महिलाओं का अश्लील-रूपेण चित्रण कब तक चलेगा ?

यह देश का, देश के आमजन का विशेषकर महिलाओं का सौभाग्य है कि इस समय देश की राष्ट्रपति भारत की एक बेटी हैं। वह देश के उस वर्ग की पीड़ा को समझती हैं जो वंचित है, अभाव-ग्रस्त है और जीने के लिए आवश्यक साधन जुटाने के लिए एड़ियां रगड़-रगड़कर भी पूरी रोटी नहीं प्राप्त कर रहा। देश की महिलाओं के एक वर्ग का शोषण होता है, उन पर शारीरिक अत्याचार होता है परन्तु एक अत्याचार ऐसा भी है जो अश्लील विज्ञापनों, इंटरनेट में महिलाओं को कामुकता भरे दृश्यों में, फिल्मों में किया जाता है। वहां महिला का वह रूप प्रस्तुत किया जाता है कि वह केवल कामिनी है। नोट कमाने की मशीन है। 
प्रश्न यह है कि जब देश में एक ऐसा कानून है कि अगर कोई महिलाओं का अश्लील रूप में चित्रण करता है तो उसके विरुद्ध कठोर कानूनी कार्यवाही हो सकती है। यह संज्ञेय अपराध है। कुछ वर्ष पहले 1986 में बने इस अधिनियम में संशोधन हुआ और दो वर्ष तक की जेल की सज़ा को सात वर्ष तक कर दिया गया, परन्तु दुखद आश्चर्य होगा कि आज तक शायद ही इस धारा में कोई केस दर्ज हुआ हो। यह अपराध छिपा कर नहीं होता, मीडिया के द्वारा भी खुलेआम किया जाता है। अखबारों में भी नारी की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले विज्ञापन छपते हैं। यह महिलाओं के शरीर का प्रदर्शन करके नोट कमाने की हल्की मानसिकता है। अफसोस यह है कि इस देश का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो फिल्म में अभिनय कला का आनन्द लेने के लिए नहीं, अपितु नग्न शरीरों को देखने के लिए जाता है।
अब महामहिम राष्ट्रपति जी से निवेदन है कि देश के किसी भी नेता, अधिकारी अथवा नागरिक ने इसके विरुद्ध कभी कानूनी कार्यवाही नहीं की। सड़कों पर प्रदर्शन अवश्य हुए हैं। कभी किसी एक फिल्म, एक दृश्य या एक गीत को लेकर किन्तु एक प्रभुसत्ता सम्पन्न देश में महिलाओं का इस तथाकथित कला के नाम पर निरन्तर अपमान हो रहा है, नई पीढ़ी को पथभ्रष्ट किया जा रहा है। नशा तो पहले ही गली-गली में पहुंच गया था, यह कामुकता नशे को और नशा कामुकता को बढ़ाता है।
इसके साथ ही महिलाएं कई अन्य प्रकार से भी त्रस्त हैं। देश के लाखों बच्चे एक बार खोकर मिलते नहीं और जो लापता बच्चे हैं, उनमें से लड़कियों की संख्या अधिक होती है। आज तक किसी सरकार ने यह मंथन ही नहीं किया कि ये बच्चे कहां गए, लड़कियां किस नर्क में धकेल दी गईं? ये बच्चे मानव तस्करी का शिकार हो रहे हैं या यौन कर्मी बनाए जा रहे हैं? विदेशों में भेजे जा रहे हैं अथवा ये लड़कियां उन वेश्यालयों में पहुंचा दी जाएंगी जो पहले ही देश के नाम पर बहुत बड़ा कलंक हैं? निश्चित ही देश के शासक जानते होंगे कि देश की लाखों बेटियां आज भी वेश्यालयों में नारकीय जीवन जी रही हैं। यह कटु सत्य है कि बहुत-सी ऐसी भी हैं जो स्वेच्छा से नहीं, अपितु शोषण, अत्याचार का शिकार होकर देह के व्यापारियों द्वारा इन वेश्यालयों में धकेली गईं। देश के कानून की नाक के नीचे पुलिस की सारी गुप्तचर संस्थाओं के रहते हुए भी इन लड़कियों को वहां से निकालने का कोई प्रयास आज तक नहीं हुआ। देश को यह बताया ही नहीं गया कि जो बेटियां गायब हो गईं, उनकी संख्या कितनी है। क्या उनके माता पिता अपनी बेटियों के विषय में जानते हैं या उन्हें निकालने का प्रयास इन सरकारों ने किया?
आज बेटियों की निरन्तर हत्याएं हो रही हैं। गोली मारकर, तेज़ाब डालकर, शरीर के टुकड़े करके पर अफसोस कि आज देश की युवा पीढ़ी युवक और युवतियां यह नहीं सोच पा रहे कि सहजीवन से उन्हें कुछ नहीं मिलेगा। यह सब देश के लिए, समाज के लिए, हमारी सामाजिक मर्यादाओं के लिए घातक है। 
 

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