बढ़ती ही जा रही है अवसाद की बीमारी

भागदौड़ की व्यस्त जिंदगी के कारण उपजने वाली बीमारी अवसाद का प्रभाव सबसे अधिक महिलाओं पर ही पड़ता है। घर से लेकर बाहर तक का जीवन इतना व्यस्त होता जा रहा है कि महिलाएं इसकी गिरफ्त में फंसकर अपनी मानसिक शान्ति को खोने लगती हैं तथा भय, क्र ोध, घबराहट, अरूचि आदि अनेक बीमारियों का शिकार होती जा रही हैं।
अवसाद के लक्षण मानसिक बीमारी के अलावा शारीरिक बाह्य लक्षणों के साथ भी उभर कर आने लगते हैं। सिर, सीना, कमर, शरीर में दर्द का प्रकोप बढ़ने लगता है, दिल की धड़कन बढ़ जाती है, किसी काम में मन नहीं लगता, साथ ही आत्मविश्वास भी कम होने लगता है। पारिवारिक परिस्थितियां भी कई बार डिप्रेशन का कारण बन जाया करती हैं। आर्थिक क्षति, नौकरी चली जाना, परिवारीजन की आकस्मिक मौत या दुर्घटना आदि अनेक ऐसे कारण होते हैं, जो डिप्रेशन के कारण बन जाते हैं। डिप्रेशन का एक रूप मैनिक डिप्रेशन साइकोसिस होता है जिसे बाई पोलर इफेक्टिव डिसआर्डर भी कहा जाता है। इसके एक छोर पर डिप्रेशन और दूसरे छोर पर मेनिया होती है। यह कई सालों तक चलता रहता है और इसका उपचार भी जटिल होता है। इससे ग्रसित व्यक्ति का मन किसी काम में नहीं लगता और हमेशा बिस्तर पकड़े रहता है। एक पैथोलॉजिकल डिप्रेशन होता है। यह एक प्रकार का सामान्य डिप्रेशन होता है जिसका दौर अधिक से अधिक एक महीने तक रहता है और समय के साथ-साथ इसका दौर कम होने लगता है। साइकोथिरेपी के तहत ही इसका उपचार संभव होता है। हालांकि हर मरीज को इसकी जरूरत नहीं होती लेकिन इसका फायदा पहुंचता अवश्य है।
डिप्रेशन का उपचार औषधियों एवं साइकोथिरेपी के माध्यम से किया जाता है। डिप्रेशन का रोगी उपचार तो प्रारंभ कर देता है परंतु धैर्य के साथ उपचार नहीं करता। ऐसा माना जाता है कि डिप्रेशन का दौर तीन से चार महीने का होता है।  (स्वास्थ्य दर्पण)