गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक है हुमायूं म्यूज़ियम

अकबर जब मात्र 14 वर्ष के थे, तो उन्हें 24 जनवरी, 1556 को एक पत्र मिला, जिसने भारतीय इतिहास की धारा को एक नया मोड़ दिया। मुगल वंश के दूसरे बादशाह हुमायूं अपने महल के पुस्तकालय की छत से नमाज़ अदा करने के लिए सीढ़ियों से नीचे उतर रहे थे कि उनका पैर उनके ही अंगरखे (एक प्रकार का लम्बा ढीला ढाला मर्दाना वस्त्र) में फंस गया और वह नीचे गिर गये। तीन दिन बाद उनका निधन हो गया। इसके कुछ वर्षों अकबर ने अपने पिता की कब्र पर मकबरे का निर्माण कराना आरंभ किया, जिसे हुमायूं का मकबरा कहते हैं। आज यह पत्र हाल ही में पब्लिक के लिए खुले हुमायूं वर्ल्ड हेरिटेज साईट म्यूजियम में प्रदर्शित दुर्लभ कलाकृतियों में शामिल है। यह म्यूजियम नई दिल्ली में निजामुद्दीन बस्ती-सुंदर नर्सरी के निकट हुमायूं के मकबरे के परिसर में है। 
कुछ दिन पहले, तेज़ बारिश के बावजूद, जब मैं इस म्यूजियम को देखने के लिए पंहुचा तो बहुत प्रभावित हुआ। यह म्यूजियम भारत में अपने किस्म का इकलौता व विशिष्ट है और दिल्ली की बाओलियों के डिज़ाइन से प्रेरित है। एक ढलाननुमा मार्ग से होते हुए मैं स्थायी गैलरी में पहुंचा। शीशम के विशाल दरवाजों के अंदर भूमिगत म्यूजियम है, जोकि पांच गैलरियों का है और हुमायूं के मकबरा परिसर को सुंदर नर्सरी से जोड़ता है। यहां मेरा परिचय दिल्ली के प्राचीनकाल से हुआ, उसके सात शहरों से हुआ और भारत के गंगा-जमुनी इतिहास में निज़ामुद्दीन के महत्व को मैंने समझा। मुख्य गैलरी ‘जहां बादशाह आराम फरमा रहे हैं’, जो मकबरे के आर्किटेक्चर व हुमायूं के व्यक्तित्व पर फोकस करती है, में प्रवेश करने से पहले 270-डिग्री पैनोरमिक स्क्रीन पर इस वर्ल्ड हैरिटेज साईट के स्मारकों व गार्डन्स का वर्चुअल टूर किया। पूरे म्यूजियम में विभिन्न प्रकार की फिल्में, प्रोजेक्शन मैपिंग, एनीमेशन और ऑडियो-विजुअल स्क्रीन इस क्षेत्र का इतिहास बयान करते रहते हैं।
संरक्षण इस म्यूजियम का सार है। यह 100,000 वर्ग फीट का काम्प्लेक्स आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) की पार्टनरशिप में वर्ल्ड हैरिटेज साइट्स के लिए यूनेस्को के दिशानिर्देशों के अनुसार बनाया गया है ताकि पर्यटकों को इस हैरिटेज साईट के सांस्कृतिक संदर्भ को बेहतर समझने में मदद मिल सके। यह 25 वर्ष से अधिक के शोध व संरक्षण कार्य को प्रदर्शित करता है और निज़ामुद्दीन के इतिहास को उजागर करता है। शोध में इन प्रश्नों के भी उत्तर तलाश किये गये कि हुमायूं की विस्तृत यात्राओं का क्या प्रभाव पड़ा? हुमायूं की जो खगोलशास्त्र व ज्योतिषशास्त्र में आस्था थी, उसका उनके कार्यकाल में क्या असर पड़ा? गौरतलब है कि दिल्ली की गद्दी पर शेरशाह सूरी के कब्ज़े के बाद हुमायूं को लगभग 11 वर्ष तक दूरदराज़ तक की यात्राएं करनी पड़ी थीं। म्यूजियम में 500 से अधिक कलाकृतियां हैं, जिन्हें एएसआई, दिल्ली के नेशनल म्यूजियम और एकेटीसी कलेक्शंस से सोर्स किया गया है और कुछ कमीशंड चीज़ें भी हैं। हर चीज़ को पहली बार डिसप्ले किया गया है- मकबरे का रेप्लिका, उसके आर्किटेक्चरल फीचर्स, पांडुलिपियां, पुस्तकें (जिनमें 14वीं शताब्दी की लैला मजनूं भी है) हुमायूं अक्सर शुतुर-ए-किताबखाना यानी ऊंट की पीठ पर लदा पुस्तकालय के साथ यात्रा करते थे। 
स्कॉटिश कलाकार जिल वाटसन द्वारा बनायी गईं कांस्य की मूर्तियां जिनमें ग्रहों के हिसाब से बादशाह के वस्त्रों के रंगों को प्रदर्शित किया गया है और 16वीं या 17वीं शताब्दी का योद्धा का हेलमेट। हेलमेट का कैप्शन इस तरह से है- ‘फारस की तरफ यात्रा के दौरान हुमायूं व उनके सेवक को अति कठिन परिस्थितियों का अनुभव करना पड़ा। एक अवसर पर बादशाह को घोड़ा कुर्बान करके उसका गोश्त हेलमेट में पकाना पड़ा था।’ हुमायूं ने अपने जीवन में भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान व ईरान में 34,000 किमी की यात्रा की थी। उन्होंने 122 शहर विजिट किये और यह बात अनेक कलाकृतियों से ज़ाहिर है, जिनमें ईरान के शाह त:मस्प का खंजर भी है, जिन्होंने हुमायूं को अपना राजपाट वापस हासिल करने में मदद की थी। म्यूजियम में अधिक अंदर जाने पर मेरा स्वागत कव्वाली संगीत से हुआ, जोकि हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह की रेप्लिका छतरी में गूंज रहा था। अनेक महत्वपूर्ण व्यक्ति जैसे अमीर ख़ुसरो, अब्दुर रहीम खाने-खाना आदि हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के संदेश (सार्वभौमिक प्रेम व भाईचारे) से प्रभावित थे और उनसे जुड़ी चीज़ें भी म्यूजियम में डिसप्ले पर हैं। रहीम गंगा-जमुनी तहज़ीब के प्रतीक थे और वह हिन्दू धर्मग्रंथों में विशेष दिलचस्पी रखते थे। उन्होंने रामायण व महाभारत का अनुवाद संस्कृत से फारसी में किया। उनके अनुवाद की प्रतियां उनके दोहों के साथ डिसप्ले पर हैं और उनकी एक पोट्रेट भी जिसमें वह भगवान विष्णु के समक्ष नतमस्तक हैं। एक पीट्रा ड्यूरे मार्बल पर ख़ुसरो की पंक्तियों की नक्काशी की हुई है, जोकि मास्टर क्राफ्ट्समैन इकबाल अहमद का कमाल है। दारा शिकोह द्वारा फारसी में उपनिषदों का अनुवाद भी म्यूजियम में मौजूद है और उनके हाथ की लिखी सिर्र-ए-अकबर पांडुलिपी भी। यह म्यूजियम गंगा-जमुनी तहज़ीब व समावेशी संस्कृति का जीता जागता प्रतीक है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर