चुनाव परिणाम के बाद विपक्षी पार्टियों में हो सकती है टूट-फूट!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान पश्चिम बंगाल की अपनी अंतिम रैली में जो कहा, वह बहुत अहम है। उन्होंने कहा कि चार जून के बाद अगले छह महीने में देश में बड़ा राजनीतिक भूचाल आएगा। इसके आगे उन्होंने इसमे जोड़ा कि तमाम परिवारवादी पार्टियां अपने आप बिखर जाएंगी, क्योंकि उनके कार्यकर्ता भी अब थक गए हैं। मोदी का यह बयान मामूली नहीं है। इससे भाजपा की आगे की राजनीतिक योजना की रूपरेखा का खुलासा होता है। इससे यह अंदाज़ा लग रहा है कि अगर भाजपा जीतती है तो ‘ऑपरेशन लोटस’ बड़े स्तर पर चलेगा। प्रधानमंत्री ने परिवारवादी पार्टियों के टूटने, बिखरने की बात कही है, लेकिन ऐसा नहीं है कि जो पार्टियां किसी खास राजनीतिक परिवार द्बारा संचालित नहीं हैं उन पर भाजपा का निशाना नहीं है। अगर इस बार भाजपा जीतती है तो दो ऐसी पार्टियां उसके निशाने पर आएंगी, जिनमें परिवारवाद नहीं है। पहली पार्टी ओडिशा में नवीन पटनायक का बीजू जनता दल है और दूसरी बिहार में नितीश कुमार का जनता दल (यू)। लम्बे समय से भाजपा की नज़र इन दोनों पार्टियों पर है। जहां तक परिवारवादी पार्टियों का सवाल है तो कई पार्टियां शिव सेना और एनसीपी की गति को प्राप्त हो सकती है। अगर भाजपा फिर से केंद्र में सरकार बनाती है तो कई क्षेत्रीय पार्टियों में तोड़-फोड़ कराने की कोशिश होगी। ऐसी कोशिश कांग्रेस को भी तोड़ने की होगी। कांग्रेस के अलावा जिन पार्टियों में टूट-फूट होने का खतरा है, उनमें आम आदमी पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा और तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति भी शामिल हैं। 
मोदी की भी तारीफ 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी सभाओं में कई बार कहा कि पाकिस्तान से राहुल गांधी और विपक्षी गठबंधन को समर्थन मिल रहा है। पाकिस्तान चाह रहा है कि शहज़ादा प्रधानमंत्री बने। इसके बाद उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि पाकिस्तान से राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल को समर्थन मिल रहा है, जो कि बड़ी चिंता की बात है और इसकी जांच होनी चाहिए। लेकिन सवाल है कि अगर पाकिस्तान के किसी नेता ने राहुल गांधी या केजरीवाल की तारीफ की है तो इसमें क्या नई या गलत बात है? पाकिस्तान से भारत का टकराव आज़ादी के बाद से ही चल रहा है। फिर भी अटल बिहारी वाजपेयी बस में बैठ कर पाकिस्तान गए थे और नरेंद्र मोदी तो बिन बुलाए अचानक लाहौर पहुंच गए थे, वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को जन्मदिन की बधाई देने। जहां तक वहां के किसी नेता द्वारा तारीफ की बात करें तो पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने जेल जाने से पहले कई बार प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ की। उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर लगी पाबंदी के बावजूद वहां से कच्चा तेल खरीदने के प्रधानमंत्री मोदी के फैसले की तारीफ की। उन्होंने कई बार कहा कि मोदी विदेश नीति के मामले में स्वतंत्र रूप से काम करते हैं। जब इमरान खान द्वारा मोदी की तारीफ को तमगे की तरह प्रचारित किया जा सकता है तो फवाद हुसैन जैसे दूसरी कतार के नेता ने राहुल गांधी की तारीफ कर दी तो उसमें चिंता की क्या बात हो गई? 
