जम्मू-कश्मीर में हिंसा-जारी है परोक्ष युद्ध

जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों की ओर से फैलाई हिंसा एवं हत्याओं का सिलसिला खत्म नहीं हो रहा है। वर्ष 1989 में पाकिस्तान की ओर से निर्धारित नीति के तहत भेजे गए आतंकवादियों ने हिंसा तथा  हत्याओं का यह सिलिसला शुरू किया था, जो आज तक 50,000 से अधिक मौतें होने के बाद भी खत्म नहीं हुआ। लाख यत्नों के बावजूद इसके निकट भविष्य में भी खत्म होने की कोई सम्भावना दिखाई नहीं देती। इसका बड़ा कारण पाकिस्तान की सेना द्वारा भारत को रक्ति-रंजित करने की अपनाई गई नीति है। पाकिस्तान की ज्यादातर राजनीतिक पार्टियों तथा उनके नेताओं ने भी इस बात में कोई पर्दा नहीं रखा कि वे हर हाल में जम्मू-कश्मीर को अपने साथ मिलाने के इच्छुक हैं।
देश के विभाजन के साथ ही पाकिस्तानी सेना ने वहां के कबीलाई के लोगों की सहायता से इस प्रदेश पर हमला करके बहुत-से क्षेत्र को अपने कब्ज़े में कर लिया था। उस समय जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने देश के अन्य सैकड़ों राजाओं-महाराजाओं, जिन्होंने अपनी रियासतें भारत में शामिल करने को अधिमान दिया था, से अलग मार्ग धारण करते हुए जम्मू-कश्मीर को स्वतंत्र देश बनाये रखने का फैसला किया था, परन्तु जब पाकिस्तानी सेना ने इसको हड़पने के लिए हमला किया, तब हरि सिंह ने भारत से मदद की गुहार लगाई तथा इस प्रदेश को वह भारत में शामिल करने के लिए सहमत हो गए, परन्तु उस समय तक कबीलाई लोगों की सहायता से पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के एक बड़े क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया था तथा यह क्षेत्र अभी भी पाकिस्तान के अधिकार क्षेत्र में ही है। उधर पाकिस्तान अपने अस्तित्व को लेकर अब तक आंतरिक गड़बड़ का शिकार रहा है। इसके साथ ही वहां ज्यादातर समय तक सैनिक तानाशाहों ने ही शासन किया है। यदि समय-समय पर वोटों द्वारा कुछ सरकारें बनी भी हैं तो भी वे सैनिक तानाशाहों के इशारे पर ही चलती रही हैं, तथा जिन भी राजनीतिक शासकों ने सेना की बात मानने से इन्कार किया है, उन्हें किसी न किसी तरह सत्ता की कुर्सी से उतार दिया गया। पिछले 75 वर्ष में पाकिस्तान सेना की नीतियों के कारण राजनीतिक गड़बड़ का ही शिकार रहा है। कट्टरपंथियों ने यहां अपना पूरा जाल बिछा रखा है। पाकिस्तानी शासकों की कट्टरवादी तथा संकीर्ण नीति के कारण वर्ष 1971 में पूर्वी पाकिस्तान, जो समुद्र मार्ग से पश्चिमी पाकिस्तान से हज़ारों किलोमीटर दूर है, में ब़गावत हुई तथा एक लम्बे रक्तिम संघर्ष, जिसमें लाखों लोग मारे गए, के बाद बंगलादेश अस्तित्व में आया। उस समय भारत ने भी बंगलादेश को आज़ाद करवाने में अहम योगदान डाला था। पाकिस्तान के इस विभाजन के बाद शासकों ने पश्चिमी पाकिस्तान पर अपना शिकंजा और भी कस लिया। भारत के विरुद्ध  दुश्मनी के प्रण लिए तथा इसके लिए विश्व भर के आतंकवादियों की सहायता भी ली गई। इसके साथ ही अ़फगानिस्तान से सोवियत यूनियन का कब्ज़ा हटाने के लिए रूस विरोधी तालिबानों की भी सहायता की। इसलिए उसने अमरीका को अपने देश में अड्डे बनाने की भी पेशकश की। इसके बाद पाकिस्तान एक तरह से आतंकवाद की छावनी बन गया तथा यह बड़ी सीमा तक अमरीका पर निर्भर रहने लगा। चाहे अब एक बार फिर तालिबान ने अ़फगानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया है परन्तु वहां की सरकार पाकिस्तान की दुश्मन बनी  दिखाई देती है। अ़फगानिस्तान की धरती से अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे पाकिस्तानी तालिबान ने इसके अस्तित्व के लिए भी ़खतरा पैदा कर दिया है। राजनीतिक अनिश्चितता में घिरा यह देश आज सख्त आर्थिक मंदी में से गुज़र रहा है, जिस कारण वहां के करोड़ों लोगों का जीवन नरक बन गया है, परन्तु आश्चर्यजनक बात यह है कि ऐसा कुछ होने के बावजूद पाकिस्तान की सेना ने भारत के साथ  परोक्ष युद्ध छेड़ रखा है। आज भी वह लगातार भिन्न-भिन्न संगठनों के साथ जुड़े आतंकवादियों को आधुनिक हथियारों से लैस करके भारत में घुसपैठ करवा रहा है, जिस कारण उनका प्रतिदिन भारतीय सुरक्षा बलों से टकराव होता रहता है।
पिछले वर्ष भी अप्रैल 2023 में एक सैनिक वाहन पर हमला करके पांच भारतीय सैनिकों को शहीद कर दिया गया था। इसी तरह दिसम्बर 2023 में पुंछ में सैनिक गाड़ियों को निशाना बना कर पांच जवानों को शहीद कर दिया गया था। मई, 2024 में पुंछ में ही एयरफोर्स की एक बस पर हमला करके एक जवान को शहीद तथा 11 को घायल कर दिया गया था। पिछले कई वर्ष से आतंकवादियों की ओर से सड़कों पर बारूदी सुरंगें बिछा कर सैनिकों को निशाना बनाया जा रहा है तथा पिछले मास जून में 4 आतंकवादियों ने सेना पर भीषण हमले किए थे तथा अब पिछले कुछ दिनों के दौरान कड़े मुकाबले में 5 भारतीय सुरक्षा बल शहीद हो गए हैं। इससे यह बात ज़रूर स्पष्ट होती है कि अभी कश्मीर में आतंकवादियों के सफाये हेतु अन्य बड़े यत्नों की ज़रूरत होगी। इसके साथ ही इस बात का भी इंतज़ार करना पड़ेगा कि पाकिस्तान की सेना कब वास्तविकता को पहचानते हुए अपनी भारत विरोधी नीतियों पर पुन: विचार करने के लिए विवश होती है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द