केरल से प्रियंका गांधी के चुनावी पदार्पण का महत्व

केरल में इन दिनों कांग्रेस नेताओं के चेहरे और उनकी आंखों में चमक साफ देखी जा सकती है। उत्साह का भाव स्वाभाविक है। पार्टी ने हाल ही में लोकसभा चुनावों में राज्य की 20 लोकसभा सीटों में से 18 पर जीत हासिल कर उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है। खैर, उत्साहित कांग्रेस के लिए यह दोहरी खुशी की बात है कि प्रियंका गांधी ने राज्य की वायनाड सीट से चुनावी पदार्पण करने का फैसला किया है। यह फैसला राहुल गांधी के वायनाड सीट छोड़ने और उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट पर बने रहने के फैसले के बाद लिया गया है। इस फैसले से कांग्रेस को इस आलोचना से बचने में मदद मिली है कि राहुल ने वायनाड के मतदाताओं को धोखा दिया है। अगर वायनाड से प्रियंका के अलावा कोई अन्य उम्मीदवार उतारा जाता तो यह आलोचना जायज़ होती। 
प्रियंका के वायनाड पहुंचने से यह संदेश साफ तौर पर गया है कि नेहरू परिवार वायनाड के लोगों को छोड़ने का इरादा नहीं रखता, जो मुश्किल और संकट की घड़ी में उनके साथ साथ खड़े रहे। यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि यह फैसला कांग्रेस और पार्टी के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के लिए मनोबल बढ़ाने वाला है, जो 2025 में स्थानीय निकाय चुनावों और 2026 में विधानसभा चुनावों में भी अपने प्रभावशाली प्रदर्शन को दोहराने की उम्मीद कर रहा है। 
कांग्रेस और यूडीएफ में प्रचलित धारणा यह है कि यूडीएफ के सत्ता में आने की संभावनाएं वास्तव में उज्ज्वल हैं। इस तर्क के समर्थन में कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पार्टी ने राज्य की 140 विधानसभा सीटों में से 110 पर बढ़त हासिल की है। यह लोकसभा चुनावों में अल्पसंख्यक समुदाय के वोट, खासकर मुसलमानों के कांग्रेस की ओर शिफ्ट होने से हासिल हुआ है। 
लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है। अब तक का पैटर्न यह रहा है कि यूडीएफ लोकसभा चुनाव जीतता है जबकि माकपा के नेतृत्व वाला वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) राज्य विधानसभा की लड़ाई में जीतता है। कांग्रेस को लगता है कि 2026 के चुनावी युद्ध में यह पैटर्न टूट जायेगा। हालांकि लाख टके का सवाल यह है कि क्या प्रियंका की मौजूदगी केरल में कांग्रेस के लिए अभिशाप बनी आंतरिक कलह के अंत का संकेत देगी? क्या वह कांग्रेस के युद्धरत गुटों को शांति का संदेश देकर एलडीएफ को चुनौती देने के लिए एकजुट ताकत के रूप में लड़ने के लिए राज़ी कर पायेंगी? 
कांग्रेस में गुटबाज़ी के पैमाने और उग्रता को देखते हुए यह काम बिल्कुल भी आसान नहीं है। पार्टी में मौजूदा स्थिति इस पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं जगाती। समस्या की गंभीरता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) के अध्यक्ष के. सुधाकरन और विपक्ष के नेता वी.डी. सतीशन अलग-अलग दिशाओं में जा रहे हैं। सतीसन को के.सी. वेणुगोपाल का समर्थन प्राप्त है, जो राहुल गांधी के करीबी हैं और केरल में कांग्रेस की राजनीति पर उनका अंतिम फैसला माना जाता है। 
हालांकि सुधाकरन अपने प्रतिद्वंद्वियों को खुश करने के मूड में नहीं हैं। के.पी.सी.सी. के अध्यक्ष जो अपनी नीति पर अड़े हुए हैं, को वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ए.के. एंटनी और रमेश चेन्निथला का ठोस समर्थन प्राप्त है। यह एक खुला रहस्य है कि सतीसन सुधाकरन को बाहर करना चाहते हैं और सतीसन के.पी.सी.सी. प्रमुख के पद से सुधाकरन को बाहर करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। यह घिनौना नाटक कैसे आगे बढ़ेगा, यह देखना बाकी है। 
दूसरे शब्दों में पार्टी में पूर्ण एकता सुनिश्चित करना प्रियंका गांधी के लिए अपने नये अवतार में मुख्य चुनौती है। क्या वह वहां सफल हो सकती हैं, जहां अन्य वरिष्ठ कांग्रेस नेता विफल रहे हैं। जहां तक  एलडीएफ का सवाल है, मोर्चे के लिए काम कठिन है। सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण एलडीएफ को एक मज़बूत उम्मीदवार, अधिमानत: वायनाड से एक नेता खोजना होगा। रिपोर्टों के अनुसार सीपीआई की एनी राजा, जिन्होंने राहुल गांधी को कड़ी टक्कर दी थी, फिर से चुनाव लड़ने के लिए बहुत उत्सुक नहीं हैं। 
इन परिस्थितियों में सीपीआई द्वारा सबसे अच्छा उम्मीदवार सत्यन मोकेरी को उतारा जा सकता है, जिन्होंने 2014 के संसदीय चुनाव में वायनाड से दिवंगत कांग्रेस नेता एम.आई. शानवास को एक लाख मतों के जीत के अन्तर से 20,000 वोटों पर लाकर उन्हें डरा दिया था। मुकाबला कितना करीबी था, यह इस बात से स्पष्ट है कि सत्यन को 38.92 प्रतिशत वोट मिले जबकि शानवास को 41.21 प्रतिशत वोट मिले।
जहां तक भाजपा का सवाल है, यह स्पष्ट नहीं है कि पार्टी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन को फिर से मैदान में उतारेगी या नहीं, जिनकी इस बार के लोकसभा चुनाव में ज़मानत ज़ब्त हो गयी। वायनाड निर्वाचन क्षेत्र के गठन के बाद से हुए सभी लोकसभा चुनावों में भाजपा हमेशा तीसरे स्थान पर रही है। लेकिन यह भी एक तथ्य है कि भाजपा 2024 में अपने वोट शेयर में 62,000 से अधिक वोटों की वृद्धि करने में सफल रही है। एक ऐसा घटनाक्रम जिसने वामपंथी दलों को सोचने पर मजबूर कर दिया होगा और उन्हें त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई शुरू करने के लिए प्रेरित किया होगा। (संवाद)