हथकरघा पुनरुद्धार हेतु मात्रा के बजाय गुणवत्ता ज़रूरी
10वें राष्ट्रीय हथकरघा दिवस पर विशेष
स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत 7 अगस्त, 1905 को टाउन हॉल, कोलकाता में आयोजित एक बैठक में हुई थी। स्वतंत्रता संग्राम के एक हिस्से के रूप में इस आंदोलन का उद्देश्य घरेलू उत्पादों और उत्पादन प्रक्रियाओं को पुनर्जीवित करना था। इस ऐतिहासिक अवसर को याद करने और हथकरघा परम्परा का जश्न मनाने के लिए माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा 2015 में, 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में घोषित किया गया। इस आयोजन का उद्देश्य भारत के हथकरघा कामगारों को सम्मानित करना तथा हथकरघा क्षेत्र को प्रोत्साहन प्रदान करना है।
हथकरघा क्षेत्र ग्रामीण और अर्ध-ग्रामीण आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जो 35 लाख से अधिक लोगों को रोज़गार देता है। इनमें से 25 लाख से ज्यादा महिलाएं हैं। इस प्रकार यह क्षेत्र महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। वस्त्र मंत्रालय ने देश भर में हथकरघा क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं। माननीय प्रधानमंत्री ‘मन की बात’ कार्यक्रम में ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण प्रदान करने में हथकरघा क्षेत्र के महत्व पर प्रकाश डाला था। उन्होंने नए स्टार्टअप उद्यमों की ओर भी ध्यान आकर्षित किया जो हथकरघा उत्पादों और सस्टेनेबल फैशन को प्रोत्साहित करने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने नागरिकों से स्थानीय हथकरघा उत्पादों को लोकप्रिय बनाने तथा उन्हें हैशटैग माई प्रोडक्ट माई प्राईड के साथ सोशल मीडिया पर शेयर करने का भी आग्रह किया। पिछले कुछ वर्षों में भारत का हथकरघा क्षेत्र निरंतरता और स्लो फैशन के प्रतीक के रूप में उभरा है। इसीलिए मात्रा की अपेक्षा गुणवत्ता को प्राथमिकता देने के महत्व पर जोर दिया जाता है। हथकरघा बुनाई एक विरासत वाली शिल्पकला है जो निरंतर और नैतिक फैशन के सिद्धांतों को मूर्त्त रूप देती है।
पिछले दशक में लगातार सरकारी प्रयासों से फास्ट फैशन से लेकर स्थानीय स्तर पर उत्पादित वस्तुओं में उल्लेखनीय बदलाव हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी गर्व से भारतीय हथकरघा पर बुने हुए कपड़े पहनते हैं और विश्व स्तर पर उनको बढ़ावा भी देते हैं तथा हथकरघा क्षेत्र की सफलता में काफी हद तक उनका योगदान रहा है। अब समय आ गया है कि अधिक से अधिक लोग इस आंदोलन में शामिल हों।
हथकरघा क्षेत्र सस्टेनेबिलिटी को बढ़ावा देने के अलावा, महिलाओं और हाशिये पर पहुंच चुके समुदायों को सशक्त बनाने, उनके लिए आर्थिक संभावनाएं तैयार करने और अपनी शिल्पकला पर उन्हें गर्व करने के महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। इस क्षेत्र के उत्थान में कताई, रंगाई और बुनकर के रूप में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं। मैं देश भर के पारम्परिक समुदायों और विशेषकर महिलाओं के योगदान को पूरी तरह से मान्यता और सम्मान दिया जाना चाहिए, जिनके बिना हथकरघा क्षेत्र के उत्थान की कल्पना नहीं की जा सकती है। उनके योगदान को बनाए रखने और उसे बढ़ावा देने के लिए उनके साथ गरिमापूर्ण एवं सम्मानजनक व्यवहार करना ज़रूरी है। इसके अलावा हथकरघा क्षेत्र में कई महिला-नेतृत्व वाली सहकारी समितियां और स्वयं सहायता समूह भी बने हुए हैं।
ये संगठन न केवल प्रशिक्षण और संसाधन उपलब्ध कराते हैं, बल्कि एक सहायता नेटवर्क भी प्रदान करते हैं जो एकजुटता और सामूहिक सौदेबाजी की शक्ति को बढ़ावा देता है। महिला स्वयं सहायता समूह एकजुट होकर, अपने उत्पादों की बेहतर कीमतों के लिए सौदेबाजी कर सकते हैं, बड़े बाजारों तक पहुंच बना सकते हैं तथा उचित मजदूरी और कार्य करने संबंधी उचित परिस्थितियों की भी मांग कर सकते हैं। बुनाई कौशल, डिजाइन नवाचार और एंटरप्रेन्योर क्षमताओं में सुधार लाने के उद्देश्य से शुरू किए गए शैक्षिक कार्यक्रम महिलाओं को और अधिक सशक्त बनाते हैं। नई तकनीकों में निपुणता प्राप्त करके और आधुनिक डिजाइनों को एक्सप्लोर करके, महिला बुनकर उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद बनाकर समकालीन बाजारों को आकर्षित कर सकती हैं जो उनके शिल्प की सक्रियता को सुनिश्चित करेगी।
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के उपलक्ष्य में इस वर्ष, सभी को दो प्रतिज्ञाएं करनी चाहिए पहली, हम सभी हथकरघा उत्पादों के साथ सेल्फी लेंगे और उसे सोशल मीडिया पर साझा करेंगे। दूसरी, हथकरघा को अपने परिधानों एवं दैनिक जीवन में शामिल करेंगे। प्रत्येक हथकरघा वस्तु अद्वितीय है, जिसे सावधानी एवं बारीकी से बुना जाता है, जो इसके बनाने वाले के समर्पण के साथ-साथ उसके शिल्प कौशल को प्रदर्शित करता है। हथकरघा उत्पादों का चयन करके हम न केवल पारंपरिक वस्त्रों की सुंदरता और विविधता को सम्मानित करते हैं, बल्कि कारीगरों की आजीविका में भी योगदान देते हैं। साथ ही यह भी सुनिश्चित करते हैं कि उनका यह अमूल्य कौशल भावी पीढ़ियों तक पहुंचे।