ता-धर्ताओं ने 20वें कलम पुरस्कारों का फैसला सुना दिया है। बापू जगीर सिंह कम्बोज पुरस्कार के लिए उच्चकोटि के कवि सुरेन्द्र गिल तथा दूसरे पुरस्कारों के लिए डा. नाहर सिंह, गज़लगो अमरीक डोगरा तथा अतरजीत का चुना जाना चयन समिति की सही तथा निष्पक्ष सोच की पुष्टि करता है। सुरेन्द्र गिल के पुरस्कार की राशि 31 हज़ार है तथा शेष की थोड़ी कम। राशि के मुकाबले चयन समिति की सोच तथा धारणा बधाई की हकदार है। प्रबंधकों तथा विजेताओं के मित्र प्यारे आने वाले वार्षिक समारोह के इन्तज़ार में हैं, जब ये सम्मान अर्पित किए जाएंगे।
अंतिका
(सुरजीत पातर)
यार मेरे जु इस आस ’ते मर गये,
कि मैं उन्हां दे दुख दा बणावांगा गीत  
जे मैं चुप्प ही रिहा जे मैं कुझ ना किहा
बण के रूहां सदा भटकदे रहिणगे।
*
एह वी शायद मेरा आपणा वहिम है
कोई दीवा जगेगा मेरी कबर ’ते
जे हवा एह रही कबरां उत्ते तां की
सभ घरां ’च वी दीवे बुझे रहिणगे।