भाजपा ने बनाई 10 करोड़ नये सदस्य भर्ती करने की योजना

केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा दो-तरफा आधार पर विस्तार करने के लिए काम कर रही है। पहला अन्य दलों, विशेष रूप से कांग्रेस से प्रभावशाली नेताओं को भाजपा में शामिल करने तथा दूसरा बड़े पैमाने पर पार्टी में नये सदस्यों की भर्ती करने। हालांकि विपक्षी राजनीतिक पार्टियों से इसमें कम संख्या में नेता शामिल हो सकते हैं, लेकिन उनका प्रभाव महत्वपूर्ण है जबकि जनाधार बढ़ाने के लिए पार्टी बड़ी संख्या में नये सदस्यों को नामांकित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। 
झारखंड मुक्ति मोर्चा के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन झारखंड के वर्तमान मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन के पिछले महीने उन्हें हटाकर पुन: यह पद संभालने के बाद भाजपा में शामिल हो गये हैं। हेमंत सोरेन के एक घोटाले में ईडी द्वारा गिरफ्तार किये जाने के बाद से चंपई मुख्यमंत्री पद संभाल रहे थे। यह कदम प्रभावशाली मुख्यमंत्रियों के भाजपा में शामिल होने की प्रवृत्ति को बढ़ाता है, जो पार्टी की रणनीतिक सफलता को उजागर करता है। भाजपा अन्य दलों के जाने-माने नेताओं को गले लगाती है क्योंकि वे अपने प्रभाव और कार्यकर्ताओं को साथ लाते हैं। कांग्रेस से आये असम के मुख्यमंत्री हिमंतविश्व शर्मा इसका एक बेहतरीन उदाहरण हैं। वह पूर्वोत्तर में सबसे चर्चित व्यक्ति बन गये हैं।
नेशनल इलेक्शन वॉच-एडीआर के अनुसार दलबदल और पार्टी बदलने के मुख्य कारण मूल्य-आधारित राजनीति का अभाव, पैसे और सत्ता का लालच, पुरस्कृत राजनीतिक पद और कुशल, ईमानदार व विश्वसनीय नेताओं की कमी है।
भाजपा ने समानांतर ट्रैक पर 10 करोड़ नये सदस्य बनाने की योजना बनायी है। पिछले सप्ताह की बैठक में पार्टी नेतृत्व ने फैसला किया कि यह अभियान दो चरणों में होगा: 2 से 25 सितम्बर और 1 से 15 अक्तूबर।
पिछले दशक में भाजपा ने उल्लेखनीय वृद्धि देखी है। 1980 के दशक में उच्च-मध्यम वर्ग, शहरी लोगों और बड़ी संख्या में हिंदुओं ने मुख्य रूप से भाजपा का समर्थन किया। तब से इसने एक व्यापक राजनीतिक आधार बनाया है, जो इसके बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है। भाजपा ने कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया है और 18 करोड़ सदस्यों के साथ पहले से ही दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है। ग्रैंड ओल्ड पार्टी, कांग्रेस के 13 करोड़ सदस्य हैं।
2014 से 2019 के बीचदेश भर में लगभग 18 करोड़ लोग भाजपा में शामिल हुए। विभिन्न दलों के भी 80 हज़ार नेता और कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हुए हैं, जिसका लक्ष्य राष्ट्रीय और ज़िला स्तर पर लगभग 1,00,000 नेताओं की भर्ती करना है। इस अभियान के ज़रिए भाजपा अपने सदस्यों के बारे में डेटा एकत्र करती है, जिसमें उनकी जाति, लिंग, आयु, निवास और अन्य विवरण शामिल हैं। 
