कानूनों में बदलाव के निकलेंगे सकारात्मक परिणाम 

भारतीय कानून प्रणाली में निरन्तर सुधार होता रहा है। समय के साथ बदलाव भी ज़रूरी है, लेकिन हाल में केन्द्र सरकार के द्वारा कानूनी नियमों में जो व्यापक परिवर्तन किया गया है, वह न केवल हमें न्याय दिलाने का आसान मार्ग है, अपितु अब देश की जनता को त्वरित न्याय उपलब्ध हो पाएगा। इस बदलाव का मुख्य उद्देश्य समाज के सभी वर्गों को न्याय पहुंचाना और कानूनी प्रक्रिया में सुधार करना है। हाल ही में भारतीय दंड व साक्ष्य संहिताओं में कई महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं जिसमें कानूनी प्रक्रिया में बदलाव लाने के साथ-साथ न्यायिक प्रणाली के दृष्टिकोण को भी समायोजित किया है। गत एक जुलाई से बदले गए सारे कानून प्रभावी हो गए हैं। अब उन्हीं कानून के द्वारा लोगों को न्याय मिलेगा। इसलिए इन कानूनों को जानना बेहद ज़रूरी है। साथ ही इसकी सकारात्मकता पर भी गौर किया जाना चाहिए। 
इस बदलाव का सबसे अहम पक्ष यह है कि इसमें पुलिस की जवाबदेही बढ़ा दी गयी है। मसलन, अब सर्च और ज़ब्ती की बीडियोग्राफी अनिवार्य होगी। जिस व्यक्ति की गिरफ्तारी होनी है, उसे सूचना देना अनिवार्य कर दिया गया है। जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाएगा उसे 24 घंटे के अंदर दंडाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करना ज़रूरी कर दिया गया है। 20 से अधिक धाराओं में पुलिस की जवाबदेही अनिवार्य होगी। इस बदले गए कानून में पहली बार प्राथमिक अनुसंधान का प्रावधान रखा गया है। बदले गए कानून में राजद्रोह के स्थान पर देशद्रोह की बात कही गयी है, लेकिन यदि कोई भारत की संप्रभुता व अखंडता के खिलाफ काम करता है तो उसकी सज़ा 7 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की कर दी गयी है। इस कानून में अंग्रेज़ों के काल की गुलामी वाली धाराएं हटा दी गयी हैं। अब पीड़ित को अपनी बात रखने का मौका दिया जाएगा।
 इसमें सूचना का अधिकार भी दिया गया है। नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति की व्यवस्था भी की गई है। अब पीड़ित या पीड़िता को प्रथमिकी की एक प्रति नि:शुल्क उपलब्ध कराना अनिवार्य होगा। जांच की रिपोर्ट 90 दिनों के भीतर करना ज़रूरी कर दिया गया है। इस कानून में मॉब लिंचिंग को परिभाषित किया गया है। कानून में साफ कहा गया है कि नस्ल, जाति, समुदाय, भाषा, लिंग, जन्म स्थान आदि से प्रेरित हत्या या गंभीर चोट को मॉब लिंचिंग के अंतरर्गत रखा गया है और इसके लिए 7 वर्ष की सज़ा का विधान किया गया है। स्थायी विकलांगता पर यह सज़ा 10 वर्ष की हो जाएगी या फिर उसे आजीवन कारावास में भी बदला जा सकता है।  
नए कानून में न्याय के लिए समय सीमा का निर्धारण कर दिया गया है। किसी भी प्रकार के अपराध में 3 वर्ष में सज़ा दिलाने की बात कही गयी है। अब पीड़ितों को तारीख पर तारीख का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। कुल 35 सेक्शनों में टाइमलाइन जोड़ा गया है। यदि कोई इलेक्ट्रोनिक माध्यम से शिकायत दर्ज कराता है तो तीन दिन में प्रथमिकी दर्ज की जाएगी। यौन अपराध में जांच रिपोर्ट 7 दिनों के अंदर भेजनी होगी। पहली सुनवाई के 60 दिनों के अंदर आरोप तय करना अनिवार्य होगा। 
आपराधिक मामलों में सुनवाई की समाप्ति के 45 दिनों के अंदर निर्णय देना ज़रूरी कर दिया गया है।  इस कानून के तहत अब किसी को दंड नहीं न्याय दिया जाएगा। भारतीय कानून में किए गए कुछ महत्वपूर्ण संशोधनों ने न्यायिक प्रणाली में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए गए हैं। ये संशोधन न केवल कानूनी प्रक्रिया को तेज़ी और सुलभता से व्यवस्थित करने का प्रयास है, बल्कि न्याय पहुंचाने में भी सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाता दिखाई देता है। भारतीय दंड संहिता में नए बदलाव का अहम पक्ष बेहद महत्व का है। अब घोषित अपराधियों के खिलाफ 90 दिनों के भीतर अनुपस्थिति में मुकद्दमा चलाया जा सकता है। यह विशेष रूप से बड़े अपराधों के मामलों में न्याय पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। 
नए कानून में दुष्कर्म पीड़िता के लिए ई-बयान, ज़ीरो एफआईआर, ई.एफआईआर और चार्जशीट डिजिटल रूप से होंगे। इससे पुलिस की कार्रवाई तेज़ और पारदर्शी होगी, जिससे अपराधियों को जल्दी न्यायिक प्रक्रिया में शामिल किया जा सकेगा। भारतीय दंड सहिता में अब 7 साल या उससे अधिक की सज़ा वाले सभी अपराधों में फोरेंसिक विशेषज्ञों की भूमिका अनिवार्य होगी। इससे अपराधियों के खिलाफ प्रमाण जुटाने में सुविधा होगी साथ ही प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी। ये सुधार भारतीय न्यायिक प्रणाली में बड़ा परिवर्तन लेकर आए हैं। विशेषज्ञों की मानें तो इससे न केवल त्वरित न्याय मिलेगा अपितु लोगों को न्याय और न्याय दिलाने वाली संस्थाओं पर भी विश्वास भी बढ़ेगा। इससे लोकतंत्र में मज़बूती आएगी साथ ही कानून का शासन स्थापित करने में आसानी होगी। 
इस मामले में हम देखते हैं कि भारतीय कानूनी प्रणाली में नए सुधारों के लागू होने से कानूनी प्रक्रिया में व्यापक सुधार आएगा। ये सुधार न केवल अपराधियों के खिलाफ तेज़ी से कार्रवाई करने में मदद करेंगे, बल्कि भारतीय समाज को न्याय प्रणाली में विश्वास भी बढ़ाएंगे। नये कानूनों से अपराधियों के खिलाफ न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और सही न्याय प्रदान करने की क्षमता में सुधार हो सकता है। साथ ही नया कानून गुलामी के प्रतीकों पर भी बड़ा प्रहार है। इस लिए बदले गए कानून एवं दंड सहिता के अंशों का सकारात्मक दृष्टि से स्वागत किया जाना चाहिए। (युवराज)