एंटीबायोटिक्स के खुलासे से सकते में हैं लोग
एंटीबायोटिक्स दवाओं के एक नये खुलासे से देशवासी सकते में है। एक वैश्विक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है एंटीबायोटिक्स दवाओं के बिना सोचे समझे गलत और अत्यधिक इस्तेमाल से भारत के लोगों का स्वास्थ्य खतरे में पड़ गया है। स्वास्थ्य पत्रिका लेंसेट के एक ताज़ा अध्ययन के अनुसार 2019 में भारत में सेप्सिस से होने वाली लगभग तीस लाख मौतों में से 18 लाख मौतें सेप्सिस यानि बैक्टीरिया इन्फेक्शन से हुई।
ब्लड इंफेक्शन को सेप्सिस के नाम से भी जानते हैं। यह बीमारी संक्रमण से पैदा हो सकती है। ब्लड इंफेक्शन तब होता है जब संक्रमण से निपटने के लिए खून में घुलने वाले रसायन पूरे शरीर में सूजन के साथ जलन पैदा करने लगते हैं। इसके चलते शरीर में कई तरह के परिवर्तन भी देखने को मिलते हैं। शोध में 2050 तक दुनियाभर में लगभग चार करोड़ लोगों की मौत एएमआर यानि एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स से होने की आशंका व्यक्त की गई है। लेसेंट पत्रिका के मुताबिक इस अध्ययन में दुनियाभर के 500 शोधकर्ताओं को शामिल किया गया। इस शोध में भारत सहित 204 देशों के सभी आयु सीमा के लोगों के बीच 22 रोगजनकों, 84 रोगजनक और दवाओं के मिश्रण तथा 11 संक्रामक सिंड्रोम आदि का गहन विश्लेशण किया गया। शोध के दौरान भारत में तीन सबसे अधिक प्रतिरोधी रोगजनक पाए गए। इनमें आंत और पेशाब में इन्फेक्शन, निमोनिया सहित अनेक अन्य रोगों के संक्रमण मिले। शोध में 2050 तक दुनियाभर में लगभग चार करोड़ लोगों की मौत एएमआर यानि एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स से होने की आशंका व्यक्त की गई है।
आजकल एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल ज्यादा बढ़ रहा है। रोज़ाना की दौड़ती-भागती जिंदगी में लोग सिरदर्द, पेटदर्द, सर्दी, खांसी या बुखार होने पर एंटीबायोटिक दवा ले लेते हैं। बहुत से लोग बिना किसी डॉक्टर की सलाह के भी इनका इस्तेमाल करने लगे हैं। यह सेहत के लिए नुकसानदायक है। एंटीबायोटिक दवाओं का अंधाधुंध उपयोग किस प्रकार हमारे स्वास्थ्य को हानि पहुंचता है इसकी एक भयावह जानकारी हमारे सामने आयी है। एक रिसर्च में बताया गया है कि सबसे ज्यादा एजिथ्रोमाइसिन दवा का उपयोग किया गया। ये 500 एमजी की एक टैबलेट होती है। जो एंटीबायोटिक का काम करती है। देश में करीब 8 प्रतिशत लोगों ने इस दवा का सेवन किया था। एक रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में एंटीबायोटिक का सेवन हर दशक में 30 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
असल में एंटीबायोटिक दवाइयां हमारे देश में लगभग हर मैडीकल स्टोर पर बिकने वाली आम दवाओं में से एक हैं। हालांकि यह दवा डॉक्टरी पर्चे पर दी जानी चाहिए मगर देखा गया है दुकानदार इसे बिना समुचित पर्ची के लोगों को दे देते है। हमारे देश में लोग मामूली बीमारियों के इलाज के लिए डॉक्टर के पास नहीं जाते। वे केमिस्ट से दवाई ले लेते हैं। कुछ लोग कई दवाओं के बारे में जानते हैं कि ये किस बीमारी को ठीक करती है और उसी हिसाब से दवाई ले लेते हैं। लेकिन उन्हें इन दवाइयों के साइड इफेक्ट के बारे में पता नहीं होता। बिना डॉक्टर की सलाह के ये दवाइयां ज़रूरत से ज्यादा लेने के बाद ये शरीर में रेसिस्टेंस यानी प्रतिरोध पैदा कर लेती हैं। इसके बाद इनका कोई असर नहीं होता।
इससे पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी एंटीबायोटिक दवाओं के अंधाधुंध इस्तेमाल पर चेतावनी जारी की थी। एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल खतरनाक रूप से बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के रिसर्च के मुताबिक एंटीबायोटिक के ज्यादा इस्तेमाल से ‘एंटी माइक्रो-बियल रेजिस्टेंस’ का रिस्क बढ़ रहा है। जो वाकई में किसी महामारी से भी बड़ा खतरा है। ‘एंटी माइक्रो-बियल रेजिस्टेंस’ से दुनिया में हर साल 50 लाख लोगों की मौत हो जाती है। यही हाल रहा तो साल 2050 तक मौत का आंकड़ा करोड़ों के पार चला जाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के हाल के एक अध्ययन में पता चला है कि कोविड महामारी के दौरान लोगों को इतनी ज्यादा एंटीबायोटिक दवाएं खिलाई गईं कि उससे एंटीमाइक्रोबियल और एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस और ज्यादा बढ़ गया है। संगठन के मुताबिक महामारी के दौरान जितने लोगों को कोविड हुआ, उनमें से महज 8 प्रतिशत लोगों को एंटीबायोटिक दवाओं की ज़रूरत थी, लेकिन डर का माहौल इतना था कि सारे लोगों को बहुत ज्यादा मात्रा में यह दवाएं दी गईं। तकरीबन 75 प्रतिशत लोगों ने पैंडेमिक के दौरान एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन किया। भारत में कोविड के दौरान लोग सिर्फ डॉक्टरी सलाह पर ही नहीं, बल्कि थोड़ी भी सर्दी-खांसी होने पर खुद ही मैडीकल स्टोर से खरीदकर एंटीबायोटिक दवाइयां खा रहे थे। इन सबका नतीजा ये हुआ है कि सुपरबग में दवाइयों के प्रति एक रेजिस्टेंस डेवलप हो गया है। यह समस्या कोविड के पहले भी गंभीर थी, लेकिन अब और ज्यादा हो गई है।