पिछले दशक में पूर्व मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों सहित कई प्रभावशाली कांग्रेस नेता भाजपा में चले गये, जिससे उनकी हताशा, लालच और सत्ता की लालसा का पता चला। भाजपा ने उनमें से कुछ को अच्छे पदों से पुरस्कृत किया है। उनमें से उल्लेखनीय नेताओं में हिमंतविश्व शर्मा, कैप्टन अमरिंदर सिंह, जितिन प्रसाद, आर.पी.एन. सिंह, मिलिंद देवड़ा और ज्योतिरादित्य सिंधिया शामिल हैं। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, रितेश पांडे, संगीता आज़ाद और अन्य हाल ही में भाजपा में शामिल हुए हैं। वे कांग्रेस, बसपा, अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस और वाईएसआरसीपी जैसे विभिन्न राजनीतिक दलों से आते हैं। 
2014 के बाद से भाजपा को सदस्यों के पाला बदलने से सबसे ज्यादा फायदा हुआ है, जबकि कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है। जीतने के बाद भी विपक्षी दलों को चिंता है कि भाजपा उनके विधायकों को पाला बदलने के लिए मनाने की कोशिश करेगी। कई दलबदलू निर्णायक मौकों पर, जैसे कि सरकार के बहुमत साबित करने के समय होने वाले मतदान के दौरान।
वे दलबदल क्यों करते हैं? अगर दलबदलुओं के अपने-अपने दल छोड़ने का कोई कारण है, तो भाजपा भी बिना किसी हिचकिचाहट के उन्हें गले लगा लेती है। इन नेताओं को डर है कि जब उनकी पार्टी सत्ता खो देगी, तो वे राजनीतिक रूप से अप्रासंगिक हो जायेंगे। प्रमुख पार्टी भाजपा के साथ गठबंधन करके वे नियंत्रण हासिल करने और अपने बच्चों के लिए एक राजनीतिक भविष्य सुरक्षित करने की उम्मीद करते हैं।
अन्य दलों के नेताओं को आकर्षित करने की भाजपा की सफल रणनीति एडीआर विश्लेषण में स्पष्ट है। यह दर्शाता है कि दल बदलने वाले 22 प्रतिशत उम्मीदवार फिर से चुनाव लड़कर भाजपा में शामिल हो गये। इसके बाद 10 प्रतिशत कांग्रेस में और 6 प्रतिशत बसपा में शामिल हो गये। पिछले एक दशक में, भाजपा ने अन्य दलों के कई नेताओं को आकर्षित किया है, जिसने पूर्वोत्तर क्षेत्र में हेमंत विश्व शर्मा जैसे नेताओं के उदय में योगदान दिया है।
भाजपा इन दलबदलुओं का स्वागत क्यों करती है? इसके तीन मुख्य कारण हैं: पहला, इससे वह पार्टी कमज़ोर होती है जिससे दलबदल होता है। दूसरा, इससे भाजपा को स्थापित पार्टियों के जाने-माने नेताओं को अपने साथ लाने का मौका मिलता है, जिससे उसके रैंक मज़बूत होते हैं। तीसरा, भाजपा में दूसरी पंक्ति के नेताओं की कमी को देखते हुए दलबदलुओं को अपने साथ लाना आसान है। ऐसा नहीं है कि असंतुष्टों ने भाजपा नहीं छोड़ी है। कल्याण सिंह, शंकर सिंह वाघेला और येदियुरप्पा (सभी मुख्यमंत्री) जैसे कुछ लोगों ने अपनी पार्टियां बनायीं लेकिन असफल होने पर भाजपा में वापस आ गये। भाजपा की गहरी वैचारिक मजबूती इसे एक साथ रखती है।
भाजपा के पुराने वफादार सदस्य तब नाखुश होते हैं जब नये लोगों को अच्छे पद मिलते हैं जबकि वे पार्टी के प्रति वफादार रहे हैं। ऐसा पहले भी हो चुका है। वाजपेयी के नेतृत्व में पार्टी कुछ लोगों को ही शामिल कर पायी और बाकी लोग चले गये। पार्टी का विस्तार हो रहा है, पर इसके नेतृत्व पर अभी भी उच्च जाति का वर्चस्व है। भाजपा में ताकत है लेकिन इसकी विचारधारा, आक्रामक रवैये, आत्मसंतुष्टि और अहंकार के लिए आलोचना होती है। भाजपा की आगामी सदस्यता अभियान की ताकत का परीक्षण 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में होगा। हालांकि यह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में इसे केवल 240 सीटें मिलीं, जो बहुमत से 32 कम है। (संवाद)