यूं ही नहीं बदल रहा मौसम, बड़े डरावने संकेत हैं !

मौसम का मिजाज बहुत तेज़ी से बदल रहा है। बदलते मौसम की इस तेज़ रफ्तार ने आदमी ही नहीं पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों और छोटे छोटे जीव-जंतुओं तक को हैरत में डाल दिया है। इन दिनों पूरे भारत में इतनी तेज़ गर्मी पड़ रही है कि लगता है मानो आसमान से आग बरस रही हो। उत्तर और मध्य भारत में देर रात 8-9 बजे भी लू के गर्म थपेड़े लग रहे हैं। मौसम की इस दबंगई ने लोगों को ही नहीं पशुओं को भी बेचैन कर दिया है। शहरों में आवारा कुत्ते इस गर्मी से भुने जा रहे हैं। प्रशासन को बार-बार रेड अलर्ट जारी करना पड़ रहा है। मौसम के तेवर को समझने वाले विशेषज्ञ इस आग बरसती गर्मी में बच्चों और बुजुर्गों को खास तौर पर घर से बाहर न निकलने की हिदायतें दे रहे हैं। 
वास्तव में मौसम के इस डरावने बदलाव ने बहुत कुछ बदल दिया है। वैसे यह हैरान करने वाला बदलाव इसी साल देखने को नहीं मिला। मौसम में इस तरह के डरावने बदलाव पिछले एक दशक से जारी हैं। 13 नवंबर 2015 को तमिलनाडु में कांचीपुरम के नज़दीक वेम्बक्कम कस्बे में एक ही दिन में 470 मिमी बारिश दर्ज की गई थी। इस लगातार बारिश के कारण चेन्नई के निचले हिस्से जलमग्न हो गए थे, जिस कारण करीब 1000 से अधिक लोगों को अपने घरों से निकालना पड़ा था। यह मौसम के घोर बदलाव का ही ट्रेलर है कि हाल के सालों में नवंबर-दिसंबर के महीने में चेन्नई में भीषण बाढ़ आती है, लातूर, विदर्भ और बुलंदेखंड जैसे क्षेत्रों में अकसर गर्मियों में पानी की त्राहि-त्राहि मच जाती है और उत्तराखंड में मई-जून माह में पहाड़ खिसकते हैं तथा भयानक हिमपात देखने को मिलता है। पिछले एक दशक से मौसम रह-रहकर अपने डरावने रंग दिखा रहा है। सिर्फ हम ही नहीं पूरी दुनिया मौसम के बदलते मिजाज की तबाही झेल रही है। अमरीका में पिछले एक दशक में न केवल समुद्री तूफान 30 प्रतिशत ज्यादा आये हैं बल्कि ज्यादा तबाही मचाने वाले आये हैं। ब्रिटेन में बाढ़ का कहर लोगों पर आपदा बनकर टूटता है, तो चीन एक साथ सूखे और बाढ़ की चपेट में आ जाता है। अपने देश में भी समुद्री तूफानों की संख्या और तबाही दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। इन पंक्तियों के लिखे जाने के समय भी कोलकाता रेमल जैसे चक्रवाती तूफान की तबाही झेल रहा था। सड़कों पर जल भराव, पेड़ों का टूटकर गिरना, 135 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से हवाओं का चलना तो जैसे आम हो गया है।
याद रखिए हमेशा से ऐसा नहीं था। एक समय ऐसा था जब ऋतुएं अपने समय पर आती थीं और मौसम भी समय पर ही बदलता था, लेकिन अब पूरी दुनिया में ऋतुओं का यह चक्र गड़बड़ा गया है। कहीं पर अब कड़ाके की ठंड पड़ती है, तो कहीं पर बसंत ऋतु देर से आती है, सर्दी ज्यादा होने के कारण अपने बिलों में रहने वाले कीट पतंगे समय से जग नहीं पाते, जिसके कारण फूलों में समय पर परागण नहीं हो पाता, जिसका असर फसलों की उपज पर पड़ता है। गर्मी का मौसम धरती को अब बुरी तरह से तपाने और सताने लगा है। इस मौसम के कारण अब जलस्रोत अक्सर सूख जाते हैं और सूखे की मार झेल रहे किसान बस आसमान ताकते रह जाते हैं, क्योंकि वहां बादलों का नामोनिशान नहीं रहता। बे-मौसम की बेतरतीब बारिश से अब हर वर्ष फसलें बर्बाद हो रही हैं।
