चुनावों में पारदर्शिता ज़रूरी

विगत दिवस पंजाब में पंचायत चुनावों को लेकर उच्च न्यायालय ने जो टिप्पणियां की हैं, उनसे प्रशासन एवं सरकार की किरकिरी भी हुई है तथा सरकार की ऐसी कारगुज़ारी पर लोगों का गुस्सा भी फूटा है। किसी भी लोकतंत्र में निचले स्तर पर पंचायत चुनाव एक उत्तम गतिविधि मानी गई है। यदि निचले स्तर के चुनाव सही होंगे तो इससे लोकतंत्र की नींव स्वयं ही मज़बूत होगी। यदि ऐसे चुनाव निम्न स्तर के दृष्टिकोण से लड़े जाते हैं तो यह समाज के लिए बेहद दुखद सन्देश होगा। मौजूदा सरकार ने यह घोषणा की थी कि पंचायत चुनाव पार्टियों के चिन्ह पर नहीं लड़े जाएंगे तथा यह भी कि सर्वसम्मति से चुनी जाने वाली पंचायतों को सम्मानित किया जाएगा तथा नकद ईनाम भी दिया जाएगा। 
इससे यह विश्वास बंधता था कि सरकार ईमानदारी से लोकतंत्र की नींव को मज़बूत करना चाहती है। जब 1992 में 73वें संवैधानिक संशोधन द्वारा पंचायती  राज को पारिभाषित किया गया था तो तब मूलभूत लोकतंत्र की मज़बूती के लिए एक ठोस कदम के रूप में इसकी प्रशंसा की गई थी, परन्तु क्रियात्मक रूप में इसके वैसे परिणाम सामने नहीं आये, जिसके अनुमान लगाये गये थे। ज्यादातर प्रादेशिक सरकारों ने इस प्रबन्ध को ऐसी सीढ़ी समझ लिया, जिसके पायदानों पर चढ़ कर वे सत्ता के शिखर तक पहुंच सकती हैं। इसीलिए  इसके परिणाम अनुमान के अनुसार सार्थक नहीं निकल सके।
पंजाब में इन चुनावों के समय जिस तरह का माहौल सृजित किया गया है, वह बड़ी सीमा तक नकारात्मक है। यदि सही भावना से किसी गांव की इकाई में पंचायत चुनाव सर्वसम्मति से होते हैं तो हम उसकी प्रशंसा करते हैं परन्तु यदि ऐसा कुछ दबाव के तहत करवाया जाता है तो यह निश्चय ही एक नकारात्मक घटनाक्रम  है। इन चुनावों में कई स्थानों पर बोलियां लगने के समाचार भी आये, जिन्हें हम इस व्यवस्था का स्वस्थ संकेत नहीं समझते। अब इससे भी आगे जा कर ज्यादातर स्थानों पर सत्ता-पक्ष द्वारा पंचायत चुनाव प्रक्रिया को अपने पक्ष में भुगताने के लिए सरकारी दबाव डालने के समाचार आने लगे हैं, जिसने व्यापक स्तर पर गड़बड़ पैदा कर दी है। नामांकन में विपक्ष को दृष्टिविगत करने या चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के नामांकन रद्द करके उन्हें अयोग्य साबित कर देने की क्रिया ने माहौल को एक तरह से खराब कर दिया है। इस संबंध में दायर की गईं याचिकाओं का उच्च न्यायालय ने संज्ञान लेते हुए कड़ी टिप्पणियां की हैं। यहां तक कि लगभग 250 दायर की गई याचिकाओं की सुनवाई करते हुए अदालत ने इनसे संबंधित सभी पंचायतों की चुनाव प्रक्रिया पर रोक लगा दी है। इन याचिकाओं में प्रशासन की धक्केशाही तथा मनमज़र्ी का कड़ा संज्ञान लिया गया है। अदालत ने तो यह भी कहा है कि चुनाव आयोग इस घटनाक्रम पर आंखें बंद कर सकता है परन्तु अदालत ऐसा नहीं करेगी। अदालत ने इन चुनावों के नामज़द अधिकारियों के चयन पर भी अंगुली उठाई है तथा उसने इन चुनावों में हुईं अनियमितताओं संबंधी सरकार को स्पष्टीकरण देने के लिए भी कहा है।
चाहे हाईकोर्ट की इस टिप्पणी के बाद इस पक्ष से हालात के कुछ ठीक होने की उम्मीद की जा सकती है परन्तु यह सभी प्रभावित लोगों को सन्तुष्ट करने के लिए काफी नहीं होगा। चाहे इन चुनावों में सरकार अपना पलड़ा तो भारी कर सकती है परन्तु इससे हुए हर पक्ष से नुक्सान की भरपाई किया जाना बेहद कठिन होगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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