‘भीड़ तंत्र के नये उस्ताद’
हमें बच्चू बाबू आजकल बहुत मिलने लगे हैं। वह हमें ज़िन्दगी जीने के नये गुर सिखाते रहते हैं। पहले कभी छक्कन मिला करते थे, हमें ज़िन्दगी जीने के सही-सही तरीके सिखाते रहते, भाई सुबह प्रभात के समय उठो। परमात्मा का ध्यान करो कि तुम्हें एक दिन और जीने को मिल गया। रात को समय पर शयन करो। भरपूर निद्रा लो। बेचैन करने वाले शे’अर न पढ़ो। उदास करने वाले गीत और ़गज़ल भी नहीं सुनने हैं। खाना सोने से दो-तीन घंटे पहले खा लेना है। फिर प्रभु का धन्यवाद करना है कि इस महंगाई के ज़माने में भी तुम्हें आधा पेट खाने को मिल गया। वह भी रियायती अनाज की दुकान के बाहर कतार में शालीनता के साथ खड़े होकर, बिना धक्का-मुक्की करते हुए। छक्कन कहा करते थे कि इस युग ने देशवासियों को कुछ सिखाया हो या नहीं, कतार में खड़े रहना अवश्य सिखा दिया। वह धक्का-मुक्की नहीं करते थे। भाषण सूत्रों पर विश्वास करते थे। कहते जन-कल्याण का युग आ गया। अब कतार में खड़े आखिरी आदमी की भी पूरी-पूरी सुध ली जाएगी। कतार के आखिरी आदमी के धीरज के साथ वह कतार में अपनी बारी आने का इंतज़ार करते रहे, लेकिन उनके पीछे आए लोग उन्हें धक्का देकर आगे निकल गये। वह वहां खड़े-खड़े ही पाषाण हो गये। किसी राम के चरणों का स्पर्श उन्हें नहीं मिला कि वह पाषाण से सजीव हो जाते। फिर वक्त से पहले ही कालकलवित हो गये, और साथ ही चल बसे हमें यह सूत्र रटवाने वाले छक्कन बाबू भी। युग बदल गया। छक्कन नहीं रहे, उनकी जगह अब ले ली बच्चू भाई ने। नये युग की नयी सदी के मसीहा। कभी हमें बताया जाता था, ‘सहज स्वभाव से जियो। सदा सच बोलो। नैतिकता के नियमों का पालन करो। आदर्शवादी हो जीवन काटना ही उत्तम है।’
अब बच्चू भाई का युग आ गया। इन दिनों क्लब घरों में आधी रात तक के रतजगों के बाद कोई सुबह सवेरे का मुंह नहीं देखता। प्रभात बेला कुवेला हो गई। गोधूलि को गौएं घर नहीं लौटतीं। लोग अपने बड़े-छोटे वाहन निकालते हैं, और रात्रि क्लबों का रुख करते हैं। शास्त्रीय संगीत और शास्त्रीय नृत्य की बात अब हमसे न करो। अब रम्बा सम्बा से लेकर बाल रूम डांसिंग से गुज़रते हुए डिस्को नृत्यों में पारंगत हो जाओ। चाहे पुराने लोगों को उसमें जिमनास्टिक से लेकर हुल्लड़बाज़ी तक अधिक लगे। अब शास्त्रीय नृत्य क्लब घरों की तलाश में निकला और शास्त्रीय संगीत बेसुरे रैप सांग के गले में बाहें डालने लगा। ये रैप सांग गाने के कई लाभ थे। एक तो बेसुरी आवाज़ लय पकड़ सकती थी, और अर्थहीन गद्य रैप गीत बन आपको लेखक बना देता। यूं बच्चू बाबू हमें नयी सदी का कलाकार बना गये। कुर्ता-धोती छोड़ कर जीन्स धारण कर बड़े बालों वाले कलाकार का मुखौटा हम पर सजा गये।
