प्राकृतिक आपदाओं से निपटने हेतु मज़बूत प्रबंधन की ज़रूरत
बारिश के मैसम में दिल्ली सहित देश के कई क्षेत्रों का सदैव बुरा हाल रहा है। पिछले दिनों सड़क पर जमा पानी दिल्ली स्थित एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में चला गया जिससे तीन छात्रों की मौत हो गई। भू-स्खलन की भयावह घटना 29 जुलाई को वायनाड के चार गांवों में घटी। सोमवार की देर रात वायनाड में मूसलाधार बारिश के कारण चार गांव बह गये। इस घटना में सिर्फ गांव के सभी घर ही नहीं बहे बल्कि सभी पुल, सड़कें और यहां तक कि गाड़ियां भी बह गईं। इस सबसे भयावह भू-स्खलन की घटना में 45 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। सैंकड़ों लोग लापता हैं। यह घठना रात में 2 बजे के आसपास तब घटी, जब लोग घरों में सो रहे थे। गत दिवस हिमाचल व उत्तराखंड में भी बादल फटने के कारण भारी नुकसान हुआ है। भारत में कई स्थानों पर भारी बारिश से नदियों उफान पर आ जाती है अनेक क्षेत्र बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में बादल फटने से व्यापक स्तर पर भू-स्खलन होता है जिससे भारी आर्थिक तथा जन-हानि होती है। लाखों लोग बेघर हो जाते हैं।
ऐसा तो है नहीं कि अति वर्षा कई सालों में एक बार होती हो। वर्षा, बाढ़ तथा भू-स्खलन की घटनाएं प्रत्येक वर्ष होती हैं। इसलिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों को ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने से लिए पहले से प्रबंध कर लेने चाहिए जिससे आमजन का कम से कम नुकसान हो। प्राकृतिक आपदा अल्प समय में बिना किसी पूर्व सूचना के आती है। आपदा की विशालता एवं निरन्तरता मानव जीवन, समाज तथा देश को बड़ी हानि पहुंचाती है एवं आर्थिकता पर भी गहरी चोट करती है। आपदा प्रबंधन में जापान से सीख ली जा सकती है, क्योंकि जापान आपदा प्रबंधन में विश्व में अग्रणी देश माना जाता है। जापान पृथ्वी के ऐसे क्षेत्र में अवस्थित है, जहां भूकम्प, सुनामी, ज्वालामुखी जैसी प्राकृतिक आपदाएं सदैव आती रहती हैं। जापान में आपदा प्रबंधन की अत्याधुनिक तकनीक को याकोहामा रणनीति कहा जाता है। जापान में आपदा प्रबंधन की साल भर नियमित रूप से मॉनिटरिंग कर अभ्यास किया जाता है एवं सम्भावित आपदाओं पर निरन्तर नज़र रखी जाती है। इनसे निपटने के लिए सुनियोजित योजना बनाकर नागरिकों को सुरक्षित कर लिया जाता है। भारत को भी इसी तरह के आपदा प्रबंधन को अपनाना चाहिए।
आपदाएं समाज के आर्थिक व सामाजिक रूप से कमज़ोर वर्ग को ज्यादा प्रभावित करती है। वृद्ध लोगों, महिलाओं, बच्चों व दिव्यांगों को प्राकृतिक आपदाओं से सबसे ज्यादा खतरा रहता है। भारत के भू-भाग का लगभग 58 प्रतिशत क्षेत्र भूकम्प की संभावना वाला क्षेत्र है, जिसमें हिमालयिन क्षेत्र, पूर्वोत्तर राज्य, गुजरात का कुछ क्षेत्र, अंडमान निकोबार द्वीप समूह भूकम्प की दृष्टि से सबसे संवेदनशील क्षेत्र रहे हैं। देश के 65 से 68 प्रतिशत भू-भाग पर कभी कम कभी ज्यादा सूखा पड़ता है। इसी तरह भारत के पश्चिमी और प्रायद्वीपीय राज्य में मुख्यत: शुष्क तथा अर्ध शुष्क न्यून नमी वाले क्षेत्र सूखे से सदैव प्रभावित रहते हैं। बारिश के मौसम में पर्वतीय राज्यों में भू-स्खलन का खतरा बना रहता है। देश के विशाल तटवर्ती क्षेत्र में चक्रवात तथा सुनामी का खतरा रहता है। प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान अथवा आकलन किया जाना पहले से संभव नहीं हो सकता है। ऐसे में अन्य राष्ट्रीय योजनाओं के साथ-साथ आपदा प्रबंधन पर भी गम्भीरता से कार्य करना चाहिए।
भारत को आपदा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण विभाग को चुस्त-दुरुस्त तथा अत्याधुनिक तकनीक से युक्त रखने की आवश्यकता है। भारत में आपदा प्रबंधन के लिए 1990 में कृषि मंत्रालय के अंतर्गत डिजास्टर मैनेजमेंट सेल स्थापित किया गया था, लेकिन 1993 में लातूर के भूकम्प तथा 1998 में मालपा भू-स्खलन तथा 1999 में ओडिशा में सुपर साइक्लोन तथा 2001 में भुज के भूकम्प के बाद देश में एक मज़बूत आपदा प्रबंधन की ज़रूरत को महसूस करते हुए जे.सी. पंत की अध्यक्षता में हाईपावर कमेटी की रिपोर्ट में एक सुव्यवस्थित तथा व्यापक सिस्टम तथा विभाग की स्थापना की आवश्यकता प्रतिवेदित की गई थी। 2002 में आपदा को देश की आंतरिक सुरक्षा का मामला मानते हुए आपदा को गृह मंत्रालय के अंतर्गत समाविष्ट किया गया था। आपदा प्रबंधन के इतिहास में 2005 में एक बड़ा परिवर्तन लाया गया।
भारत सरकार ने आपदा को अपनी कार्ययोजना के एक चक्रीय क्रम के रूप में प्रबंधित किया जिसमें आपदा आने पर इससे बचाव, नुकसान की भरपाई, निदान तथा आपदा आने के पूर्व की तैयारी तथा योजना को मूर्त रूप देने हेतु कार्य किया गया था। सरकार को गरीब तथा वंचित वर्ग के लिए आपदा प्रबंधन में विशेष प्रावधान दिया जाना चाहिए।
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