महात्मा गांधी पर निशाना 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक इंटरव्यू में महात्मा गांधी को लेकर कह दिया कि उन्हें दुनिया में कोई नहीं जानता था और जब ‘गांधी’ फिल्म बनी तब लोगों ने उन्हें जाना। उनके इस विवादित बयान के बाद सोशल मीडिया में हंगामा मचा और तरह-तरह से मोदी की खिल्ली उड़ाई गई, लेकिन ऐसा नहीं है कि मोदी ने गांधी के बारे में यह बात मूर्खता या अज्ञानतावश कही हो। उन्होंने गांधी के बारे में भले ही कुछ नहीं पढ़ा हो, लेकिन वह यह तो जानते हैं कि गांधी अपनी महानता की वजह से अपने जीवन काल में ही वैश्विक ख्याति अर्जित कर चुके थे। उन्हें यह भी मालूम है कि गांधी की महानता इतनी व्यापक थी कि रिचर्ड एटनबरो उन पर फिल्म बनाने आए थे और उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने फिल्म बनाने के लिए सरकार की ओर से पैसे दिलवाए थे। इसलिए यह मोदी के अज्ञान का तो मामला ही नहीं है। फिर सवाल है कि सब कुछ जानते-बूझते अगर मोदी कह रहे हैं कि फिल्म बनने से पहले गांधी को कोई नहीं जानता था, तो उसके पीछे उनका क्या इरादा है? गांधी का महत्व कम करना तो स्पष्ट रूप से समझ में आता है, जो कि आरएसएस और भाजपा का पुराना एजेंडा है। एक मकसद अपने को बतौर भगवान या मसीहा स्थापित करने का भी है। वैसे गांधी के बरक्स पहले सावरकर को और अब अम्बेडकर को आगे करने का जो प्रयास है, वह भी एक कारण हो सकता है। गांधी साम्प्रदायिकता, हिंसा और एकाधिकारवादी राजनीति के रास्ते में बाधा बनते हैं। इसीलिए उन्हें निशाने पर लिया जा रहा है।
सेना प्रमुख को सेवा विस्तार क्यों?
केंद्र सरकार ने भारतीय थल सेना के प्रमुख जनरल मनोज पांडे को एक महीने का सेवा विस्तार दिया है। वह 31 मई को सेवा-मुक्त होने वाले थे, लेकिन उससे पांच दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ने उनका कार्यकाल 30 जून तक के लिए बढ़ा दिया। सरकार की ओर से कहा गया है कि लोकसभा चुनाव के बीच किसी भी वरिष्ठ अधिकारी के पद पर नई नियुक्ति नहीं की जा रही है, इसलिए नए सेना प्रमुख की नियुक्ति भी टाल दी गई है, लेकिन यह बात सही नहीं है। लोकसभा चुनाव की घोषणा और आचार संहिता लागू होने के बाद केंद्र सरकार की नियुक्ति मामलों की कैबिनेट कमेटी ने 19 अप्रैल को ऐलान किया कि एडमिरल दिनेश के. त्रिपाठी देश के नए नौसेना प्रमुख होंगे और वह 30 अप्रैल को एडमिरल आर. हरिकुमार की जगह लेंगे। सवाल है कि जब चुनाव के बीच में नए नौसेना प्रमुख की नियुक्ति हो सकती है तो नए थल सेना प्रमुख की नियुक्ति क्यों नहीं हो सकती? हालांकि जनरल मनोज पांडे का कार्यकाल एक महीना बढ़ाने से संभावित सेना प्रमुखों की स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अगर इस अवधि में कोई वरिष्ठ सैन्य अधिकारी 60 साल का होकर रिटायर हो रहा होता तो इस पर ज्यादा सवाल उठते। इसके बावजूद सेना प्रमुख का कार्यकाल बढ़ाने को लेकर सरकार की नीयत पर सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि यह बहुत असामान्य बात है। आमतौर पर एक या दो महीने पहले ही नए सेना प्रमुख के नाम की घोषणा हो जाती है। 
कैप्टन अमरेन्द्र सिंह तथा भाजपा
भाजपा ने कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की पार्टी का इस उम्मीद में विलय कराया था कि वह पंजाब में भाजपा का चुनाव अभियान संभालेंगे। गौरतलब है कि 2022 हुए विधानसभा चुनाव में कैप्टन अकेले लड़े थे और भाजपा को कुछ खास फायदा नहीं पहुंचा पाए थे। हां, उन्होंने कांग्रेस के बुरी तरह से हारने में ज़रूर भूमिका निभाई थी, लेकिन उसके बाद भाजपा ने उनकी पार्टी का विलय कराया और उनके हिसाब से पंजाब की अपनी टीम बनाई। चुनाव से बिल्कुल पहले कैप्टन की पत्नी परनीत कौर भी भाजपा में शामिल हो गईं और पटियाला सीट से उम्मीदवार बनीं। लेकिन अचानक कैप्टन की तबियत खराब हो गई और वह अस्पताल में भर्ती हो गए। खुद परनीत कौर ने बताया कि कैप्टन अस्पताल में हैं और बेटे रणइन्द्र उनकी देखरेख में हैं। बेटी के ससुराल वालों के यहां भी कुछ पारिवारिक समस्या हो गई है, जिसकी वजह से वह भी प्रचार का काम नहीं देख पाए। सो, परनीत कौर का प्रचार गड़बड़ा गया, लेकिन उससे ज्यादा भाजपा को मुश्किल हुई। कैप्टन शारीरिक रूप से प्रचार अभियान से दूर रहे, लेकिन सोशल मीडिया पर भी उनकी ओर से कुछ नहीं कहा गया। भाजपा के नेता चाहते थे कि परिवार के लोग उनके सोशल मीडिया का इस्तेमाल करें और माहौल बनाएं। उससे कांग्रेस समर्थकों का एक वर्ग भाजपा की ओर आ सकता है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।