साधो! सब मिल करिए ‘लीक’ पर चिंतन...!

बरसात का मौसम आते ही हमें लीक की चिंता सताने लगती है। गर्मी और कड़ाके की ठंड आराम बीत जाती है, लेकिन मानसून की दस्तक की धमक हमारे कलेजे में धमका करती है। क्योंकि हमारे घर की क्षत लीक करती है। यह हमारी पुरानी कब्ज़ से भी बड़ी बीमारी है। हमने लीक बंद करने का अथक प्रयास किया लेकिन लीक है कि बंद होती ही नहीं। लीक की समस्या से जूझने वालों की संख्या बढ़ती आबादी की तरह है। इस समस्या से पीड़ित लोगों की एक जैसी पीड़ा है। लीक को रोकने के लिए सब अपना-अपना अनुभव एक दूसरे से शेयर करते हैं। लेकिन उसका फायदा किसी को कुछ होता नहीं दिखता है। बस एक-दूसरे की लीक कथा सुनकर लोग अपनी व्यथा पर मरहम लगाते हैं। वैसे भी बारिश का मौसम है बारिश में लीक की समस्या कुछ अधिक बढ़ जाती है। 
हमारे देश में लीक की बीमारी महामारी का रूप ले रहीं है। लीक को रोकने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर सामूहिक प्रयास जारी हैं बावजूद लीक का मामला लीकबाजों की वजह से बढ़ता जा रहा है। घर की छत से शुरू हुईं लीक की समस्या अब सार्वभौंमिक और सामाजिक हो चली है। हमारे यहां लीक की समस्या अब मौसमी नहीं सदाबहारी यानी बारहमासा हो चली है। कभी किसी के घर की छत में लीक है तो किसी की पानी की टंकी में लीक है। किसी की पाईप में लीक तो किसी की दिवाल से पानी की लीक। कहीं दस्तावेज लीक हो रहे हैं तो कहीं गोपनीयता लीक हो रहीं है।
फिलहाल लीक थमने का नाम नहीं ले रहीं है। अब देखिए, कहीं घोटाले लीक हो रहे हैं तो कहीं घपले। कहीं दिल में लीक है तो कहीं दल में। कहीं बात लीक हो रहीं तो कहीं व्यवहार लीक हो रहा। पूरा का पूरा सिस्टम ही लीक है। आजकल गर्मी और हिटबेव बढ़ने की वजह भी आसमान में लीक यानी छेद होना बताया जाता है। अब एक नई समस्या पैदा हो गईं है पेपर यानी परीक्षा लीक की। अटक से लेकर कटक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक लीक ही लीक है। लिहाजा हालात कुछ ऐसे बिगड़े हैं कि पूछिए न कोई लीक की समस्या कम करना चाहता है तो कोई लीक को मेनहोल बनाने पर तुला है। जिसकी वजह से लीक की समस्या बढ़ती जा रहीं है।
हमारे यहां कभी वह दौर भी था जब बड़े-बड़े घपले और घोटाले लीक होते थे, अब वह दौर थोड़ा कम हुआ है लेकिन लीक का काम एकदम बंद नहीं हुआ है। एक दौर वह भी था जब छत से अधिक सरकारी आफिस की फाइल लीक होती थीं, लेकिन जबसे डिजिटल जमाना आया है तब से लीक की घटनाओं पर थोड़ा रोक लगी है। हालांकि अब वायरल का दौर चल पड़ा है। अब इंटरनेट के युग में लीक से अधिक वायरल की समस्या बढ़ गईं है। अब बदले दौर में छोटी सी लीक की घटना अब बड़ा वायरल बन जा रहीं है। वैसे भी लीक का डिजिटल संस्कण वायरल है। अब देखिए, पेपर लीक को लेकर पूरा देश परेशान है।
व्यवस्था में और संस्थाओं में बढ़ती लीक की समस्या से लोगों के ख्वाब और दिल टूट रहे हैं। रोजी-रोटी के साथ शादी में शाहजादी लाने के सपने भी लीक हो रहे हैं। अब पढ़ाकू युवाओं की झोली में आसमान से टपकी लीक की समस्या उनकी सोच, साहस और धैर्य के बांध में सुराक यानी लीक करने में लगी है। वैसे भी हमारे यहां परीक्षा और लीक का चोली-दामन का साथ है। ऐसा लगता जैसे दोनों लैला-मजनू और हीर-रांझा हैं। दोनों के बीच अटूट प्रेम में हैं। एक-दूसरे के बैगर दोनों रह नहीं सकते हैं।
वैसे यह समस्या ठीक कुछ ऐसी है जैसे विवाह मंडप में दूल्हा-दुल्हन सात फेरे लेने के लिए तैयार खड़े हों और दुल्हन अचनाक मंडप से गुपचुप प्रेमी के साथ भाग जाय। हमारे यहां हाल सालों में कोई ऐसी परीक्षा ही नहीं हुईं जो बिना लीक के हुईं। अब लीक, परीक्षा और बेरोज़गारों के बीच ट्रेंगल लव का कारिडोर बन गया है। वैसे भी हमारे भोजपुरी में एक पुरानी कहावत ‘लागी नाहीं छूटे राम’ यानी लीक (दाग) कभी एक बार लग जाय तो वह छूटता नहीं है। लाख जतन के बाद भी पेपर लीक हो जाता है। कुछ वैसा ही हाल प्रेम, परीक्षा और प्यार का है। फिलहाल चिंता करने की कोई बात नहीं है। क्योंकि मनीयों ने कहा है कि चिंता हमें चिता की तरफ ले जाती है इसलिए चिंता छोड़कर इस बात पर चिंतन किया जाय कि लीक अब लॉक यानी बंद कैसे होगी। (सुमन सागर)