जांच एजेंसियों और निचली अदालतों को सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट संदेश

ज़मानत का मामला

हाल ही में अपने अलग-अलग आदेशों के ज़रिये तीन व्यक्तियों को ज़मानत प्रदान करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसीज व हाईकोर्ट्स सहित अन्य निचली अदालतों को प्रमुखता से दो स्पष्ट संदेश दिए हैं—एक, पीएमएलए जैसे गंभीर मामलों में भी ‘बेल नियम, जेल अपवाद’ सिद्धांत लागू होता है। दूसरा यह कि आरोपी ने हिरासत में जो अन्य केस के बारे में वक्तव्य दिया है, वह साक्ष्य के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने 28 अगस्त, 2024 को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सहयोगी प्रेम प्रकाश को उसी केस में जिसमें सोरेन को ज़मानत दी थी बेल देते हुए इन बातों को न केवल दोहराया बल्कि एक तरह से उनका नज़ीर होने पर मोहर लगा दी है। इससे एक दिन पहले यानी 27 अगस्त, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की कविता को दिल्ली शराब नीति मामले में ज़मानत दी थी और उससे कुछ समय पहले दिल्ली के पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को ज़मानत दी थी। 
इन तीनों मामलों का एक साथ अध्ययन करने पर सभी अदालतों व जांच एजेंसियों के लिए संदेश एकदम स्पष्ट है। कविता की याचिका पर सुनवायी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसीज़ को एक बार फिर फटकार लगायी और साथ ही दिल्ली हाईकोर्ट को भी संकेत दिए, जिसने पिछले पांच माह के दौरान कविता को दो बार ज़मानत देने से इन्कार किया था। सुप्रीम कोर्ट ने जो ये ज़मानतें दी हैं और इनमें की गई प्रत्येक टिप्पणी उन सभी विचाराधीन आरोपियों के लिए उचित व न्यायपूर्ण प्रक्रिया की उम्मीद की किरण है, जो सख्त कानूनों के तहत जेल में हैं और बाहर निकलने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। बीआरएस के प्रमुख केसी राव की बेटी कविता को ईडी ने 15 मार्च, 2024 को गिरफ्तार किया था और फिर 11 अप्रैल, 2024 को सीबीआई ने उन्हें तिहाड़ जेल से गिरफ्तार किया। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दोनों केसों (भ्रष्टाचार व मनी लॉन्ड्रिंग) में ज़मानत दे दी। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी की गिरफ्तारी में ईडी व सीबीआई की ‘निष्पक्षता’ व ‘पिक एंड चूज़’ दृष्टिकोण को भी कटघरे में खड़ा किया। 
न्यायाधीश बी.आर. गवई व न्यायाधीश के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने कविता को ज़मानत देते हुए कहा, ‘वह पांच माह से सलाखों के पीछे हैं। निकट भविष्य में ट्रायल का पूर्ण होना असंभव है..अंडरट्रायल कस्टडी सज़ा में नहीं बदलनी चाहिए। अगर दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को कानून बनने दिया जायेगा...किसी शिक्षित महिला को ज़मानत नहीं मिलेगी  ... (हाईकोर्ट) ने कृत्रिम निर्णय तलाश किया है, जो कानून में नहीं है। हमने पाया है कि (हाईकोर्ट की) विज्ञ एकल-न्यायाधीश खंडपीठ स्वयं को पूर्णत: गलत दिशा में ले गई है। ... अभियोग पक्ष को निष्पक्ष होना चाहिए। जो व्यक्ति स्वयं को दोषी ठहराता है उसे गवाह बना लिया गया है। कल को आप जिसे चाहेंगे उसे पकड़ लेंगे और जिसे चाहेंगे उसे छोड़ देंगे? आप किसी भी आरोपी को पिक एंड चूज़ नहीं कर सकते। 
क्या यह निष्पक्षता है?’ पहले सिसोदिया के मामले में और नवीनतम घटना में कविता के मामले में ज़मानत का विरोध करने के लिए जांच एजेंसीज़ को अपनी जांच की गुणवत्ता व स्वरूप के लिए सुप्रीम कोर्ट की फटकार सुननी पड़ी है। एक केस के बाद दूसरे केस में सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि विशेष कानूनों जैसे पीएमएलए, यूएपीए व पीएसए के तहत भी ज़मानत नियम है और जेल अपवाद है और यह सिद्धांत अनुच्छेद 21 का हिस्सा है, जिसका संबंध जीवन व स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों से है। 
सुप्रीम कोर्ट ने 28 अगस्त, 2024 को निश्चित व अविवादित तौर पर स्पष्ट किया कि यह सिद्धांत मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में भी लागू होता है और पीएमएलए प्रावधानों को इसके अनुरूप किया जाना चाहिए। पीएमएलए की धारा को सशर्त रिहाई देने के लिए उचित तौरपर हल्का किया जाना चाहिए। न्यायाधीश बी.आर. गवई व न्यायाधीश के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने इस मुद्दे को बिना किसी संदेह के हल करते हुए पीएमएलए केसों में यह दो शर्तें पूरी होती हैं कि आरोपी प्रथम दृष्टया दोषी नहीं है और ज़मानत पर रिहा होने के बाद उसके द्वारा अपराध करने की संभावना नहीं है, तो उसे ज़मानत दे देनी चाहिए। अदालत की यह रूलिंग प्रेम प्रकाश को ज़मानत प्रदान करते हुए सामने आयी। प्रेम प्रकाश हेमंत सोरेन के सहयोगी हैं जिन्हें तथाकथित भूमि घोटाले में गिरफ्तार किया गया था। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अनुच्छेद 21 उच्च संवैधानिक अधिकार है और इसलिए वैधानिक प्रावधानों को उसके अनुरूप होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार पीएमएलए की धारा 45 केवल निश्चित शर्तों की संतुष्टि की बात कहती है, जबकि ‘ज़मानत नियम है और जेल अपवाद है’ का सिद्धांत संविधान के अनुच्छेद 21 की संक्षिप्त व्याख्या है। 
अनुच्छेद 21 कहता है कि किसी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता, सिवाय क़ानून द्वारा स्थापित प्रक्त्रिया के। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार व्यक्तिगत स्वतंत्रता हमेशा नियम है और उससे वंचित किया जाना अपवाद है। वैध व उचित प्रक्त्रिया से ही किसी को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे को भी सेटल किया। उसने कहा कि आरोपी ने हिरासत में रहते हुए अगर किसी अन्य मामले में कोई वक्तव्य दिया है, तो उसे साक्ष्य के तौरपर स्वीकार नहीं किया जा सकता। दरअसल, प्रेम प्रकाश पहले ही झारखंड में स्टोन माइनिंग केस में बंद था, जब उसने ईडी को तथाकथित भूमि घोटाले में बयान दिया, जिसके बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। बहरहाल, कविता व सिसोदिया के मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट व जांच एजेंसीज से तीन महत्वपूर्ण बातें कहीं। एक, जांचकर्ता ज़मानत के विरुद्ध उन ‘साक्ष्यों’ के आधार पर बात नहीं कर सकते जो ट्रायल आरंभ होने पर पेश किये जाते हैं। सिसोदिया, कविता या प्रेम प्रकाश के मामलों में जांचकर्ताओं ने यह साबित नहीं किया कि इन्हें ज़मानत क्यों नहीं देनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘अनुमान’ ‘साक्ष्य’ नहीं होता है। 
 -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर