तीसरी अर्थ-व्यवस्था बनने में कपास उद्योग की होगी अहम भूमिका
साल 2024-25 का बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दावा किया कि भारत प्रधानमंत्री मोदी के तीसरे कार्यकाल के दौरान ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था बन जायेगा। निश्चित रूप से देश की इस सबसे बड़ी आर्थिक छलांग में सभी उद्योगों का महत्वपूर्ण योगदान होगा, लेकिन भारत के कपास उद्योग (कॉटन इंडस्ट्री) का इसमें सबसे अहम रोल रहेगा, क्योंकि भारत दुनिया में सबसे ज्यादा कपास का उत्पादन करने वाला देश है। जहां पूरी दुनिया में 31.2 मिलियन हेक्टेयर रकबे पर कपास की खेती होती है, वहीं अकेले भारत में 11.7 से 12.6 मिलियन हेक्टेयर में कपास की खेती की जाती है। भारतीय औद्योगिक परिदृश्य में कपास उद्योग कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश में 6 करोड़ लोगों को यह उद्योग आजीविका प्रदान करता है। साल 2021-22 में भारत में 3.41 करोड़ कपास की गांठें उत्पादित हुई थीं, जिसमें कपास की एक गांठ का वजन 170 किलोग्राम था। कपास की खेती यूं तो नकदी फसलों में आती है और अगर फसल अच्छी हो जाए तो किसानों को मालामाल कर देती है, लेकिन कपास की खेती के साथ एक बड़ी अड़चन यह है कि इसमें 6 से 8 महीने का समय लग जाता है। इस तरह आम तौर पर कपास की खेती साल में एक ही बार हो पाती है।
देश में कपास के उत्पादन के लिए सबसे अच्छी काली मिट्टी के क्षेत्र माने जाते हैं और काली मिट्टी का सबसे बड़ा इलाका महाराष्ट्र और गुजरात में है। देश में कपास का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य गुजरात है। कपास के साथ एक अच्छी बात यह है कि इसे बहुत कम सिंचाई या बारिश की ज़रूरत पड़ती है, लेकिन हाल के सालाें में कपास के किसानों का सबसे बड़ा संकट इसमें लगने वाले रोग रहे हैं। कई बार असमय बारिश और सूखा भी कपास की खेती के लिए बड़ी चुनौती बन जाता है। इसी तरह तापमान में वृद्धि भी कपास की फसल पर विपरीत असर डालती है, लेकिन कपास के लिए सबसे बड़ा खतरा इसमें लगने वाले रोग हैं। हालांकि इन दिनों बीटी काटन किस्म में कीट रोग का खतरा कम है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि कपास में लगने वाले कीट इस किस्म के साथ भी अपनी प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेंगे। आम तौर पर कपास की खेती करने वाले किसानों को 30 से 40 फीसदी तक के रिटर्न की गारंटी होती है और अगर बहुत अच्छी फसल हो जाए तब तो 100 से 120 फीसदी तक मुनाफे की स्थिति बन जाती है। लेकिन एक चिंता यह होती है कि कपास की अंतर्राष्ट्रीय कीमतें घटती-बढ़ती रहती हैं। वैसे हमारी कपास 8 से 10 फीसदी कम दर पर जाती है, क्योंकि एक तो हमारी कपास की फसल सबसे उन्नत किस्म नहीं है, दूसरी बड़ी बात यह है कि भारत कपास की कीमतें कुछ कम रखता है ताकि कपास निर्यात में हमारा दुनिया में जो पहला स्थान है, वह बरकरार रहे।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा कपास उत्पादक ही नहीं, अपितु कपास निर्यातक देश भी है। बांग्लादेश, चीन, वियतनाम और पाकिस्तान भारतीय कपास के सबसे बड़े ग्राहक हैं। भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कपास का योगदान 0.6 फीसदी से 5 फीसदी तक है। जबकि कपास उद्योग से जुड़ी विभिन्न गतिविधियों में 60 लाख से ज्यादा किसानों और 5 से 6 करोड़ अन्य लोगों को रोज़गार मिलता है। कपास की पारम्परिक खेती में अभी भी छोटे किसानों का बहुमत है, लेकिन उद्योग चाहता है कि कपास की खेती में बड़े किसानों का भूमिका अधिक हो ताकि इस उद्योग के साथ जुड़ी कई तरह की अनिश्चितताएं कम हो सकें। यही वजह है कि एक तरफ जहां देश में कपास उत्पादन को और बेहतर तथा उन्नत बनाने के लिए विभिन्न विश्वविद्यालयाें और दूसरी प्रयोगशालाओं में कपास की विभिन्न किस्मों पर शोध अनुसंधान हो रहे हैं, वहीं कपास उद्योग में बड़े पैमाने पर पूंजी आकर्षित करने के लिए इस उद्योग को एक बड़े कैनवास में तब्दील किए जाने की योजनाएं बनायी जा रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में कपास की खेती से अर्थ-व्यवस्था को मज़बूत बनाने की अभी बहुत ज्यादा संभावनाएं है, क्योंकि अभी तक 70 फीसदी से ज्यादा कपास की खेती छोटे और सीमांत किसानों द्वारा की जाती है जिनके पास कई तरह के संसाधनों का हमेशा अभाव रहता है। हालांकि पहले इस उद्योग का मनोभाव यह था कि इस क्षेत्र में बड़ी पूंजी न घुसे, लेकिन अब योजना यह है कि 2027-28 तक कपास की खेती में 4000 करोड़ से ज्यादा निवेश हो,जिससे भारत का कपास न सिर्फ गुणवत्ता के मामले में ऊंचे दर्जे का हो बल्कि कमाई के लिहाज से भी बेहद आकर्षक हो। इसलिए कपास की खेती में नई से नई कृषि तकनीकों, उन्नति बीजों और बेहतर सिंचाई प्रणालियाें का प्रवेश हो रहा है, जिससे विशेषज्ञाें का मानना है कि अगले पांच सालाें में कपास की खेती में 15 से 27 फीसदी की बढ़ोत्तरी होगी। बीटी कपास और कपास की खेती में मशीनाें के बढ़ते चलन ने किसानों को अच्छी पैदावार दी है, साथ ही इस क्षेत्र में नई पीढ़ी के रूचि लेने का भी रूझान बढ़ा है, क्योंकि सरकार जिन महत्वपूर्ण फसलाें को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देती है, उसमें कपास भी शामिल है। इसलिए उम्मीद की जाती है कि आने वाले दिनों में कपास उद्योग और ज्यादा फले-फूलेगा तथा रोज़गार के अवसर पैदा करेगा।
सरकार ने इसलिए भी अंतर्राष्ट्रीय दबावों के बावजूद कपास किसानों को सब्सिडी और वित्तीय सहायता देना जारी रखा है। कपास की खेती में तरह तरह की नई-नई तकनीकें शामिल हो रही हैं। जैसे असमय सूखा और बारिश से बचाव के लिए कपास की ऐसी मजबूत किस्में पैदा की जा रही हैं, जिनमें ये चीज़ें असर नहीं करेंगी, क्योंकि जहां कपास की खेती है, वहां बारिश कम होती है, इसलिए बड़े पैमाने पर अब गुजरात और महाराष्ट्र में विदर्भ में जल संरक्षण तकनीकों का उपयोग करके फसल को लाभादायक बनाया जा रहा है। कुल मिलाकर अगले तीन से चार साल कपास उद्योग के लिए बहुत महत्वपूर्ण क्योंकि भारत इस दौरान विश्व की पांचवीं से तीसरी अर्थ-व्यवस्था बनने हेतु लम्बी छलांग लगायेगा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर