महंगाई की मार और त्यौहार

मंहंगाई की मार ने त्यौहारी रंग को फीका कर दिया है। केवल लग्ज़री आइटम या फिर जूते, कपड़े, ड्राइंग रूम व बेडरूम तथा रसोई का समान ही महंगा नहीं है, बाज़ार में सबसे बुरा हाल तो फल व सब्ज़ियों का है। नवरात्र व्रत गत शुक्रवार को सम्पन्न हुए हैं। इन व्रत में आमतौर पर व्रत रखने वाले फलाहार लेते हैं, लेकिन फलों की कीमतों में उछाल के चलते बाज़ार में मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग वाले फलों के दाम तो पूछते, लेकिन लेने के बजाय आगे बढ़ जाते। इस वक्त फल ही नहीं, सब्ज़ियां भी रसोई का बजट बिगाड़ रही हैं। टमाटर 100 रुपये प्रति किलो के आस-पास जा पहुंचा है जबकि सेब का दाम 100 रुपये प्रति किलो है। इस बार व्रत में अच्छा केला 100 रुपये दर्जन तक बिका है। फल मंडी के आढ़ती भी मान रहे हैं कि इस बार महंगाई सारे रिकॉर्ड ध्वस्त करने पर आमादा है। खाद्य तेल की कीमतों में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है। इसमें सरसों के तेल से लेकर पाम आयल, सूरजमुखी, नारियल, मूंगफली और अन्य तेल भी शामिल हैं। सामने पेरा गया सरसों के तेल की कीमत 140 रुपये प्रति लीटर से 160 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गई हैं। कीमतों में वृद्धि के पीछे देश में इनकी कमज़ोर फसल का होना और खाद्य तेलों की लगातार विदेशी आयात पर निर्भरता बढ़ने को बताया गया है। पिछले वर्ष की तुलना में कीमतों मे लगभग 40 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। वैसे महंगाई से सम्पूर्ण विश्व प्रभावित है, लेकिन भारत में जमाखोरों और खुदरा बाज़ार सरकार के नियंत्रण से बाहर होने के कारण स्थिति दिन पद दिन बद्तर हुई है। असमान आय के मामले में भारत में महंगाई चरम पर दिखाई पड़ती है, क्योकि आज भी भारत में आधी से अधिक आबादी महीने में दस हज़ार से कम आय में तथा 25 प्रतिशत आबादी पांच हज़ार रुपये महीने की आय पर निर्भर है। 
इन दिनों ईरान और इज़रायल सहित पश्विम एशिया में बढ़ते संघर्ष तथा रूस-यूक्रेन युद्ध के विस्तारित होने से भारत के समक्ष कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों, शेयर बाज़ार में गिरावट, माल ढुलाई की लागत बढ़ने, खाद्य वस्तुओं की महंगाई, भारत से चाय, मशीनरी, इस्पात, रत्न, आभूषण तथा फुटवियर जैसे क्षेत्रों में निर्यात में कमी, निर्यात के लिए बीमा लागत में वृद्धि द्विपक्षीय व्यापार में कमी के रूप में दिखाई दे रही हैं। वैश्विक शेयर बाज़ार के साथ-साथ भारत के शेयर बाज़ार पर भी असर पड़ना शुरू हो गया है। पश्चिम एशिया संकट और चीन से सरकारी प्रोत्साहन के दम पर बाज़ार चढ़ने के मद्देनज़र भारत के शेयर बाज़ार में कुछ विदेशी निवेशकों द्वारा जोखिम वाली सम्पत्तियां बेची जा रही हैं और वे अपना कुछ निवेश निकाल रहे हैं। 
ऐसे वक्त में जब भारतीय बाज़ार त्यौहारों की रंगत में रंगने लगे हैं और कारोबारियों को बेहतर कारोबार की उम्मीद है, भारतीय रिज़र्व बैंक महंगाई को लेकर चिन्तित है। उसे चिंता है कि महंगाई बढ़ी तो त्यौहारों की रौनक प्रभावित हो सकती है। इसीलिए मौद्रिक नीति की घोषणा करते वक्त केंद्रीय बैंक ने रेपो दर को यथावत बनाये रखा है। बहरहाल, ये आने वाला वक्त बताएगा कि रिज़र्व बैंक किस हद तक महंगाई पर नियंत्रण रखने में सफल हो पाता है। दरअसल, केंद्रीय बैंक का लक्ष्य है कि महंगाई की दर को चार फीसदी से नीचे रखी जाए। चिंता जतायी जा रही है कि आने वाले दो वर्ष में यह दर चार फीसदी से ऊपर रह सकती है। जब दो साल पहले खुदरा महंगाई की दर सात फीसदी के करीब पहुंच गई थी तो केंद्रीय बैंक ने मौद्रिक उपायों से महंगाई पर काबू पाने का प्रयास किया। बैंक ने धीरे-धीरे रेपो दर में वृद्धि की थी। छह बार की वृद्धि से फिलहाल इस दर में करीब अढ़ाई फीसदी की वृद्धि हो चुकी है। दरअसल, बैंक का आकलन है कि आने वाले दो वर्षों में महंगाई की दर चार फीसदी से ऊपर रह सकती है। केंद्रीय बैंक यदि उद्यमियों के दबाव के बावजूद बैंक दरों में कमी नहीं कर रहा है तो उसकी वजह महंगाई की चिन्ता में थमे कदम हैं। बैंक का आकलन है कि यदि हम महंगाई की दर को अपने लक्ष्य चार फीसदी से कम लाने में कामयाब हो जाते हैं तो देश की विकास दर के ऊंचे लक्ष्य हासिल किये जा सकते हैं। इतना ही नहीं, विकास दर दो अंकों का आंकड़ा छू सकती है। 
यह एक हकीकत है कि जहां दुनिया के अन्य विकसित देश मंदी के संकट से जूझ रहे हैं, भारत मंदी के दुष्प्रभाव से अर्थव्यवस्था को बचा पाया है। नि:संदेह, हमारी मौद्रिक नीतियां आर्थिकी को स्थायित्व प्रदान करने में किसी हद तक सफल रही हैं। यही वजह है कि संवेदनशील आर्थिकी के वैश्विक परिदृश्य में केंद्रीय बैंक ने मौद्रिक नीतियों में बदलाव से परहेज़ किया है। नि:संदेह, भारत इस समय दुनिया में तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है। इस स्थिति को बनाए रखने के लिये खासी सावधानी भी ज़रूरी है, लेकिन ऊंची रेपो दर का नुकसान देश के उन उपभोक्ताओं को उठाना पड़ रहा है, जो घर-वाहन ऋण की ईएमआई कम होने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। हालांकि, देश के बुजुर्गों को बचत खाते में अधिक ब्याज मिलने से लाभ ज़रूर हो रहा है, लेकिन महंगाई का प्रभाव तो समाज के हर वर्ग पर पड़ रहा है। वहीं थोक व फुटकर की महंगाई के आंकड़े भले ही इसके कम होने की बात कर रहे हों, लेकिन व्यवहार में फल-सब्ज़ी व खाद्य पदार्थों की महंगाई उपभोक्ताओं के बजट को प्रभावित कर रही है। दूसरी ओर कज़र् लेने वाले लोगों को बढ़ी किस्तें भी परेशान कर रही हैं। कारोबारी और कामकाजी लोग काफी समय से आस लगाए बैठे थे कि यदि रिज़र्व बैंक रेपो दरों में कुछ कमी करता है तो ऋण सस्ते होने से उनके कज़र् की किस्त कुछ हल्की हो जाएगी, लेकिन महंगाई की चिंता कर रहा केंद्रीय बैंक ऐसे किसी कदम को उठाने से परहेज़ कर रहा है। एक बात तो तय है कि महंगाई दर में कमी के दावों का अहसास आम आदमी को भी होना चाहिए। सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि महंगाई के आंकड़ों पर काबू पाने का वास्तविक लाभ आम उपभोक्ता को कैसे और कब मिलेगा। कोशिश यह होनी चाहिए कि त्यौहार के मौसम में आम आदमी को दैनिक उपभोग की वस्तुएं मसलन खाद्यान्न, सब्जी-फल, डेरी उत्पाद व खाद्य तेल वाजिब दामों में मिले। तभी महंगाई पर नियंत्रण के सरकारी दावे सिरे चढ़ सकेंगे।

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