हमें लगा, भई नया युग आ गया है। अब नये ढंग से जीना सीखना होगा। बल्कि जिस ढंग से छक्कन हमें जीना सिखा रहे थे, उसमें पुस्तक पढ़ाई को भूलना था। बल्कि लगा कि अब तो हर तरह की पढ़ाई से बगल हट जाने का समय आ गया। नये उभरते हुए विश्वविद्यालयों के विस्तृत परिसर बनाये गये थे, अचानक खाली हो गये। गलियों और बाज़ारों में आईलेट्स अकादमियां कुकरमुत्तों की तरह उभर आईं, जो यह सिखाने लगीं कि सागर पार जाने का अपेक्षित बैंड पाने के लिए अचूक नुस्खा कौन-सा है? फिर कुछ और चतुर सुजान सामने आए जो अपेक्षित बैंडों को गैर-ज़रूरी कर आपको डंकी बना सागर पार करवाने लगे। इसका कारोबार तरक्की पर है। पता लगा असली वीज़ा पाने की ज़रूरत ही क्या है? नकली वीज़ा बना कर देने वालों का कारोबार तेज़ी पकड़ चुका है। कानून के मसीहाओं ने उन पर हाथ डाला तो पता लगा कि भाई उन्होंने तो करोड़ों का कारोबार कर लिया है।
वक्त का मिज़ाज बदल रहा है, बच्चू भाई ने हमें सिखाया। इन्टरनैट की ताकत आई है, देश डिज़िटल हो रहा है, तो साइबर क्राइम सीख लो। नित्य नई ठगी के धंधों में अपनी मौलिकता दिखाओ, और पलक झपकते ही बैंकों के खाते साफ कर जाओ। पढ़े-लिखे लोग जब यूं ठगे जाएंगे तो इतने शर्मिन्दा हो जाएंगे कि किसी से इसकी बात भी नहीं बताएंगे। वैसे अपराध रोकने से अधिक उचित इसे रोकने का शोर-शराबा है। बन्धु, आज जो व्यक्ति जितना कोलाहल कर सके, उतना ही अभिनंदित हो जाता है। लीजिये, यह शब्द अभिनंदन कहां से चला आया? जनाब आजकल हर क्षेत्र में लोग अभिनंदित नहीं, महिमा मण्डित होते हैं। महिमा-मण्डन का सबसे प्रचलित और सस्ता तरीका यह कि अपना महिमा मण्डन स्वयं कर लो। इसको कितनी जल्दी नये युग की इस नई दुनिया ने सीख लिया। लेखक बनना है तो अपनी किताब खुद छापो। उसका महिमा-मण्डन करने के लिए अपनी संस्था खुद बना लो। छद्म नाम से अपना प्रशस्ति गायन स्वयं कर लो और इसे कोई अखबारी जन्तु पटा कर इसे गहन गम्भीर आलोचना कह कहीं छपवा लो।
फिर भी मन नहीं भरा तो सोशल मीडिया में इसकी खबर डाल कर लाइक्स बटोरो। किसी और से विवेचन छपवा कर अपना चित्र इसमें डाल दो। बच्चू भाई, समझाते हैं, केवल प्रशस्ति गायन से भी मन नहीं भरा, तो उसके लिए पुरस्कार और अवार्ड का जुगाड़ खुद करो। अवार्ड मिले तो कह सकते हो, ‘भई हमने तो लाख मना किया, वह पुरस्कृत करने से हटे ही नहीं। हमें अवार्ड देकर ही माने।’
केवल लेखन या ललित कला ही क्यों, ऐसे अवार्डों की दुनिया तो हर क्षेत्र को अलंकृत करती है, आजकल। बस आपको यह अलंकरणा बटोरने की तरीका आना चाहिये। नहीं सीख पाये तो भी क्या चिन्ता? आजकल तो हर असफल आदमी अपने आपको अपने क्षेत्र का शहीद कहने से चूकता नहीं। आप बताइए ऐसी शहादत से बड़ा कोई और अवार्ड है क्या?