शरद ऋतु का समय भी बदल गया है, पहले जहां हिंदुस्तान में सर्दियाें का मौसम अक्तूबर से लेकर मार्च तक रहता था, अब धीरे-धीरे यह समय कम हो गया है। अब दिसम्बर से फरवरी तक ही ठंड पड़ती है, वह भी पहले की तुलना में काफी कम। ऋतुओं की इस गड़बड़ी से फसलों की बुआई और कटाई के समय पर भी फर्क पड़ रहा है। उत्तर और मध्य भारत के करीब 230 ज़िले सूखा संभावित ज़िलों में शामिल हो गए हैं। मौसम के इस बदलते मिजाज के बढ़ते खतरों से पूरी दुनिया जूझ रही है। क्योंकि मौसम विज्ञानियों के अनुसार पृथ्वी की जलवायु लगातार गर्म हो रही है। पृथ्वी का तापमान पिछले सौ वर्षों के दौरान करीब एक 1.2 डिग्री सेंटीग्रेड तक बढ़ गया है। इस बदलते मौसम के कारण जलवायु परिवर्तन अवश्यंभावी हो गया है। लेकिन इन सभी समस्याओं के लिए इंसान अनिवार्य रूप से जिम्मेदार है, वैज्ञानिक यह मानते हैं। वास्तव में पूरी दुनिया में, दिन-रात लाखों करोड़ों गाड़ियां और कल-कारखाने लगातार वायुमंडल में जहरीला धुआं छोड़ रहे हैं।
समूची धरती से दुनिया में जंगलों के सफाये हो रहे हैं, आग की बढ़ती घटनाएं करेले में नीम की माफिक हैं। इस आग के कारण पूरे वायुमंडल में धुआं फैल रहा है। कोयले और पेट्रोलियम पदार्थों के जलने से भी वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा लगातार बढ़ रही है। पिछले तीन सौ सालों में ही वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 30 प्रतिशत तक बढ़ चुकी है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण साइबेरिया और अलास्का जैसे वन क्षेत्रों में भी आग लगने की भीषण दुर्घटनाएं हो रही हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण धीरे-धीरे ग्लेशियर पिघलकर सिकुड़ रहे हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियर बहुत तेजी से पिघल रहे हैं। उत्तरी ध्रुव और दक्षिण ध्रुव में जमा बर्फ के बाद हिमालय में ही बर्फ के रूप में सबसे ज्यादा पानी जमा है। लेकिन बढ़ते तापमान के कारण पिछले सौ वर्षों में दुनिया में समुद्रों का जल स्तर 10 से 25 सेंटीमीटर तक बढ़ चुका है। अगर यही हाल रहा तो समुद्र तटों पर बसे शहरों के डूबने का खतरा पैदा हो जायेगा और महासागरों में स्थित तमाम द्वीप डूब जायेंगे। सुंदरवन क्षेत्र में घोड़ामारा द्वीप का क्षेत्र लगातार सिकुड़ रहा है और यहां मानव आबादी भी धीरे-धीरे कम हो रही है। तापमान बढ़ने से टुंड्रा वनों तक की हरियाली के नष्ट होने की आशंका है, जिसके कारण लाखों पशु पक्षियों का जीवन संकट में पड़ सकता है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते जानकारों को आशंका है कि 2050 तक पशु पक्षियों और पेड़ पौधों की लगभग 10 लाख से अधिक प्रजातियां नष्ट हो जायेंगी।
पिछले 50 सालों में वायुमंडल की तपन से सागरों का पानी गरमाने के कारण उनमें उठने वाली भाप की मात्रा में इजाफा होने से भीषण समुद्री तूफानों की घटनाओं में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वर्षा पर आधारित खेती में फसलों की उपज आने वाले दशकों में आधी रह जायेगी और अकाल का साया बढ़ता चला जायेगा। बदलती जलवायु के कारण मनुष्य को एक जगह से दूसरी जगह पलायन करने, बीमारी, मृत्यु और अनेक तरह की दूसरी समस्याओं के साथ-साथ हाल के सालों में चक्रवातों, बाढ़ गर्म हवाओं और सूखे का भी सामना करना पड़ रहा है। लेकिन इंसान अब भी समझने को तैयार नहीं है कि मौसम के इस बदलते मिजाज की सबसे बड़ी वजह मानव की कारगुजारियां ही हैं। जिन पर अगर समय रहते रोक न लगायी गई तो मानव का अस्तित्व भी खत्म हो सकता है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर